कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
जब भी किसी क्षेत्र में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ना के बराबर है तो हम उसके पद या डिग्री के आगे अक्सर महिला शब्द लगा देते हैं, ऐसा क्यों?
“मुझे साइंस की क्षेत्र में एक महिला के तौर पर ना देखें मुझे एक साइंटिस्ट की तरह देखें।”
“हमारी फिल्मों को महिला प्रधान फिल्में ना कहें उनको एक साधारण फिल्मों की तरह ही देखें। ” ” मुझे महिला पायलट ना बुलाएं मैं एक पायलट हूँ। ”
ऐसे बहुत से कथन हैं जो कि विश्व की सफलतम महिलाओं द्वारा कहे गए हैं। लेकिन कितने ही लोगों को इन वाक्यों का सही मतलब समझ नहीं आता है। उनको समझ नहीं आता कि आखिर वे महिलाएं कहना क्या चाहती हैं या वो ऐसा क्यों कहती हैं?
एक समय था जब ख़ास तौर पर भारतीय महिलाओं का नौकरी करना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी और यदि कोई गृहस्थ महिला नौकरी करती भी थीं तो सिर्फ किसी विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी किया करती थीं।
ऐसा नहीं था कि हर महिला शिक्षक ही बनना चाहती थी, असल बात यह थी कि किसी भी महिला का किसी और क्षेत्र में काम करना सहज नहीं मन जाता था। कुछ परिवार सामाजिक दायरों की खातिर किसी और क्षेत्र में काम नहीं करने देते थे और कुछ लोग संकीर्ण मानसिकताओं की वजह से यह मानते थे कि महिलाएं किसी और क्षेत्र में काम नहीं कर सकती।
कुछ समय पश्चात महिलाओं ने थोड़ा बाघी रूप अपनाया और कुछ महिलाओं ने हिम्मत दिखा कर अपने सपनों को जीने का फैसला किया। उन्होंने क्षेत्र की बंदिशों से ऊपर उठकर नौकरी करने का निर्णय लिया।
और धीरे-धीरे महिलाओं ने सभी क्षेत्रों में कदम ज़माने शुरू कर दिए। अब आज की बात की जाए तो आज ऐसा नहीं है की हर महिला अपने सपनों को जी रही है लेकिन ऐसा ज़रूर हर क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ी है। आज महिला वैज्ञानिक भी हैं और पहलवान भी , शिक्षक भी हैं और अदाकारा भी, पायलट भी हैं और रिक्शा चालक भी।
लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या ज़्यादा नहीं है, इसीलिए हम सभी की आदत है कि जब भी कोई महिला किसी ऐसे क्षेत्र में कदम रखती है, जहां महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ना के बराबर है तो हम उसके पद या डिग्री के आगे अक्सर महिला शब्द लगा देते हैं और उनके कार्य से ज़्यादा हम उनके महिला होने पर ज़्यादा ज़ोर देते है और ऐसा इसीलिए करते हैं जिससे समाज में महिलाओं को बल मिले और महिला शक्तिकरण को बढ़ावा मिले।
लेकिन हम महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देते देते यह भूल जाते हैं कि कहीं न कहीं ऐसी बातों से हम असमानता को बढ़ावा दे रहे हैं। हम उनकी उस मेहनत को कम आंक रहे हैं, हम यह भूल जाते हैं कि वह महिलाएं जिन्होंने वैज्ञानिक बनने का, पायलट बनने का या इंजीनियर बनने का जब सपना देखा था, तो उन्होंने यह नहीं सोचा था कि वो महिला सशक्तिकरण का एक उदहारण बनेंगी।
उन्होंने हमेशा इतना चाहा था की दुनिया में नाम उनके काम से हो। वो एक महिला पायलट कहलाने ज़्यादा ख़ुश इस बात में महसूस करेंगी, जब उनको एक अच्छा पायलट बोला जायेगा। वो एक महिला वैज्ञानिक कहलाने से ज़्यादा ख़ुशी इस बात में महसूस करेंगी जब उनको उनके नए नए शोधों से जाना जायेगा।
इसी प्रकार कोई भी अदाकारा किसी भी फिल्म में यह देखकर काम नहीं करती हैं कि वह फिल्म पुरुष प्रधान है या महिला प्रधान वो फिल्म की कहानी देखकर यह निर्णय लेती हैं की उनको काम करना चाहिए या नहीं हाल ही में दीपिका पादुकोण ‘छपाक’ फिल्म के प्रमोशन के दौरान एक इंटरव्यू में बोला था, “नहीं, मैं यह फिल्म इसीलिए नहीं कर रही हूं क्योंकि यह महिला केंद्रित है। यह वास्तव में यह बात फिल्म को छोटा बनाती है।”
दीपिका ने बहुत बार यह भी कहा है, “जिन फिल्मों में पुरुषों का रोल महिलाओं के रोल से ज़्यादा होता है तो हम उसे ‘पुरुष प्रधान फिल्म’नहीं कहते हैं तो फिर महिलाओं की फिल्मों को महिला प्रधान फिल्म क्यों कहा जाता है ?”
हर देश की महिला वैज्ञानिक आज यह कह रही हैं, “i am not women in science i am a scientist” और अगर सोचा जाए तो इन महिलाओं के ये कथन बहुत कुछ कहते हैं।
हम एक तरफ समानता की बात करते हैं तो दूसरी तरफ हम ही हर बात में यह एहसास कराते हैं कि वह एक महिला हैं हम उनकी सारी उपलब्धियों को दूसरा स्थान देते हैं। पहला स्थान हमेशा इस बात को देते की वह एक महिला हैं, जो थोड़ा गलत है, क्यूंकि अगर हमें बराबरी के अधिकार चाहिए तो महिलाओं की उपलब्धियों, उनके पदों , उनकी डिग्रीयों को ज़्यादा महत्वपूर्ण स्थान देना होगा।
मूल चित्र : Canva
read more...
Please enter your email address