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कह दो मुझसे के, चाय दे दो, लेकिन वापस मेरी, राय दे दो, मेरी सोच! मेरी मर्ज़ी! जैसी लगे वो, चाहे दे दो...क्यूंकि मैं, आम सी, एक औरत हूँ।
कह दो मुझसे के, चाय दे दो, लेकिन वापस मेरी, राय दे दो, मेरी सोच! मेरी मर्ज़ी! जैसी लगे वो, चाहे दे दो…क्यूंकि मैं, आम सी, एक औरत हूँ।
मोजज़ाये क़ुदरत हूँ, मैं आम सी, एक औरत हूँ। खुशियों से दुनिया भरती हूँ, और कभी कभी रो पड़ती हूँ।
अख़बारों की तहरीरों पर, किरदारों की तकदीरों पर, उन लीक हुई तस्वीरों पर, हूँ इज़्ज़त भी, नमूस भी, घर बार भी, ख़ुलूस भी। मेरे नाज़ुक कंधों पर, रिश्ते नातों का जुलूस भी।
जब इतने सारे काम हैं मेरे, तो रोशन कम क्यों नाम हैं मेरे। मैं क़ाबिल हूँ, तो हैरत है, मेरा हुनर, कैसे ग़ैरत है।
डॉक्टर बनूँ या शादी करूँ, काम करूँ, के घर पे रहूँ। मैं भी इसी मिट्टी से हूँ, एहतराम रहेगा, पास रहेगा, मुझे तुम्हारा, एहसास रहेगा।
कह दो मुझसे के, चाय दे दो। लेकिन वापस मेरी, राय दे दो। मेरी सोच! मेरी मर्ज़ी! जैसी लगे वो, चाहे दे दो।
मूल चित्र: Canva
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