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कुछ स्पर्श मिर्ची से तीखे, कुछ स्पर्श बिजली के झटके! कुछ ऐसा जो तेरी कहानियों में न था, कुछ ऐसा मेरी-तेरी सोच से परे था...कुछ ऐसा था वो स्पर्श...
कुछ स्पर्श मिर्ची से तीखे, कुछ स्पर्श बिजली के झटके! कुछ ऐसा जो तेरी कहानियों में न था, कुछ ऐसा मेरी-तेरी सोच से परे था…कुछ ऐसा था वो स्पर्श…
चेतावनी : इस पोस्ट में चाइल्ड एब्यूज का विवरण है जो कुछ लोगों को उद्धेलित कर सकता है।
ऐ माँ! तू रोज़ कहानी सुनाती है, आज तू कुछ और सुना। चल आज तू मुझे अपनों से, बचने का गुर सिखा।
सुनाना है तो सुना मुझे, बताना है तो बता मुझे, कि करूं मैं कैसे स्पष्ट। अपने और पराए और अच्छे-बुरे का स्पर्श।
कुछ स्पर्श मिर्ची से तीखे, कुछ स्पर्श बिजली के झटके! कुछ ऐसा जो तेरी कहानियों में न था, कुछ ऐसा मेरी-तेरी सोच से परे था…
यां डरती, हिचकचाती थी इसलिए शायद नहीं जताती थी। पर माँ कसम से, अगर तूने मुझे समझाया होता,
तो आज मेरा काल इस छोटे से कोने में न आया होता। तो मैं न घबराता, मैं बनता साहसी! कि मैं मारूं चीख, मैं भागूं कि बचा लेगी मेरी माँ, मेरे साथ है मेरी माँ…
काश! पिता जी भी सपनों से दूर सच्चाई का पाठ पढ़ाते तो, मैं भी अपने लक्ष्य को पाता, डाक्टर की डिग्री लेने कालेज में जाता, दुश्मन से लेता लोहा,आफिसर बन पाता! विद्यालय, घर, बस, रिक्शे, गली-कूचे में रहने वाली राक्षस जाति को पहचान पाता!
यह क्या हुआ? रंगों की होली खेलते-खेलते क्यों यह मेरे खून से होली खेली गई? क्यों नोच के मेरे पंखों को मेरी उड़ान रोकी गई?
माँ! अब अगले जन्म में यह सब पाठ तू मुझे पहले ही बता देना, गर्भ में ही यह घुट्टी पिला देना। मेरे दादू! मेरी दादी! मेरे भाई! मेरी दीदी! सबने हर आंच से मुझे बचाया था, पर कभी इस आग के बारे में न बताया था।
तो अब माँ तू अपना फ़र्ज निभाना, अपनी सखी हर माँ को समझाना। उनके संग बैठें, व्यवहार पर रखें नज़र, बच्चों के मन को जानें, बिमारी है या है कोई बहाना इस अर्थ को समझें और सच्चाई जानें।
पूछते रहें, रहें सतर्क, बच्चों को रहें समझाते, यूँ अपना फर्ज निभाएँ। स्कूल भी रहे परखता अपने नियमों को, सरकारें भी कुछ ठोस कानून बनाएं। इन क्रूर नज़रों को निकालने, उन हाथों को काटने ऐसे पत्थर दिलों को चौराहे पर मारने की सज़ा सुनाएं।
माना कि नियम है यह जंगल का। तो समझाओ कि वह कहाँ के इंसान थे?
मूल चित्र : Canva
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