कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
विशाल समंदर हो अपना, कब चाह थी मेरी? मुठ्ठी भर आकाश हो अपना, हाँ! चाह थी मेरी!
विशाल समंदर हो अपना, कब चाह थी मेरी? मुठ्ठी भर आकाश हो अपना, हाँ! चाह थी मेरी।।
अनमोल मोतियों की कब, चाह थी मुझे विश्वास की चंद मोतियों की, हाँ! चाह थी मेरी।।
खो गए समंदर की गहराइयों में, जो सारे रिश्ते खुद को खोके तुझको फिर से पाने की, चाह थी मेरी।।
रेत का ही सही, पर छोटा सा एक घरौंदा हो! संग तुम्हारे साथ मिलके बनाने की, चाह थी मेरी।।
मूल चित्र: Canva
read more...
Please enter your email address