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आज की महिलाओं को और लोगों को अनु अग्रवाल से सीखना होगा कि विपरीत परिस्थितियों में ख़ुद को जीवित रखना कितना आवश्यक होता है।
वह लेखिका हैं, अदाकारा भी, वह बहादुर हैं और एक बहुत विद्वान छात्रा भी। आज हम बात कर रहे हैं अपने समय की मशहूर अदाकारा और मॉडल की, जिन्होंने आशिक़ी फ़िल्म से लोगों का दिल जीता, और आज भी हज़ार लोगों के दिलों में राज कर रहीं हैं, और एक सशक्त महिला हैं, और करोड़ो लोगों के लिए एक प्रेरणा। जी आप सही समझे अनु अग्रवाल।
अनु अग्रवाल बचपन के दौर से ही एक होनहार छात्रा के रूप में उभरीं। बचपन में कथक और संगीत की शिक्षा ली। वहीं स्कूल के दिनों में नृत्य, नाटक और वाद विवाद प्रतियोगिता में भी हिस्सा लेती रहीं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने की रूचि बचपन से ही अनु की ज़िंदगी का हिस्सा रही।
दिल्ली विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में गोल्ड मैडल हासिल करने वाली अनु ने अपना कैरियर बतौर मॉडल शुरू किया। कॉलेज के दिनों में अनु नाट्य कला में भी पारंगत रहीं, थिएटर भी किया। उन्हीं दिनों उनका बहुचर्चित नाटक “भुट्टो” भी काफी चर्चित रहा। उन्होंने सोलो और एकल नाटक भी प्रस्तुत किए। शिक्षा में भी वह सर्वोच्च रहीं। विज्ञापन के क्षेत्र में भी उनको “सुपर मॉडल” की उपाधि से नवाज़ा गया और वर्ष 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले नाटक “इसी बहाने” का एक महत्वपूर्ण किरदार परिणीता का किरदार निभाया। इसके बाद वर्ष 1990 में इन्होंने महेश भट्ट द्वारा निर्देशित फ़िल्मआशिक़ी की। जो बहुत बड़ी हिट साबित हुई और अपने मशहूर गानों के लिए भी प्रख्यात हुई।
अनु को बॉलीवुड की चकाचौंध से भरी दुनिया से कोई ख़ास लगाव नहीं था, उनको लाइमलाइट में रहना पसंद नहीं था, यह बात भी एक बहुत बड़ी बात है की सितारों की दुनिया में चमकना किसको पसंद नहीं, मगर अनु सब से अलग हैं, और ख़ुद के दम पर ज़िन्दगी जीने का दम रखती हैं। बॉलीवुड की दुनिया से दूर रहना उनको पसंद था, इसलिए उन्होंने 1995 में एक लंबा ब्रेक लिया और ख़ुद को इस ग्लैमर भरी दुनिया से खुद को अलग कर लिया।
इसके बाद कई सालों तक अनु ने यात्राएं की और ज़िन्दगी के कई अनुभवों को महसूस किया। उसके बाद कई सालों तक उन्होंने योगा का अध्ययन किया, योग के महाविद्यालय से योग की शिक्षा ग्रहण की ताकि अपने आपको और अपनी अंतरात्मा को ख़ुद से जोड़ सकें। अनु ने अंतराष्ट्रीय स्तर अध्यात्मवाद की शिक्षा भी ली। कुछ दिनों बाद उन्होंने आश्रम छोड़ दिया और अब वह अपने दम पर पर ज़िन्दगी जीना चाहती थीं, एक मज़बूत और कर्मठ इंसान अपनी ज़िंदगी को आसानी से जी लेता है, चाहे उसकी जिंदगी में कितने ही काँटे उभर आएं हों।
इसी बीच अनु को एक ऐसी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जो किसी भी इन्सान को छिन्न भिन्न करने का दम रखती हो। उनके साथ एक ऐसी भयानक दुर्घटना घटी जिससे उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई। एक भयानक कार एक्सीडेंट में अनु मानसिक और शारिरिक तौर पर पूरी तरह टूट चुकी थीं। हादसे के बाद जब उनको होश आया तो उन्होंने ख़ुद को एक अस्पताल के बेड पर पाया। अनु लगभग 29 दिनों तक कोमा में रहीं और उनके शरीर की लगभग एक दर्जन हड्डियाँ टूट चुकी थीं। कोमा से बाहर आने के बाद, वह अपनी सभी स्थायी यादें खो चुकी थी और अन्य चोटों के बीच टूटी हुई कॉलरबोन, खंडित पसलियों जैसी चोटों से भी उबर रही थी।
अनु ने अपने जीवन के पलों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होकर जिया। उन्होंने अपना हर सपना पूरा किया और एक मज़बूत किरदार में फिर दोबारा से खड़ी हुईं। उनके मन के कई स्वाभाविक सवाल जैसे, मैं कौन हूँ? मैं इस ग्रह पर क्यों हूँ? इसी प्रश्न की तलाश में अनु ने कई स्थानों और हिमालय की यात्रा कि। योग और ध्यान का कई वर्षों तक अभ्यास किया। योग और ध्यान से तपे हुए मन और शरीर के साथ आज वह समाजसेवा में कार्यरत हैं, और अपने अनुभव से लोगों को प्रेरित करती हैं।
अनु अग्रवाल द्वारा बनाई गई संस्था AAF है। इसके अलावा अनु कई संस्थानों के साथ संपर्क में हैं और कार्यरत हैं। महिलाओं के लिए उनके विचार अत्यंत प्रभावशाली हैं। वह कहती हैं, “नारी में असीमित शक्ति है, अपने दृढ़संकल्प और मज़बूत इरादों से वह सब कुछ हासिल कर सकती है।” अनु के यही विचार थे जिन्होंने अनु को एयर उनकी आत्मा को ज़िंदा रखा।
आज कि महिलाओं को और लोगों को अनु से सीखना होगा, के विपरीत परिस्थितियों में ख़ुद को जीवित रखना कितना आवश्यक होता है। आप सभी विषम परिस्थितियों में ख़ुद को संभाल सकती हैं, आप के अंदर सब कुछ है। बस आपको थोड़ा ढूंढने की ज़रूरत है। हम अनु के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। अनु न सिर्फ एक प्रेरणा हैं आज की महिलाओं के लिए बल्कि एक प्रेरक भी हैं त्याग, तपस्या, और परिश्रम का।
मूल चित्र : Anu Agarwal
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