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शादी के बाद मैंने 3-4 बार बेसन की कढ़ी बनाने की कोशिश की, मगर कभी बेसन तो कभी दही कम हो जाती थी, या फिर कम पकी रह गयी, फिर हिम्मत नहीं हुई।
मेरी मम्मी की बनाई हुई बेसन की कढ़ी हम सभी को बहुत पसंद थी। साथ में धनिया-पुदीने की चटनी और दाल का पापड़। पहली उबाल आने के बाद इसे देर तक धीमी आंच पर काढ़ा(पकाया) जाता है, इसलिए इसे कढ़ी कहते हैं। रोटी से खाएं या सफेद चावल से, ताजी गर्मागर्म कढ़ी तुरंत खत्म हो जाती थी। हमारे मायके में साथ में सब्जी भी ज़रूर बनती है, मसालेदार बैंगन या आलू । हो सके तो नींबू-नमक डालकर प्याज़ भी रख लीजिए।
मम्मी पहले बेसन की छोटी-छोटी ताजी बड़ियां बनाती थीं, जिन्हें पानी में भिगोया जाता था। हम दोनों बहनों को उन बड़ों को निचोड़ कर नमक डालकर खाना बहुत पसंद था। बाकी के बड़े वो कढ़ी में डालती थीं।
शादी के बाद मैंने 3-4 बार कढ़ी बनाने की कोशिश की, मगर कभी बेसन तो कभी दही कम हो जाती थी, या फिर कम पकी रह गयी। फिर हिम्मत नहीं हुई। अब या तो मम्मी या सासू मां के कढ़ी बनाने का इंतजार रहता। सासू मां की मेथीदाना में छौंकी हुई मम्मी की जीरे वाली से ज्यादा अच्छी लगी। एक बार दिल्ली के trade fair में भी पंजाबी कढ़ी-चावल खाये। बहुत ही स्वादिष्ट।
उस दिन शायद मैं बीमार रही हूँगी, तो अजय की कढ़ी बनाने की इच्छा हुई। अजय को शौकिया खाना बनाना अच्छा लगता है, और इससे मेरी भी मदद हो जाती है। मैंने भी रोटी के अलावा सभी कुछ सिखा दिया है। अब मुझे जैसी कढ़ी आती थी, उस दिन वैसी सिखाई।
वाह!! इन्होंने ऐसी कढ़ी बनाई कि अब उन्हीं के हाथ की अच्छी लगती है, मायके या ससुराल वाली से भी ज़्यादा। बेसन के बड़ों की जगह बाजार की बूंदी ने आकर मेहनत कम कर दी और स्वाद बढ़ा दिया। करी पत्ते ने और भी बढ़िया बना दिया।
अब बच्चे लाल मिर्च का तड़का लगाए बगैर नहीं खाते। ज्यादातर दोपहर में ही बनती है, इसलिए बच्चों को वीकेंड या अजय के वर्क-फ्रॉम-होम का इंतज़ार रहता है या अब कहिये रहता था। लॉकडाउन के चार महीने से अब हफ्ते में किसी भी दिन बन कढ़ी पकोड़ा या कहें कढ़ी बूंदी जाती है।
आज फिर अजय की बेसन की कढ़ी खाई। अब जो थोड़ी सी बची है, उस पर रात में लड़ाई होनी तय है। अभी तो मुस्कुरा कर मजे ले लें, खैय्याम के गीतों के साथ… उमराव जान, नूरी, रज़िया सुल्तान और कभी-कभी फ़िल्मों के खूबसूरत गीत।
1/2 लीटर हल्के दूध की दही(1-2 दिन पुरानी और खट्टी हो)
4 चम्मच बेसन
1 लीटर पानी
1/2 चम्मच मेथी दाना,
चुटकी भर हींग,
करी पत्ते
1 चम्मच हल्दी,
नमक स्वादानुसार
1 कटोरी बूंदी
स्वादानुसार लाल मिर्च
2 बड़े चम्मच देसी घी
1. दही में थोड़ा पानी और बेसन डाल कर रई से अच्छे से मथ लें।
2. बड़ी कढ़ाही में 1 बड़ा चम्मच घी गर्म करें। उसमें मेथी दाना, हींग और करी पत्ते से छौंक दें और हल्दी मिला दें।
3. दही-पानी-बेसन का मिश्रण डाल कर बाकी का पानी भी मिला दें और उबाल आने तक तेज आंच पर लगातार चलाएं(वरना दही के फटने के डर रहता है)।
4. अब नमक डाल कर हल्की आंच पर 15-20 मिनट पकने दें, और बीच बीच में हिलाते रहें।
5. बूंदी डालकर 2-3 मिनट और पकाएं।
6. परोसते समय तेज गर्म घी में लाल मिर्च का तड़का लगाकर मिलाएं।
1. अगर आप लाल मिर्च नहीं खाते हैं तो शुरू में हींग-मेथी-करी पत्ती के साथ ही 3-4 हरी मिर्च बीच में से चीर कर डाल दें।
2. पारम्परिक रूप से कढ़ी में बेसन की पकौड़ी डलती हैं। कढ़ी बनाने से पहले उन्हें ऐसे बनायें:
3. अगर दही ताजी है तो खट्टापन लाने के लिए थोड़ा अमचूर पाऊडर भी डाल सकते हैं।
4. पहले हम दही की जगह छाछ की कढ़ी बनाते थे, तब बस पानी कम डलता था।
मुझे ये बेसन की कढ़ी खिचड़ी के ऊपर डालकर भी अच्छी लगती है। हमारी दादी-नानी तो सदियों से इसे बनाती आ रही हैं। आप भी कमेंट्स में अपना कढ़ी का अनुभव ज़रूर साझा करें ।
मूल चित्र : Author’s Album
I am a civil society volunteer, Zero waste enthusiast, plant lover, traveler and juggling mother. read more...
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