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हालाँकि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र ने भारतीय सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को आधिकारिक मंजूरी प्रदान कर दी है, परन्तु सरकार ने काफी समय तक यह दलील दी है की महिलाओं की शारीरिक विशेषताओं कम हैं।
हालाँकि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र ने भारतीय सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को आधिकारिक मंजूरी प्रदान कर दी है, परन्तु सरकार ने काफी समय तक यह दलील दी है की महिलाओं की शारीरिक क्षमताएं कम हैं।
रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए औपचारिक आदेश जारी कर दिया है। इस प्रकार सेना में महिला अधिकारियों को बड़ी भूमिकाओं के निर्वहन के लिए अधिकार संपन्न बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
Govt has issued formal sanction letter for grant of Permanent Commission to women officers in Indian Army, paving the way for empowering women officers to shoulder larger roles in the organisation: Indian Army spokesperson (1/3) — ANI (@ANI) July 23, 2020
Govt has issued formal sanction letter for grant of Permanent Commission to women officers in Indian Army, paving the way for empowering women officers to shoulder larger roles in the organisation: Indian Army spokesperson (1/3)
— ANI (@ANI) July 23, 2020
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 17 फरवरी को एक याचिका पर सुनवाई के बाद भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन एवं कमांड पोस्ट दिए जाने का आदेश दिया था और सरकार को अमल के लिए तीन माह का वक्त दिया था। इस मामले को फिर उठाये जाने पर सात जुलाई को सवोर्च्च अदालत ने केंद्र सरकार को एक महीने की मोहलत और दी थी।
थल सेना, वायु सेना और नौसेना ने 1992 में महिलाओं को शॉर्ट-सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों के रूप में शामिल करना शुरू किया। यह पहली बार था जब महिलाओं को मेडिकल स्ट्रीम से बाहर सैन्य बल में शामिल होने की अनुमति दी गई थी।
हालाँकि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को आधिकारिक मंजूरी प्रदान कर दी है, परन्तु सरकार ने काफी समय तक महिलाओं को सेना में उनके अधिकारों से वंचित करते हुए यह दलील दी है की महिलाओं की शारीरिक क्षमताएं कम हैं। आईये आज बात करते है भारतीय सैन्य बल में महिलाओं की स्तिथि पर।
21 सितंबर, 1992 को, ‘प्रिया झिंगन’ भारतीय सेना में शामिल होने वाली पहली महिला कैडेट बनीं। 1992 में, उन्होंने ख़ुद सेना प्रमुख को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने महिलाओं को सेना में लेने का निवेदन किया। एक साल बाद, उनके पत्र को स्वीकार किया गया और ऐसे झिंगन और अन्य 24 नई महिलाओं ने सेना में अपनी यात्रा शुरू की। 2006 में, एक नीति संशोधन ने उन्हें SSC अधिकारियों के रूप में अधिकतम 14 वर्षों तक बल में सेवा करने की अनुमति दी।
महिलाओं ने अपनी यात्रा तो 1993 में शुरू कर दी थी लेकिन उनकी यात्रा आसान नहीं रही और सच कहें तो आज भी आसान नहीं है। महिलाओं को आज भी कुछ चुने हुए पद दिए जाते हैं और उनको हर क़दम पर अपनी क्षमता को साबित करना पड़ता है। साबित करने के बाद भी महिलाओं को ‘फूलों की सेना’ के नाम से पुकारा जाता है और उनकी क्षमताओं पर शक किया जाता है।
एक इंटरव्यू में मैकेनिकल ऑफिसर मेजर श्रद्धा भट्ट कहती हैं, “मेरे पास सारी पोस्टिंग पर आवेदन करने की छूट और काबिलियत थी यहाँ तक कि मैं फील्ड पोस्टिंग के लिए भी आवेदन कर सकती थी, लेकिन मुझे हर पढ़ाव पर ख़ुद को साबित करना पड़ता था। मुझसे सवाल किया जाता था की “आप एक औरत होकर टेंट में कैसे रहेंगी?”
सितंबर 2008 में एक सर्कुलर जारी किया जिसमें जेएजी विभाग और एईसी में एसएससी की महिला अधिकारियों को बाद के प्रभाव (उत्तरव्यापी) से स्थायी कमिशन देने का विचार था।
“क्या वह रात की ड्यूटी कर पाएंगी? वह मर्दों का मुक़ाबला कैसे कर पाएगी?” ऐसे अनेको सवाल हमारे थल बल में भर्ती होने वाली महिलाओं पर आज भी उठाये जाते हैं। आज भी बड़े पदों पर बैठे हुए ऑफिसर्स यह कह देते हैं कि हमें महिलाओं की ज़रूरत नहीं है।
अगस्त 1966 में, वायु सेना चिकित्सा अधिकारी, फ्लाइट लेफ्टिनेंट कांता हांडा अपनी सेवा के लिए प्रशंसा प्राप्त करने वाली पहली महिला वायु सेना अधिकारी बनीं। उन्हें 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपनी सराहनीय सेवा के लिए प्रशंसा से नवाज़ा गया। सन 1994 में, महिलाएँ वायु सेना में पायलट के रूप में सहायक भूमिका देने के लिए शामिल हुईं।
फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना और श्रीविद्या राजन ने देश भर की युवा महिलाओं को तब प्रेरित किया, जब उन्होंने ‘चीता हेलीकॉप्टरों’ को युद्ध क्षेत्र में विशेष रूप से कारगिल-तोलोलिंग-बटालिक क्षेत्र में पुनरावृत्ति मिशनों और आकस्मिक निकासी के लिए उड़ाया। युद्ध के बाद, सक्सेना को आत्म बलिदान और वीरता के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। 2006 में, दीपिका मिश्रा सारंग प्रदर्शन टीम के लिए प्रशिक्षण देने वाली पहली IAF महिला पायलट बनीं।
सन 2015 में भारतीय वायु सेना ने लड़ाकू विमान की कमान महिलाओं के हाथ में देना का ऐतिहासिक फ़ैसला लिया। फिर सन 2018 में, भारतीय वायुसेना ने तीन महिलाओं को लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल किया। फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी एकल उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला फाइटर पायलट बनीं। मई 2019 में, उनकी सहयोगी फ़्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कंठ एक फाइटर जेट पर लड़ाकू अभियानों को अंजाम देने वाली पहली महिला पायलट बनीं।
भारतीय वायु सेना में महिलाओं को युद्ध और समर्थन भूमिकाओं सहित सभी भूमिकाओं में काफी समय से शामिल करती आ रही है।
1968 में डॉ. पुनीता अरोड़ा, लेफ्टिनेंट जनरल और पहली महिला वाइस एडमिरल के रूप में दूसरी सर्वोच्च रैंक तक पहुँचने वाली पहली महिला बनीं। इसके बावजूद भारतीय नौसेना अभी भी नाविक के रूप में महिलाओं को युद्धपोत में रखने के विचार के खिलाफ है।
सन 2018 में ऐसा कहा गया कि भारतीय नौसेना जल्द ही महिलाओं को नाविकों के रूप में शामिल होने की अनुमति देगी और युद्धपोतों पर महिलाओं की तैनाती जल्द ही एक वास्तविकता बन सकती है।
नौसेना ने अब तक शिक्षा, कानून और नौसैनिक निर्माण सहित आठ शाखाओं में महिला अधिकारियों को तैनात किया है, जहाँ महिलाओं को गैर-सामुद्रिक वाले कैडर के रूप में स्थायी कमीशन दिया गया है। समुद्र में महिलाओं की तैनाती के लिए और भविष्य के युद्धपोतों पर महिला दल को समायोजित करने के लिए ‘उपयुक्त सुविधाओं’ के साथ संशोधित किया जा रहा है।
इसके बाद 2 दिसंबर 2019 को भारत की एक जांबाज़ महिला ने अपना नाम इतिहास के पन्नों पर अंकित कर दिया। सब लेफ्टिनेंट शिवांगी भारतीय नौसेना की पहली महिला पायलट बन गई थी। 2019 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कांत भारतीय वायुसेना में फाइटर प्लेन उड़ाने वाली पहली महिला पायलट बनी थीं।
अभी हाल ही में भारतीय नौसेना ने अपनी पुलिस शाखा, ‘प्रोवोस्ट’ के लिए अपनी महिला अधिकारियों के बीच स्वयंसेवकों की मांग की है। यह शाखा अब तक पुरुष अधिकारियों के लिए ही थी। महिला अधिकारी भी नौसेना के समुद्री टोही विमान जैसे ‘ऑब्जर्वर’ में परिचालन नियुक्तियों में सेवा देती हैं, जैसे P8i, IL-38 और ‘डोर्नियर’।
हम सभी ने अभी फरवरी में महिलाओं की सेना में भर्ती को लेकर काफ़ी चर्चा सुनी थी आइये जानते हैं वह चर्चा क्यों और किस विषय पर शुरू हुई थी।
वह चर्चा दो विषयों को लेकर शुरू हुई थी
1) स्थायी कमीशन
2) सेना में महिलाओं के लिए कमांड पोस्ट
स्थायी कमीशन का अर्थ है रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में कैरियर। स्थायी आयोग के लिए, प्रवेश राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, पुणे, भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून, या अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी, गया के माध्यम से होता है।
महिला अधिकारियों के लिए स्थायी आयोग पर चर्चा करने वाली न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि महिला अधिकारियों को स्थायी आयोग न देने का कोई आधार नहीं है।
शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) योजना के तहत, महिलाओं को 10 साल की अवधि के लिए सेना में कमीशन किया गया था, जो 14 साल तक बढ़ाई जा सकती थी।
जबकि पुरुष एसएससी अधिकारी 10 साल की सेवा के अंत में स्थायी कमीशन का विकल्प चुन सकते थे। लेकिन यह विकल्प महिला अधिकारियों के लिए उपलब्ध नहीं था। इस प्रकार, महिला अधिकारियों को, किसी भी कमान नियुक्ति से बाहर रखा गया था और अतः वह सरकारी पेंशन के लिए अर्हता प्राप्त नहीं कर सकती क्यूंकि यह सेवा एक अधिकारी के रूप में सेवा के 20 साल बाद शुरू होती है।
अदालत ने यह भी कहा कि महिला अधिकारी गैर-युद्ध क्षेत्रों में कमांड पदों के लिए योग्य होंगी क्योंकि “मानदंड या कमांड अपॉइंटमेंट की मांग करने वाली महिलाओं पर पूरी तरह से रोक लगाना अनुच्छेद 14 के तहत समानता कि गारंटी के साथ नहीं जाएगा”।
अदालत के निर्देश के अनुसार अब महिला अधिकारी पुरुष अधिकारियों के साथ, सभी कमान नियुक्तियों पर नियुक्त करने के लिए सक्षम होंगी। यह फैसला उनके लिए उच्च रैंक पर आगे पदोन्नति के लिए रास्ते खोल देगा। हालांकि, महिला अधिकारियों को पैदल सेना, तोपखाने या बख्तरबंद कोर जैसे लड़ाकू हथियारों में शामिल नहीं किया जाएगा।
शारीरिक सीमाएँ: केंद्र सरकार ने दावा किया है कि महिला अधिकारियों में कुछ “शारीरिक सीमाएँ” हैं जिनकी वज़ह से महिलाओं को युद्ध के मैदान में कमाण्ड पोस्ट देना ठीक नहीं है।
सामाजिक मानदंडों: सैनिकों को अभी तक मानसिक रूप से कमान में महिला अधिकारियों को स्वीकार करने के लिए शिक्षा हमारे स्कूलों में नहीं दी गई है। रैंक और फ़ाइल की रचना मुख्य रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि से प्रचलित सामाजिक मानदंडों के साथ की गई है। पुरुष महिलाओं को अधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं कर पायेंगे।
शारीरिक मानक: अधिकारियों को सामने से नेतृत्व करना होगा। युद्ध कार्यों को करने के लिए उन्हें मुख्य शारीरिक स्थिति में होना चाहिए। पुरुषों और महिलाओं के बीच निहित शारीरिक अंतर समान शारीरिक प्रदर्शन को रोकता है।
भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की शारीरिक क्षमता इकाइयों की कमान के लिए एक चुनौती बनी हुई है।
पुरुषों की तुलना में महिला अधिकारियों के निम्न शारीरिक मानकों के अलावा, अन्य चुनौतियों में गर्भावस्था के कारण लंबे समय तक अनुपस्थिति, बच्चों की शिक्षा, पति की कैरियर की संभावनाएँ आदि शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा उन्हें महिलाओं और पुरुषों को समान पैमाने पर परीक्षण करना चाहिए। एक वर्ग के रूप में उन्हें (महिला अधिकारियों) को बाहर न करें। मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है अदालत ने नोट में टिप्पणी को न केवल संवैधानिक रूप से अमान्य, बल्कि भेदभावपूर्ण पाया, जिससे महिला अधिकारियों की गरिमा प्रभावित हुई।
कोर्ट ने तो अपना निणय फरवरी में सुना दिया था और इस इस महीने सरकार के इस निर्णय पर अब तक अमल न करने के लिए फटकार भी लगाई थी। इसके बाद 23 जुलाई को भारतीय सेना के प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सराकर ने औपचारिक स्वीकृति पत्र जारी कर दिया है, जिससे महिला अधिकारियों को संगठन में बड़ी भूमिका निभाने का अधिकार मिल गया है।
हालाँकि महिला ऑफिसर्स को अब ये अधिकार मिल चूका है परन्तु हर समय सुरक्षा बल में भर्ती होने के उनके सफर में उनकी शारीरिक क्षमताओं पर समाज का सवाल उठाना यही दर्शाता है कि पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को अपने असतित्व की लड़ाई हर जगह लड़नी पड़ती है।
मूल चित्र – ANI
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