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प्रोफ़ेसर सोनाझरिया मिंज – विश्वविद्यालय की वीसी बन कर एक नया इतिहास रचा

ख़ुद को साबित करने वाली जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर सोनाझरिया मिंज ने एक इतिहास रचा और सबके लिए एक मिसाल बनीं। 

ख़ुद को साबित करने वाली जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर सोनाझरिया मिंज ने एक इतिहास रचा और सबके लिए एक मिसाल बनीं। 

कहते हैं महिला अगर कुछ ठान ले तो वह वो सब कर गुज़रती है, जो किसी पुरुष के लिए आसान नहीं, घर भी संभालना और परिवार को बनाए रखना, यह बात तो हमारी भारतीय महिलाओं के लिए आम बात है, मगर इस आम को ख़ास बनाने के लिए महिलाओं को ख़ुद जो आत्मविश्वास से भरना होता है और दृढ़ निश्चय करना होता है कि जीवन में वह किसी पर निर्भर नहीं रहेंगी, वह ख़ुद में इस क़ाबिल हैं कि वो जहान को हासिल कर सकती हैं।

फिलहाल हमारे सामने एक ऐसी छवि सामने आई है जो लोगों के लिए मिसाल की तरह काम आएंगी। पुरुषवादी समाज के चश्मे से कहें तो उनके साथ दो समस्याएं हैं, पहली वह महिला हैं और ऊपर से दलित। उनको प्रताड़ित करने के लोगों के पास दो खुले बहाने हैं।

बहरहाल हर तरह की चुनौतियों का सामना कर के ख़ुद को साबित करने वाली जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर सोनाझरिया मिंज, जिन्होंने एक इतिहास रचा और एक मिसाल बनीं और लोगों के लिए। सोनाझरिया मिंज को हाल ही में झारखंड के दुमका स्थित सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (SKMU) के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया है। वह कुलपति के रूप में चुने जाने वाली दूसरी जनजातीय महिला हैं।

एक प्रकाशन के साथ साक्षात्कार में, उन्होंने इस बारे में बात कि के कैसे उन्होंने अपनी शिक्षा के लिए कठिन संघर्ष किया। वह स्कूल में अपने मैथ टीचर के स्टिंगिंग शब्दों को याद करती है, जिसने उसे 100 अंकों के स्कोर को यह कहते हुए खारिज कर दिया था, ‘तुमसे नहीं हो पाएगा (तुम ऐसा नहीं कर सकोगी)।’ मैथ्स के शिक्षक, जो आदिवासी नहीं थे, को पता था कि यह मेरा मजबूत विषय है और मैंने 100 अंक तीन बार स्कोर किए । फिर भी उन्होंने मुझे स्नातक के लिए गणित की पढ़ाई नहीं करने के लिए कहा। इससे मुझे इस विषय का और अधिक अध्ययन करने की इच्छा हुई। मैं और अधिक प्रेरित हुई, मेरे अंदर एक ज्वाला प्रज्वलित हुई।

झारखण्ड के गुमला जिले के ओराओं आदिवासी लोगों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जाता। उन्होंने आगे कहा, “मैं एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में प्रवेश नहीं कर सकती थी, लेकिन मैं आदिवासी छात्रों और शिक्षकों के साथ रांची में एक हिंदी-माध्यम सेंट मार्गरेट विद्यालय में अच्छा प्रदर्शन करने लगी थी।”

गणित के उनके शौक ने उन्हें महिला क्रिश्चियन कॉलेज, चेन्नई से स्नातक करने और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से एमएससी करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद में उन्होंने अपने क्षेत्र को छोड़ दिया और जीवन में नई दिशा को ढूंढने निकल पड़ीं। कंप्यूटर को अपने शब्दों में, “एक नई चुनौती पर ले जाने, और जेएनयू में आने का निर्णय लिया।”

अभी हाल ही में, मिंज ने तमिलनाडु के तिरुप्पुर के टेक्सटाइल हब में फंसे 141 महिला श्रमिकों को वापस लाने में मदद की। श्रमिकों को  23 मई को झारखंड में उनके गांवों में पहुंचाया गया। मिंज का कहना है, “श्रमिकों की यह बड़ी अनदेखी आबादी अब (घर) लौट रही है। सरकार के लिए अपने कौशल को रिकॉर्ड करने के लिए हमारे पास कुछ तंत्र होना चाहिए ताकि उन्हें अवशोषित किया जा सके और उन्हें रोजगार और सम्मान दिया जा सके।”

सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (SKMU) अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद वह दोबारा से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वापस लौटना चाहती हैं और वहाँ पर वह फिर से कंप्यूटर एप्लिकेशन पाठ्यक्रमों में कुछ कक्षाओं को पढ़ाने की उम्मीद रखती हैं।

लोग अक्सर नसीबों पर बात डाल देते हैं, हमारा नसीब ऐसा कहाँ? आप खुद से सवाल कीजिये आप अपने सपनो को साकार करने के लिए कितने डेडिकेटेड हैं? कितनी मेहनत करते हैं आप? सारी बात मेहनत पर टिकी होती है, मगर कई बार मेहनत भी साथ नहीं देती इसका मतलब यह नहीं होता के आपका नसीब ख़राब हैं, कई बार आप उसके लिए बने ही नहीं होते जो आप सोच रहे होते हैं। आप ख़ुद पर विश्वास रखिए। एक दिन सब कुछ हासिल होगा।

मूल चित्र : YouTube 

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