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अपने माँ-बाप को भी शिकायत करी इस बात की। पर उन्होंने यही समझाया, "बेटा! शादीशुदा लोगों में जब एक व्यक्ति गुस्से में हो तो तुम चुप हो जाओ।"
अपने माँ-बाप को भी शिकायत करी इस बात की। पर उन्होंने यही समझाया, “बेटा! शादी शुदा लोगों में जब एक व्यक्ति गुस्से में हो तो तुम चुप हो जाओ।”
क्या एक औरत होना गलत है?
मैं भी एक औरत हूँ। मेरी शादी को डेढ़ बीता था, हर औरत की तरह मेरे मन में भी नई उमंग और उत्साह था। पर जब मेरे पति ने मेरे ऊपर हाथ उठाया तो मैं सकते में थी। समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ? क्यूँ हुआ? मैं अंदर ही अंदर बहुत परेशान थी।
किसको बोलती? घर में मेहमान आये हुए थे। रो भी नहीं सकती थी, चीख भी नहीं सकती थी कि कोई क्या सोचेगा? पर सिसकियों के साथ एक टीस दिल में बैठ गई। अपने माँ-बाप को भी शिकायत करी इस बात की। पर उन्होंने यही समझाया, “बेटा! शादी शुदा लोगों में जब एक व्यक्ति गुस्से में हो तो तुम चुप हो जाओ।”
उनकी बातों को समझ कर ऐसा लगा कि ठीक है, शायद ऐसा ही होता होगा। फिर जब भी लड़ाई होती मैं रोती और फिर चुप हो जाती। शाम को पति हँसाते और मैं अपनी लड़ाई और गुस्सा भूल जाती।
शायद यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती रही है कि अगर मैं पहली बार ही उनको रोक देती तो आज तक मार नहीं खाती। पर समय सबका साथ देता है। आज अपनी ही ताकत से ऐसे आदमी से तन और मन से दूर हो गई हूँ, जिसने प्यार तो दिया लेकिन जानवरों जैसे ज़िन्दगी भी दी, यहाँ तक कि मेरी रोटी भी बंद कर दी थी।
आज साथ रहती हूँ, पर मन और तन से दूर हूँ। आज वो मुझे छू भी नहीं सकता। ज़रुरी नहीं कि शादी का सुख बिस्तर ही दे। अगर पति मन को छू ले, तो सब उसका ही होता है। पर आज मैं अपने लिए सही हूँ और मजबूत हूँ।
आज ही एक मैसेज में पढ़ा कि अगर पति-पत्नी का रिश्ता प्यार का नहीं, लड़ाई का ही है, तो वो आपस में संबंध बनाने में भी कतराते होंगे, तो ऐसे में पत्नी दूसरी जगह सम्बन्ध बना लेती है।
ये गलत तथ्य है। अरे हर बात में औरत ही क्यों गलत चीज़ों के लिए ज़िम्मेदार होती है? पुरुष खुलेआम सब काम करते हैं और वही चीज़ औरत करे तो गलत कहा जाता है।
अगर आदमी एक रात बाहर से ना आये तो वो काम से गया है, और वहीं अगर औरत देर से भी आये तो क्यों गलत माना जाता है? आखिर ऐसा दोहरा बर्ताव क्यूँ?
अगर आदमी अपने को भगवान समझता है, तो ये गलत है। क्यूँकि औरतों की दुनिया में जो भी जद्दोजहद है और मजबूरियां हैं। उसकी जड़ कहीं ना कहीं मर्दों की बनाई इस सत्ता के जाल में ही है। जहाँ औरतों को जीने के माकूल अवसर मुहैया ही नहीं हैं।
मूल चित्र : Canva
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