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लंबी सांस लेते हुए नेहा की सास की आंखे नम हो गयीं, क्यूँकि ससुराल में कदम रखते ही उन्हें दहेज़ के इस घिनौने अभिशाप से झूझना पड़ा।
नेहा अपनी माता पिता की इकलौती औलाद थी। बहुत ही सुंदर, सुशील ओर पढ़ी-लिखी। बचपन से ही अपने सपनों को छूने की चाह रखने वाली नेहा ने डाक्टरी की पढ़ाई लिखाई पूरी की। आज वो एक सफल और ईमानदार डॉक्टर थी। जो सपना देखा उसे पूरा करने के लिए उसके माता-पिता ने भी उसका पूरा पूरा साथ दिया। आज नेहा बहुत ही सफल डॉक्टर थी जिसका अपने क्षेत्र में बहुत अच्छा नाम था।
अब कहते हैं कि बेटी सियानी हो गयी तो हाथ तो पीले करने का सपना हर माँ बाप का होता है। और ऐसा सपना नेहा के माता-पिता भी काफी समय से देख रहे थे कि एक अच्छा सा काबिल लड़का मिल जाये और नेहा अपने जीवन में आगे बढ़ जाये। पर नेहा की ज़िद पर घर वाले भी चुप थे कि जब तक नेहा अपने पैरों पर खड़ी नहीं होगी, उसकी शादी का सोचना भी नहीं है। और ऐसी सोच हर माँ-बाप को रखनी भी चाहिए। क्यूँकि लड़का हो या लड़की सभी को अपने सपने पूरा करने का बराबर हक़ है।
और इस सपने को पूरा करने का जज़्बा और जुनून भी ज़रूरी है जो नेहा के अंदर उसके माँ-बाप ने देखा था। जब नेहा छोटी थी तो वो एक दिन खेलते-खेलते सीढ़ियों से गिर गयी। तब उसे डॉ के पास ले जाया गया और डॉ अंकल ने किस तरह उसे ठीक किया। तब से उसने भी अपने मन में ये ठान लिया कि वो भी इस समाज के लिए कुछ करेगी। बस वो दिन था जब नेहा का वो सपना जुनून का रूप लेने लगा और उसने अपने इस मुकाम को हासिल करने के लिए दिन रात एक करने शुरू कर दिए। इसमें उसके माँ-बाप ने भी पूरा-पूरा सहयोग किया,आखिर एकलौती ओर लाडली जो बेटी थी।
तभी दूर के मामा जी एक अच्छा सा रिश्ता नेहा के लिए लाए। लड़का अच्छा पढ़ा-लिखा होनहार था। लड़का भी डॉक्टर था और उसका अपना क्लिनिक था। तो ये तो वही बात हुई जैसे कोई सपना देखा और वो पूरा हो जाये तो उस खुशी का ठिकाना नही होता। ऐसा ही कुछ हुआ नेहा ओर उसके माता पिता के साथ।
मामा जी ने धीरेन की फ़ोटो नेहा ओर उसके माता पिता को दिखाई। सभी को लड़का पसंद आया और उधर नेहा भी सबको खूब भा गयी। फिर क्या था बात आगे बढ़ी, तो मगनी कर दी गयी और शादी की तारीख भी जल्दी तय कर दी गयी। दोनों परिवार बहुत खुश थे। और साथ ही नेहा ओर धीरेन भी, एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में पाकर।
नेहा के माता-पिता ने खूब धूमधाम से शादी की। कोई कसर बाकी न रहे इस बात का पूरा ध्यान रखा कि भई लड़की वाले हैं। सब कुछ एकदम अच्छे से हुआ। फिर नेहा शादी करके अपने ससुराल आ गयी। सभी रस्में रिवाज़ पूरी की जाने लगीं। मुँह दिखाई की रस्म भी की जाने लगी। तभी धीरेन की चाची जी आयी और नेहा को मुँह दिखाई देने के बहाने उसके पास आकर बैठ गयी। चाची सास थी, थोड़ा सास होने का रौब भी दिख रहा था। तभी नेहा की सास को बड़े ही उत्सुक से स्वर में पूछती हैं, “हैं! दीदी,आप बहु तो बड़ी सुंदर लायी हैं। हमारे धीरेन की तो लॉटरी लग गयी। और तो और बहु कमाने वाली भी है।”
“आखिर! हमें भी तो पता चले कि दहेज में क्या क्या लायी है। अच्छा कमाने वाली है। दहेज भी खूब लायी होगी। नेहा को उनकी बाते थोड़ी अटपटी सी लग रही थी, पर नई बहू होने के नाते बोलना भी उचित नही लगा। पर मन ही मन सोच में पड़ गयी कि आज भी हमारा समाज मे ऐसी खोखली सोच पनपी हुई है। और ऐसे बड़बोले लोग हैं, जो आव देखा न ताव, बस मुँह खोलकर बात बोल देते हैं।
तभी नेहा की सास अपनी बहू के सिर पर हाथ रखकर प्यार से उसे निहारते हुए कहती हैं, “मैं और मेरा परिवार बहुत खुशकिस्मत है कि हमें नेहा जैसी बहु और धीरेन को समझदार जीवनसंगिनी मिली है। और यही हमारा सबसे बड़ा दहेज है। और आज सभी रिश्तेदारों के सामने मैं केवल यही बात कहना चाहूंगी कि जो माँ-बाप अपनी बेटी को अरमानों से पाल पोसकर बड़ा करके, पढ़ाते लिखाते हैं, और फिर उसे डोली में बिठाकर दूसरों के हवाले इस भरोसे से करते हैं कि उस घर में उसे वही प्यार एवं सम्मान मिले जिसकी वो हक़दार है। तो हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम उनके इस विश्वास को बनाये रखने का प्रयास करें। और फिर क्यों नहीं हम उसे हर एक वो खुशी और हक़ दें जिसकी वो हक़दार है?”
“और रही बात दहेज की, तो ये एक ऐसा अभिशाप है जिसे हम सबको मिलकर खत्म करना है और समाज को आइना दिखाना है कि अगर आज वो दहेज के लिये बहु को प्रताड़ित कर सकते हैं तो कल हमारी बेटियों के साथ भी ये हो सकता है। और रही बात नेहा की, वो मेरी बहु नहीं बल्कि बेटी बनकर आयी है और आशा करती हूं कि वो मेरी बेटी बनकर रहेगी।”
लंबी सांस लेते हुए नेहा की सास के आंखे नम हो गयीं, क्यूँकि आज उसे अपना समय याद आया कि किस तरह ससुराल में कदम रखते ही उससे इस घिनोने अभिशाप से झूझना पड़ा। और न जाने कितनी कड़वी बातें घूँट-घूँट पीते उसने उन पलों को जिया, जिस समय वह अपने जीवन के सुखद पल जी सकती थी। लेकिन उन्होंने ठान लिया कि वो न तो दहेज लेंगी,ओर न ही दहेज देंगी।
उनकी ये बातें सुनकर अब चाची जी की तो जैसे बोलती बंद हो गयी और उन्हें अपनी ही बात पर शर्मिंदगी महससू हुई।
“मेरी बहु पढ़ी लिखी है और मेरा बेटा भी। और मुझे अपने दोनों बच्चों पर नाज है कि वो अपने जीवन को अपने दम पर हंसी खुशी से बिताएंगे। बस हम सबको उन्हें भरोसा दिलाना है कि हम उनके साथ हैं।”
“क्यूँकि दहेज एक ऐसा अभिशाप है जिसने न केवल समाज को दीमक की तरह निगल रहा है, बल्कि बरसों से हम देखते और सुनते आ रहे हैं कि न जाने कितनी बहु और बेटियां, इस अभिशाप के चलते बलि चढ़ती आ रहीं हैं। इसलिए मैंने सोचा लिया कि मैं अब अपनी बेटी के लिए भी ऐसा घर वर ढूंढूंगी, जो मेरी बेटी की योग्यता देखेगा, ना कि हमारी औकात।”
“हमारा सबसे बड़ा दहेज है अपने बच्चों की शिक्षा और संस्कार। अगर ये सब हम अपने बेटे और बेटियों को देते हैं। तो इससे अच्छा कुछ और नहीं।”
नेहा को अपनी सासु माँ की बातें सुनकर आंखों में आँसू आ गए और वह उनके पैर छूकर उनके गले लग गयी। और अपने आप को सोभागशाली समझने लगी कि उसको ऐसा परिवार मिला जैसा हर लड़की का सपना होता है। और उसे एहसास हो गया कि ये ही उसका दूसरा मायका है।
तो दोस्तों कैसे लगी आपको मेरी स्वरचित कहानी? आशा करती हूं अच्छी लगी होगी, क्यूँकि ये कहानी कहीं न कहीं हमारे समाज का पनपता सच है जिसे समाज की हर दूसरी लड़की झेलती आ रही है। और अब समय आ गया इसे समाज से दूर करने का, ताकि कोई भी बहु-बेटी मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित न हो। और इसी तरह चाची जैसे लोगों का मुँह समय रहते बंद कर दिया जाए ताकि कोई ऐसी सोच दिमाग में लाने भर से ही शर्मिंदा हो जाएँ।
मूल चित्र : Canva
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