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कई बार दौड़ती भागती ज़िंदगी में हम अपनों के एहसासों को कहीं पीछे छोड़ आते हैं, जब वह वक़्त पीछे छूट जाता है, तो हमें निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता।
जीवन के पल का क्या पता, आज यहाँ है, कल विदा।
शान शौकत, रूपया, पैसा यहीं रह जाता है, जब आए बुलावा तो कोई ना साथ निभाता है।
जब मौत खड़ी दरवाजे पर, तब याद आए, बीते सारे पल, तब लगे जिंदगी छोटी सी, अरमानों की माला टूटी सी।
तब लगे निकल गयी जिंदगी कमाने में, सारे रिश्ते गँवाने मे, तब रिश्तों का ना मोल समझा, हमेशा मोह माया में था, उलझा।
समय ना था, माता-पिता का हाल ना पूछा, तब, उसके आगे दौड़ में ना था कोई दूजा।
आज माँ की गोद मे आराम को दिल चाहता है, जब पिता का हाथ सिर पर तसल्ली दे जाता है।
अपनों को बाँहो में भर लूँ, कसकर भागती जिंदगी को पकड़ लूँ।
काश! काश! ऐसा हो पाता! आज वक्त रूक जाता..
सच कहा, जिंदगी दो पल की दास्तां आज हम यहाँ अगले पल हम कहाँ।
मूल चित्र : Canva
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