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विधायक जीतू पटवारी ने मोदी सरकार की असफल योजनाओं को ‘बेटी’ करार दिया अर्थात उनके हिसाब से आज भी बेटी को भारतवर्ष में बोझ ही समझा जाता है?
राजनीती में एक दूसरे का मजाक उड़ाना कोई नयी बात नहीं है। आए दिन राजनेता एक दूसरे पे तंज कसने के नाम पर क्रूरता की हदें पार कर के एक दूसरे का मजाक बनाते रहते है। इसका सबसे न्यूनतम उदहारण है कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश से विधायक जीतू पटवारी का हाल ही में किया गया एक ट्वीट।
जीतू पटवारी ने मोदी सरकार की पांच प्रमुख योजनाओ को भारतवर्ष के लिए एक बेटी करार दिया और विकास को ‘बेटा’
इस सोच के साथ उन्होंने यह ट्वीट किया – “पुत्र के चाकर में पांच पुत्री पैदा हो गई, 1- नोटबंदी , 2 – GST , 3 – महंगाई , 4 – बेरोज़गारी , 5 – मंदी ! परन्तु अभी तक विकास पैदा नहीं हुआ !”
अब यहाँ पर यह बात स्पष्ट करना बहुत ज़रूरी है की यह पोस्ट किसी राजनितिक पार्टी की बुराई या वाह वही करने के लिए नहीं अपितु समाज कि पितृसत्तात्मक सोच जो बेटियों को बोझ समझती है उसे दर्शाने का प्रयत्न कर रहा है।
हालाँकि पटवारी जी के यह ट्वीट अब डिलीट हो चूका हैं, परन्तु यह बात अनदेखा नहीं की जा सकती की, पटवारी जी ने मोदी सरकार कि बुराई करने के लिए उनकी योजनाओ को भारतवर्ष पर एक ‘बेटी’ करार दिया। अब ये सोच सिर्फ पटवारी जी की अकेली नहीं है अपितु यह हमारे पितृसत्तत्मक समाज में रहने वाले अधिकतम लोगों की सोच है।
‘बेहद दुखद बात है की आपके घर बेटी हुई है’
‘बेटी पलना तो किसी पराए के खेत सींचने जैसा है’
‘बेटा होता तो पैसे लाता बेटी तो बस पैसे लुटवाएगी’
‘बोझ , बोझ, बोझ….’
अगर किसी परिवार में बेटी हो जाए तो समाज कि तरफ से यह सारी बातें आना कोई नाई बात नहीं है। यह बात तो सब जानते है कि हमारे समाज में बेटे की लालसा में पत्नियों का उत्पीड़न करना कोई नई बात नहीं है।
और फिर यह बात भी सब जानते है कि बेटे की लालसा में जब बेटी हो जाती है तो कैसे उसे बोझ मानकर या तो मार दिया जाता है या फिर ज़िन्दगी भर उसे तिल-तिल कर मरने पर मजबूर कर दिया जाता है। तो बेटियां परिवार पर एक बोझ होती हैं ये हमारे पितृसत्तात्मक समाज की एक सच्चाई है।
यहाँ पर एक ओर चीज़ पर अध्ययन करना बहुत ज़रूरी है कि पटवारी जी ने मोदी सरकार का मजाक बनाने के लिए उनकी योजनाओं को एक बेटी या एक लड़की बोला , क्यूंकि लड़की होना शर्मनाक बात है न?
यह भी कोई नई बात नहीं है की किसी का मजाक खासकर के किसी मर्द का मज़ाक बनाने के लिए उसे ‘लड़की’ या बेटी बोला गया हो।
‘लड़कियों के जैसे रो रहा है’
‘लड़कियों के जैसे कमजोर है’
‘छी: कितना नामर्द है, लड़की कहीं का’
जी हाँ यह सारे वाक्य हमारे समाज की सचाई है। हमारे समाज के लिए लड़की होना एक अपमानजनक बात है। किसीको को लड़की बुलाना उसका अपमान करना तथा मजाक उड़ाने का जरिया है।
अब हमारे लिए यह बात समझना बहुत ज़रूरी हो गया है कि हम अब ‘लड़की’ शब्द को एक मजाक के तौर पर इस्तेमाल करना बंद करें। अगर हम देवी की पूजा और सम्मान करते हैं तो हमे औरतों का भी सम्मान करना चाहिए। घर में एक बेटी का पैदा होना कोई शर्मनाक या अपमानजनक बात नहीं है। समय आ गया है की हमारा समाज इस बात को गांठ बांध लें।
मूल चित्र : Twitter
I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...
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