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अरे तुम लड़की हो! हम भी तो देखें तुम क्या कर लोगी?

लड़की हो तो क्या? अपने सपनों को पूरा करने की ठान लो, ज़रूर पूरे होंगे। मैंने हार कर भी हार नहीं मानी, बस अब कुछ कदम और फिर ओलिंपिक...

लड़की हो तो क्या? अपने सपनों को पूरा करने की ठान लो, ज़रूर पूरे होंगे। मैंने हार कर भी हार नहीं मानी, बस अब कुछ कदम और फिर ओलिंपिक…

मैं दिशा…  बचपन से बस यही सुना… लड़की हो क्या कर लोगी?

बस ये बात बचपन से सुनते हुए आयी। मध्य प्रदेश के छोटे से जिले धार मे एक मध्यम वर्गीय परिवार मे मैं पली बड़ी। घर की बड़ी बेटी।

मेरे हार्ट मे होल था

पापा ने सोच कर रखा था, जो भी बच्चा होगा उसे खिलाड़ी बनाएंगे, पर मेरी किस्मत ख़राब थी। मेरे हार्ट मे होल था। डाक्टर ने कह दिया था कि बड़ी होने के बाद ऑपरेशन करना पड़ेगा। पापा ने मुझे संगीत स्कूल मे डाल दिया, संगीत सिखने के लिये।

पापा खुद स्पोर्ट्स पर्सन थे। बहुत से खेलों के जानकर थे। सबको सिखाते थे, पर खुद की बेटी को नहीं सीखा पाए। दूसरी भी उनकी बेटी ही थी, तो शायद उन्होंने उम्मीद छोड़ दी थी।

जब पता चला कि वो होल बंद हो गया है

पंद्रह साल की होने के बाद ज़ब सारे टेस्ट हुए तो पता चला कि वो होल बंद हो गया है। सबसे ज्यादा खुश पापा ही थे।

फिर शुरू हुयी असली जंग.. स्पोर्ट्स फील्ड मे कदम रखा पापा के साथ। बैडमिंटन को प्रोफेशनल खेल के रुप मे चुना। उसके पहले टेबल टेनिस खेला मज़ा नहीं आया। जुडो में स्टेट खेली, मज़ा नहीं आया.. बैडमिंटन ही मन को अच्छा लगा।

बीस साल की उम्र में, खेल कोटा में सरकारी नौकरी ज़रूर मिल गयी

डिस्ट्रिक्ट में विनर बनने के बाद आगे रास्ते कठिन थे और बहुत देर से शुरू करने के कारण बहुत पीछे रह गयी थी। स्कूल में स्टेट चैंपियन बनी। कॉलेज में यूनिवर्सिटी कप्तान बनने का मौका मिला।  सुविधाओं के अभाव में ज्यादा कर पाने का मौका नहीं मिला। लेकिन बीस साल की उम्र में, खेल कोटा में सरकारी नौकरी ज़रूर मिल गयी। पापा की इच्छा पूरी हुयी।

‘लड़कियों पर पैसा क्यूँ खर्च कर रहे हो? फिजूल जायेगा।’

छोटी बहन ने भी राष्ट्रीय खिलाड़ी बन पापा का नाम रोशन किया। सब लोग पापा के पीछे पड़े रहते थे कि ‘लड़कियों पर पैसा क्यूँ खर्च कर रहे हो? फिजूल जायेगा।’ यहाँ तक कि दादा-दादी और बुआ तक कहती थीं, “तुम्हारी लड़कियां भाग जायेंगीं!” पर पापा ने किसी की नहीं सुनी। 

निर्णायक की परीक्षा में राज्य स्तर पर प्रथम आयी

रेलवे में नौकरी करने के बाद खेलने को समय कम मिलने लगा तो निर्णायक की परीक्षा दी। राज्य स्तर पर प्रथम आयी। ज़ब राज्य की प्रतियोगिता में निर्णायक के तौर पर काम करना शुरू किया तो बहुत आलोचना हुयी, क्यूँकि उम्र सिर्फ बाईस साल की थी। बड़ों को खलने लगा और सबसे ज़रुरी बात, मैं लड़की थी। 

कभी पास नहीं हो पाओगी..

आज तक मध्य प्रदेश मे कोई महिला निर्णायक नहीं थी। पुरुषों का बोलबाला था। सबने विरोध किया। पर मैंने अपना काम जारी रखा।  मुझे निर्णायक के रूप में काम करना बहुत अच्छा लग रहा था। बहुत मेहनत की। राष्ट्रीय स्तर पर ग्रेड दो की परीक्षा में शामिल होना था। आधे से ज़्यादा लोगों ने सीधे बोल दिया, “कभी पास नहीं हो पाओगी..”

सबकी बोलती बंद हो गयी

मैं अपनी मेहनत के दम पर पास हुई और सबके मुँह पर तमाचा लगा। अब सबकी बोलती बंद हो गयी थी। अब मेरा काम बोलता था। अब हर कोई निर्णायक के रूप में मुझे बुलाना चाहता था। वो लोग भीं जिन्हे कभी मुझसे सबसे ज्यादा तकलीफ़ थी..

बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स

सबसे शानदार अनुभव बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में शिरकत करने का रहा। दोनों जगह में उम्र में सबसे छोटी थी।  राज्य की एकमात्र महिला निर्णायक और पूरे भारतीय रेलवे की भी एकमात्र महिला निर्णायक के रूप में मैंने अपनी पहचान बनाई। 

राज्य की एकमात्र ग्रेड वन निर्णायक का गौरव

ग्रेड वन की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास कर राज्य की एकमात्र ग्रेड वन निर्णायक का गौरव प्राप्त किया। 2017 में पहली अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शिरकत किया।  ये सब कुछ सपने जैसा ही था।  कभी सोचा नहीं था इतना कर पाऊँगी।

पापा और पति दोनों ने हौसला बढ़ाया

हमेशा घर और बाहर नकारात्मक लोग ही मिले जिन्होंने कभी आगे नहीं बढ़ाया। बस पापा और पति दोनों ने हौसला बढ़ाया और आज अपनी एक पहचान बनाने मे सहायता की। जो कभी कहते थे, “लड़की हो क्या कर लोगी?” वो आज कहते हैं, “सीखो इनसे कुछ। लड़की होकर भी आज कहां पहुंच गयी है..”

बस अपने सपनों को पूरा करने की ठान लो

जो कभी नहीं चाहते थे कि मैं निर्णायक बनूँ, आज वो खुद अपनी बेटी को मेरे बराबर लाने के लिये लोगों के हाथ जोड़ रहे हैं। अच्छा लगता है देख कर कि जो किया अपनी मेहनत से किया किसी के आगे हाथ नहीं जोड़े।

बस अपने सपनों को पूरा करने की ठान लो। ज़रूर पूरे होंगे। हार कर भी हार नहीं मानी। बस अब कुछ कदम और फिर ओलिंपिक…

मूल चित्र : Canva

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