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डांसिंग क्वीन और बॉलीवुड की फ़ेवरेट दादी, जोहरा सहगल भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो हमेशा से हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं।
जिस उम्र में अक्सर लोग काम छोड़ देते हैं, उसी उम्र में इस लीजेंडरी कलाकार ने सबके दिलों पर राज़ किया। इनके पास टैलेंट का भंडार था, और वो अपनी जिंदगी खुलकर जीती थी। 100 साल की उम्र में भी उनकी चेहरे के मुस्कान देखकर 5 साल के बच्चे की याद आ जाती थी।
डांसिंग क्वीन, थिएटर का हीरा, और बॉलीवुड की फ़ेवरेट दादी, यानि कि जोहरा सहगल भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वो हमेशा से हमारे लिए प्रेरणा का स्तोत्र रही हैं। अपनी शर्तो पर जीवन जीने वाली जोहरा सहगल शुरू से ही विद्रोही और नियमों को चुनौती देने वाली थीं। एक लड़की के रूप में, जहाँ उनसे अन्य लोगों की तरह गुड़िया के साथ खेलने की उम्मीद थी, जोहरा को पेड़ों पर चढ़ना और खेलना अधिक रोचक और मज़ेदार लगता था। साहिबज़ादी ज़ोहरा बेगम मुमताज़-उल्लाह खान नाम से जन्मी ज़ोहरा का निधन 102 की उम्र में 10 जुलाई 2014 को हुआ। लेकिन ये आज भी सबके दिलों में ज़िंदा हैं।
सात बहन भाइयों के साथ पली बढ़ी जोहरा सहगल टॉम बॉय थीं जिन्हे गुड्डे गुड्डियों के खेल से ज्यादा पेड़ों पर चढ़ना अधिक रोमांचक लगता था। उन की माँ अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलवाना चाहती थी। और उनके निधन के बाद, उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए, ज़ोहरा और उनकी चारों बहनों को लाहौर के क्वीन मैरी कॉलेज भेज दिया था। और वहीं जोहरा आर्ट और कल्चर से जुड़ीं और उसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
ग्रेजुएशन के तुरंत बाद जोहरा यूरोप चली गयी और वह उनकी आंटी के माध्यम से वो बेले डांस से रूबरू हुई। डांस में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होने के बावजूद ज़ोहरा मैरी विगमैन, जर्मनी के बेले स्कूल में प्रवेश पाने में कामयाब रहीं। इस इंस्टीटूशन में पढ़ने वाली वो पहली भारतीय थीं। इसी दौरान उन्होंने उदय शंकर को शिव पार्वती वाला बेले डांस करते हुए देखा और वो उनसे बहुत प्रभावित हुईं और बैकस्टेज उनसे मिलने पहुंच गयीं। यही ज़ोहरा सहगल के जीवन का टर्निंग पॉइंट था।
“जापान के दौरे के लिए निकल रहें हैं, क्या तुम तुरंत हमसे जुड़ सकती हो?” – उदय शंकर जी के ये शब्द सुनकर जोहरा सहगल तुरंत उनसे जुड़ गयी और यहीं से उनके करीयर की शुरुवात हुई। 8 अगस्त 1935, में वो उनकी मंडली के साथ जुड़ गयीं और जापान, इजिप्ट, यूरोप और अमेरिका में उन्होंने मुख्य महिला के रूप में डांस करा। 1940 में वें भारत लौटी और उदय शंकर जी के अल्मोड़ा स्थित उदय शंकर इंडिया कल्चरल सेंटर में टीचर के रूप में काम किया। और वही उनके भावी पति से उनकी मुलाकात हुई।
अल्मोड़ा में जोहरा की मुलाक़ात कामेश्वर सहगल से हुई, जो इंदौर के एक युवा वैज्ञानिक, चित्रकार और डांसर थे। और उन्होंने शादी करने का फ़ैसला लिया। उनके करियर चॉइसेज़ की तरह इस फ़ैसले का भी विद्रोह हुआ, क्यूंकी उनके पति उनसे उम्र में 8 वर्ष छोटे थे और एक हिन्दू परिवार से थे। लेकिन ज़ोहरा हमेशा से वही करती थीं , जो उन्हें सही लगता था, और दोनों की 1942 में शादी हो गयी। उसके बाद वो आजादी से पहले के लाहौर में चले गए और वह उन्होंने ज़ोहरेश डांस इंस्टिट्यूट खोला। लेकिन सांप्रदायिक तनाव के चलते वो लोग अपनी 1 साल की बेटी किरण को लेकर मुंबई शिफ्ट हो गये और वहां 1945 में जोहरा सहगल थिएटर से जुड़ गयी।
मुंबई में उन्होंने पृथ्वी राज़ थिएटर जॉइन करा और देश में कई जगह अपना बेहतरीन परफॉर्मेंस दिया। उन्होंने 1945 में इंडिया पीपल थिएटर एसोसिएशन (IPTA) भी जॉइन किया। जोहरा की बहन ऊर्ज़ा थिएटर जगत में एक जानी मानी हस्ती थी। उन्हीं की मदद से ज़ोहरा सहगल थिएटर से जुड़ीं और अपनी अदाओं से पूरे थिएटर पर राज़ करा।
1946 में IPTA की पहले फिल्म प्रोडक्शन, धरती के लाल से ज़ोहरा ने बॉलीवुड में कदम रखा था। उसके बाद उन्होंने चेतन आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म, नीचा नगर में काम करा। ये पैरेलल सिनेमा ( न्यू वेव सिनेमा ) की बहुत सक्सेसफुल फिल्मों से एक रही है और यह पहली फिल्म थी जिसे विदेश में भी सराहना मिली हो। इसे कांन्स फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था। इसके बाद ज़ोहरा ने बॉलीवुड के कई फिल्मों जैसे आवारा (1951), बाज़ी (1951) आदि के आइकोनिक गानों की कोरियोग्राफी भी करी।
1959 में उनके पति कामेश्वर सहगल की मृत्यु हो गयी और वो मुंबई छोड़कर दिल्ली चली गयी। वहां उन्हें नव स्थापित नाट्य अकादमी की डायरेक्टर बना दिया गया। लगभग 3 साल वहां काम करने के बाद उनकी जीवन ने एक बार फिर नया मोड़ लिया और वो लंदन चली गयी।
1962 में सहगल को एक ड्रामा स्कालरशिप मिली, और वो उसी सिलसिले में लंदन चली गयीं। वहां उन्होंने राम गोपाल जी के डांस स्कूल में उदय शंकर शैली सिखाई। इसके बाद उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ आया और उन्हें हॉलीवुड में काम करने का मौका मिला।
1964 में उन्होंने अपना टेलीविज़न डेब्यू रुडयार्ड किपलिंग की स्टोरी पर आधारित बीबीसी के एक शो से किया। उसके बाद 1964 – 1965 के तकरीबन उन्होंने साइंस फ़िक्शन सीरिज़ में भी काम किया था। इसके बाद उन्हें अपना पहला फिल्म ब्रेक 1984 में द ज्वेल इन द क्राउन से मिला। ऐसे ही कई अन्य कामयाब प्रोजेक्ट्स जैसे तंदूरी नाइट्स, माय ब्यूटीफुल लॉन्डरेट में उनके आइकोनिक रोल के लिए उन्हें आज भी याद करा जाता है।
1980 के दशक में ज़ोहरा सहगल के कैंसर का भी खुलासा हुआ , लेकिन उन्होंने उससे भी जंग जीत ली। वो कहती हैं \” जीवन कठिन रहा है, लेकिन मैं उससे भी ज्यादा मजबूत रही हूँ\”। इसके बाद ज़ोहरा ने पूरी लगन के साथ एक बार फिर बॉलीवुड में एंट्री ली और कई यादगार रोल निभाए। उन्होंने शुक्रिया (1985), दिल से (1998), हम दिल दे चुके सनम (1999), दिल लगी (1999), चलो इश्क़ लड़ायें (2002), वीर ज़ारा (2004), चीनी कम (2007), सावरियाँ (2007) जैसी सुपर हिट फिल्मों में काम किया और सबकी पसंदीदा दादी बन गयी।
करन ज़ोहर की फिल्म कभी ख़ुशी कभी ग़म में उन्होंने दादी का रोल निभाया था, और तभी से वो अपने इस आइकोनिक किरदार के लिए चर्चा में आ गई।
भारत लौटने के बाद उन्होंने अपनी पहली पोएट्री परफॉर्मेंस 1983 में उदय शंकर जी की याद में दी थी। उसके बाद उन्हें कई कार्यक्रमों में पोएट्री के लिए भी बुलाया जाने लगा। पाकिस्तान में भी उनके लिए एक पोएट्री फंक्शन “जोहरा के साथ एक शाम” का आयोजन हुआ था। वो अक्सर पंजाबी और उर्दू में कविताएं सुनाया करती थी। और कहा जाता है की हर स्टेज परफॉर्मेंस के बाद ऑडियंस की तरफ से डिमांड आती थी की वो एक बार हफ़ीज़ जी का चर्चित नज़्म “अभी तो मैं जवां हूँ” गाये।
अगर इनके ख़िताब गिनना शुरू करे, तो बहुत सारे हैं। जोहरा को 1998 में पद्मश्री, 2001 में कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया और 2004 में संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें अपने सर्वोच्च पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी फ़ेलोशिप उनके जीवन भर की उपलब्धियों के लिए दिया। उन्हें 2008 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण भी मिला था, जिसे यूनाइटेड नेशन्स पापुलेशन फंड (यूएनपीएफ) ने लाडली ऑफ द सेंचुरी का टाइटल दिया।
जोहरा सहगल की बेटी किरण सहगल ने उनकी बायोग्राफी भी लिखी है – “ज़ोहरा सहगल – फैटी”, जो 2012 में पब्लिश हुई है।
इस दुनिया से जाने के बाद भी, उनकी कुछ बातें हमें जीवन को एक नई रोशनी के साथ देखने के लिए प्रेरित करती हैं।
जब वो कैंसर से जंग जीतकर आयी थी, तो उन्होंने कहा था कि जीवन कठिन रहा है लेकिन मैं उससे भी ज़्यादा कठोर रही हूँ। हर किसी के जीवन में कठिनाइयाँ आती है, लेकिन ज़ोहरा सहगल की इन बातों से सिख मिलती है की हम किसी भी चुनौती का सामना उसके सामने डटकर खड़े रहे तो आसानी से कर सकते हैं।
जोहरा सहगल अपनी जिंदगी को खुलकर जिया है, वो कहती है की मैंने अपनी जिंदगी को पूरी तरह से जिया है, मैंने अपनी जिंदगी को सबसे अच्छे से निचोड़ लिया है।
वो कहती हैं कि मैं खुद को मौत के लिए तैयार कर रही हूँ। जब मैं सोने जाती हूं, तो मैं मुस्कुराते हुए सोने की कोशिश करती हूं, ताकि जब मैं मर जाऊं, तो मेरे होठों पर मुस्कान रहे। अगर कोई आपसे कहे की मैं मर चुकी हूँ, तो एक बड़ी मुस्कान दे। हां मृत्यु को स्वीकार करना एक बात है, लेकिन उसे दोस्त की तरह स्वीकार करना सबसे बड़ी बात है।
हमेशा आगे बढ़ते रहो, चाहे जो भी हो। ज़ोहरा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अक्सर मुझे लगता था कि अब मुझे काम करना छोड़ देना चाहिए, लेकिन फिर मेरे अंदर से हर सुबह आवाज़ आती थी की यू मस्ट गो ऑन यानि की तुम्हें काम जारी रखना चाहिए। जो होगा देखा जायेगा। और शायद इसी लिए ज़ोहरा इंडस्ट्री में काम करने वाली सबसे उम्र दराज़ और ऊर्जावान कलाकार थीं।
वो कहती थी की अगर आपके पास अच्छा सेंस ऑफ़ ह्यूमर नहीं है तो जिंदगी बहुत कठोर बन जाती है। एक अच्छे सेंस ऑफ़ ह्यूमर से आप हर ट्रेजडी की एक फनी साइड ढूंढ सकते हैं।
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था की मैंने मेरे सुंदर रेशम के बुरखे को पेटीकोट बना लिया। इसी बात से हम अंदाजा लगा सकते है की वो महिलाओं के साथ हो रहे भेद भाव को किस तरीके से खरोच कर आगे निकल जाती थी। और इतना ही नहीं वो सेक्स के बारे में भी खुलकर बात करती थी। 2013 के The guardian के एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया की आप सबसे ज्यादा की एन्जॉय करती हैं तो उन्होंने कहा सेक्स , सेक्स और सेक्स। 100 साल की उम्र में आकर ये कहना आसान बात नहीं है, खासकर के इंडियन सोसाइटी में।
ख़ैर जोहरा सहगल से जीवन से सिखने को इतना कुछ है की शायद शब्द कम पड़ जायेंगे। जीवन के हर पड़ाव पर उन्होंने खुद पर विश्वास रखा और चुनौतियों का सामना करती चली गयी। उनको गए हुए लगभग 6 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन वो, उनकी चेहरे की हसीं, उनकी अदाएं, उनके डांस मूव्स, उनकी कविताये हम सबके बीच हमेशा ज़िंदा रहेगीं। ज़ोहरा सहगल की कहानी का अंत में समापन करना बहुत मुश्किल है। या उन्हीं के शब्दों में करू तो ज़्यादा बेहतर होगा। वो कहती है, “अभी बहुत कुछ करना है, बहुत जीवन जीना है”– और यही बात हर इंसान को याद रखनी चाहिए।
मूल चित्र : YouTube
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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