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स्त्री तेरी ये दशा, हर युग में क्यों यही रही…?

क्यों सर्वशक्तिशाली चुनकर भी तुम्हारी दशा वही रही? क्यों रावण से जीतकर भी तुम ही शक की पात्र बनी? स्त्री तेरी यही दशा कलियुग में भी क्यों रही?

क्यों सर्वशक्तिशाली चुनकर भी तुम्हारी दशा वही रही? क्यों रावण से जीतकर भी तुम ही शक की पात्र बनी? स्त्री तेरी यही दशा कलियुग में भी क्यों रही?

त्रेता युग में मां सीता,
द्वापर युग में द्रौपदी?
हाय!स्त्री तेरी यही दशा
कलियुग में भी क्यों रही?

कितनी अग्निपरीक्षा दोगी !
कितने प्रतिशोध में भड़कोगी?
क्यों सब समर्पित कर भी
तुम बेचारी ही हो?

क्यों सब कुछ होते हुए भी
तुम किस्मत की मारी हो?
क्यों पुरुषोत्तम चुनकर भी
तुम्हारी दशा नहीं सही?

क्यों सर्वशक्तिशाली चुनकर भी
तुम्हारी दशा वही रही?
क्यों रावण से जीतकर भी
तुम शक की पात्र बनी?

क्यों पतिव्रता होकर भी
तूने बार- बार प्रमाण दिए?
क्यों पांचाली होकर भी
तुम क्रीड़ा में दांव पर लगी!

क्यों सच पर चलकर भी
तुम चीर हरण की शिकार हुई?
क्यों आज भी निर्भया
पुरुष के साथ होकर भी पीड़ित हुई!

क्यों मालती बेगुनाह होकर भी
तेज़ाब फेंक तड़पायी गयी?
क्या दोष है स्त्री तेरा,
क्या है तेरी सीमा?

तू चारदीवारी के भीतर भी
लांछन से भरी पड़ी?
तू दफ्तर में कठिन परिश्रम कर
फिर भी है चरित्रहीन?

अब समय नहीं है रोने का,
अब समय नहीं दुखी होने का,
तू अपनी कर्म पथ पर चलती रह,
तू अपनी पहचान बना। 

इतिहास गवाह है स्त्री तेरा
तू हर युग में सहनशील रही,
तूने सत्य का साथ देकर,
अपनी एक पहचान गढ़ी। 

तू बस आगे बढ़ती जा,
न सोच कौन तेरे सँग है!
तू अकेली ही मंजिल पा,
मत रुक तू सुनकर समाज भर्त्सना। 

तू सदैव पवित्र थी,
तू सदैव सच्चरित्र है,
नहीं किसी को शक्ति कि
तेरी आंके तेरा चरित्र!

मूल चित्र : Canva

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