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सुचेता कृपलानी ने एक ऐसे समय में यूपी जैसे राज्य का मुख्यमंत्री पद संभाला, जब राजनीति में विरले ही किसी महिला को इतना ऊंचा पद दिया जाता था।
सुचेता कृपलानी को अधिकांश लोग इस नाते ही जानते हैं कि उन्होंने एक लेक्चरर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने के साथ, आज़ादी के संघर्षों में भी शामिल रहीं। उन्होंने संविधान सभा में वंदे मातरम् गाया और वे उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनी। उनका परिचय केवल इतना ही नहीं है। वह मन में गुस्सा और देश के लिए कुछ कर जाने को तैयार रहने वाली महिला भी थीं।
सुचेता कृपलानी उन्हीं नामों में से एक हैं, जिन्होंने महात्मा गाँधी और आचार्य कृपलानी की बहन के विरोधों के बावजूद अपने से काफी बड़े आचार्य कृपलानी से शादी की थी लेकिन उनकी पहली और आखिरी प्राथमिकता देश ही थी।
आज़ादी के संघर्ष में महिला संगठनों का नेतृत्व करते-करते उन्हें राजनीति में दिलचस्पी हुई। साल 1940 में सुचेता ने ऑल इंडिया महिला काँग्रेस का गठन किया। आज़ादी के बाद काँग्रेस में हो रहे बदलावों की स्थिति को देखते हुए सुचेता, जे.बी की नई पार्टी ‘किसान मज़दूर पार्टी’ में चली गईं।
1952 के चुनाव में वह नई दिल्ली के संसदीय क्षेत्र से जीत गईं लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने काँग्रेस में वापसी कर ली। 1957 में दिल्ली के संसदीय क्षेत्र से उन्होंने दोबारा जीत हासिल की। दोनों पति-पत्नी अब अलग-अलग पार्टियों में थे। इसके बावजूद किसी ने एक-दूसरे पर सवाल नहीं खड़े किए।
बंगाल से पंजाब में जाकर बसा सुचेता का परिवार धार्मिक लेकिन आदर्शवादी और सामाजिक वातावरण का था। सुचेता का जन्म 25 जून 1908 को अंबाला में हुआ था। सुचेता की परवरिश लाहौर में हुई जिसके बाद वह इंद्रप्रस्थ और सेंट स्टीफेंस जैसे कॉलेजों से पढ़ी। उनकी बड़ी बहन सुलेखा की अचानक सेहत बिगड़ने से मृत्यु हो गई और बाद में उनके पिता भी चल बसे।
यह 1929 का दौर था जब परिवार को चलाने का पूरा बोझ सुचेता के कंधों पर आ गया था। ऐसे वक्त में वह परिवार संभालने के लिए बतौर प्रोफेसर बीएचयू चली गईं।
जे.बी कृपलानी भी तब बीएचयू में इतिहास के प्रोफेसर थे लेकिन उन्होंने गाँधी के असहयोग आंदोलन के लिए साल भर में नौकरी छोड़ दी थी। साल 1934 के दौरान बिहार में भयंकर भूकंप आया था। इसी बीच बतौर राहत कार्यकर्ता दोनों बिहार पहुंचे थे। माना जाता है कि यहीं से दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी।
महिलावादी होने के कारण सुचेता ने अपनी नौकरी छोड़ी और गाँधी के साथ एक महिला संगठन से जुड़ गईं। जे.बी कृपलानी भी तब तक गाँधी के बहुत अजीज़ बन चुके थे और सभी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। यही वह दौर था जब जे.बी और सुचेता का प्यार परवान चढ़ा लेकिन इस प्यार से कइयों को आपत्ति हुई, जिसमें गाँधी भी शामिल थे।
जब गाँधी को इस बात की भनक लगी तो वह हैरान रह गए। यहां तक कि गाँधी ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि मैं इतने गंभीर और दृढ़ साथी को नहीं खोना चाहता। यह आज़ादी के आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण समय है। गाँधी यह जे.बी कृपलानी के लिए कह रहे थे लेकिन फिर सुचेता के जुनून को देखते हुए उन्होंने इस शादी को अपनी सहमति दे दी। शादी के बाद कुछ नहीं बदला। सुचेता और जे.बी दोनों गाँधी के हाथ बनकर सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो तक उनके साथ रहे।
सुचेता महिला मोर्चा को इकट्ठा करने में जुटी रहीं। उन्होंने महिलाओं को आत्मबल से लड़ना और सशक्त बनना सिखाया। गाँधी ने सुचेता को बाद में कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट का संगठन सचिव भी बनाया। आज़ादी के बाद मज़हबी उन्माद के वक्त सुचेता गाँधी के साथ पीड़ितों की मदद के लिए नोआखाली भी गईं।
सुचेता संविधान सभा की सदस्य और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की सदस्या भी रहीं। साथ ही 1957 में झांसी से लोकसभा के लिए भी चुनी गईं। जब उत्तर प्रदेश काँग्रेस कमलापति त्रिपाठी और चंद्रभान गुप्ता के समूहों में विभाजित था, तब चंद्रभान गुप्ता के आग्रह पर 1962 में सुचेता कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य चुनी गईं थीं।
साल भर बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने कर्मचारियों की हड़ताल का डटकर सामना किया। कर्मचारियों की मांगों के आगे वह नहीं झुकीं और मुख्यमंत्री के रूप में सफल भी रहीं। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि महिलाएं क्षमतावान प्रशासक और योग्य राजनीतिज्ञ होती हैं।
1969 में काँग्रेस में फूट पड़ने पर उन्होंने दिल्ली और अन्य प्रदेशों में काँग्रेस को संगठित करने में सहयोग दिया। स्टूडेंट पॉलिटिक्स शुरू होने पर उन्होंने उसमें सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी यह खूबी थी कि वह थकती नहीं थीं। उनकी सादगी और कर्तव्य निष्ठा से लाल बहादुर शास्त्री चकित रहते थे।
काँग्रेस से मोहभंग होने के कारण उन्होंने 1971 सक्रिय राजनीति को अलविदा कर दिया। उन्होंने नई दिल्ली के सर्वोदय एनक्लेव में घर बनवाया और जे कृपलानी के साथ “इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया” के लिए तीन-चार आत्मकथनात्मक लेख लिखे, जिसमें उनके प्रारंभिक जीवन का ब्यौरा मिलता है। अपनी आत्मकथा वह पूरा नहीं लिख पाईं। शिमला पहाड़ी में सड़क से फिसलकर एक गड्ढे में गिर जाने से गंभीर दुर्घटना की शिकार हुईं।
राजनीति में अधिक सक्रिय और स्वयं पर ध्यान नहीं देने के कारण वह अस्वस्थ होने के बावजूद भी सक्रिय रहीं। 29 नवंबर 1974 को तीसरी बार दिल का दौरा पड़ने से उनकी सारी सक्रियता छिन गई और तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।
इतिहास में सुचेता को इसलिए भी याद किया जाता है कि उन्होंने संविधान सभा में वंदे मातरम गाया था परंतु उनकी ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी’ पढ़कर यही लगता है कि उन्हें इसलिए याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे समय में यूपी जैसे राज्य का मुख्यमंत्री पद संभाला, जब राजनीति में विरले ही किसी महिला को इतना ऊंचा पद दिया जाता था। उनकी इसी उपलब्धि ने आने वाले समय में महिलाओं के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त कर दिया।
संदर्भ – इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया
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