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एक सपना था

माना था जिसे अपना,उसने अपने और गैरो में फर्क करना सीखा दिया...

माना था जिसे अपना,उसने अपने और गैरो में फर्क करना सीखा दिया…

एक सपना था, साथ में कोई अपना था,

कुछ पाना था साथ में मुस्कुराना था,

ना वो सपना रहा, ना अब वो अपना रहा,

माना था जिसे अपना, उसने अपने और गैरो में फर्क करना सीखा दिया,

मुफ्त में नहीं सीखा है हमने यूँ, उदासी में मुस्कुराना,

बदले में हमने अपनी  खुशियां कुर्बान की हैं,

यकीन था, भरोसा था, एतबार था उसपे,

जिसने हर कदम पर, मुझे एक कदम पीछे कर दिया,

एक वक्त था, जब करीब था, वो मेरा नसीब था,

माना था उसको अपना, जो तोड़ गया मेरा सपना,

हाँ सच है दिल टूटा है, हाँ सच है बिखरी हूं

हाँ सच है ना ऐताबर रहा अब किसी पे,

पर शुक्रिया उस शख्स का, चाहा था जिसने मुझे मेरी मंजिल से रोकना, मुझे बिखेरना, मुझे तोड़ना,

अब में एक कदम आगे उससे निकाल आयी हूं,

अब हिम्मत है, जज़्बा है, यकीन है

करना मुझे कुछ बेहतरीन है…

मूल चित्र : Pexels 

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