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जब फिल्मों में महिलाओं का रोल बंधित हुआ करता था तब 'एंग्री यंग वुमन' यानि फियरलेस नादिया ने फिल्मों में महिलाओं के रूढ़िवादी चरित्र को हिलाकर रख दिया।
जब फिल्मों में महिलाओं का रोल बंधित हुआ करता था तब ‘एंग्री यंग वुमन’ यानि फियरलेस नादिया ने फिल्मों में महिलाओं के रूढ़िवादी चरित्र को हिलाकर रख दिया।
भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहले मूक सिनेमा और फिर बोलती फिल्मों के अब के सफ़र में, हर दौर में कई अफसाने हैं। उन अफसानों में महिलाओं का अपना एक अलग सफर रहा हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि जब भारतीय सिनेमा के पितामाह दादा साहेब फाल्के जब अपनी पहली मूक फिल्म “हरिशचंद्र” बना रहे थे। तब महिला अभिनेत्री के लिए उनको काफी भटकना पड़ा फिर भी उनको महिला अभिनेत्री नहीं मिली, उन्होंने एक किन्नर को महिला अभिनेत्री का अभिनय करवाया।
बाद में काफी समय तक महिलाओं का फिल्मों में काम करना आपत्तिजनक माना जाता था, महिला अभिनेत्री के किरदार को पुरुष ही निभाते थे। कुछ गिनी-चुनी महिलाएं अगर काम भी करती थी तो वह अधिकतर निचले तबके की होती थी। 1931 के आस-पास दुर्गा खोटे जो पढी-लिखी और उच्च वर्ण की महिला थी। अपनी पति के असमय मृत्यु के कारण आत्मनिर्भरता की खोज में फिल्मों का रुख किया था। उनकी पहली फिल्म “फरेबी जाल” थी, उसके बाद देविका रानी भी आई। इन अभिनेत्रियों ने महिलाओं को अपने पारंपरिक रूप में ही पेश किया। पति की आज्ञाकारिणी और परिवार के लिए सब कुछ त्याग देने वाली स्त्रियां अपनी नैतिकता के घेरे से बाहर नहीं आती थी।
इसी दौर में एक और अभिनेत्री के अपने कैरियर की शुरूआत की जिसको ‘एंग्री यंग वुमन’ का नाम ही नहीं दिया गया उनको ‘फीमेल रांबिनहुड’ भी कहा जाता था। उन्होंने भारतीय महिलाओं के रूढ़िवादी चरित्र को हिलाकर रख दिया, वह खिड़कियों से कूदने वाली, फानूसों पर झूलने वाली, जंगली जानवरों को पालतू बनाने वाली, पुरुषो को उठाकर पटक देने वाली तमाम तरह के स्टंट को खुद अंजाम देती थी, जो दर्शकों में उनकी लोकप्रिय होने का कारण भी बना, वह थी नादिया। जिनके फिल्मों के पोस्टर पर लिखा जाता था फियरलेस नादिया।
1940 की बेहद सफल फिल्मों में शुमार था रिवेंज-ड्रामा ‘डायमंड क्वीन’ उस फिल्म का एक संवाद आज भी उतना ही मौजूं है, “अगर भारत को आज़ादी चाहिए तो पहले औरत को आज़ादी देनी होगी, अगर औरत को रोका जायेगा तो उसके परिणाम भुगतने होंगे।”
‘श्याम बेनेगल’ भारत को पहला ‘एंग्री यंग मैन’ देने का श्रेय नादिया को देते है। सत्तर के दशक में अमिताभ जो हुए उसकी शुरुआत बहुत पहले नादिया कर चुकीं थीं। बेशक अमिताभ ने एंग्री यंग मैन की धारणा को को और पुष्ट लिया पर सच यही है कि से अमिताभ के लिए लिखे गए किरदार कहीं न कहीं नादिया के निभाए किरदारों से प्रेरित थे। न सिर्फ अमिताभ बल्कि ‘मदर इंडिया’ की नर्गिस, ‘शेरनी’ की श्रीदेवी, ‘ज़ख़्मी औरत’ की डिंपल जैसे किरदारों की ज़मीन भी नादिया तैयार कर चुकीं थीं।
मजेदार बात यह है कि नादिया भारतीय नहीं थी उन्होंने भारत को अपनाया और भारतीय ने उनको। उनके पिता स्कांटिश और मां ग्रीक थी, फियरलेस नादिया का नाम मैरी था। मैरी पहले गायिका और नृत्यांगना बनना चाहती थी। उनके पिता की पोस्टिंग मुबंई में होने के कारण यह परिवार 1912 में बंबई आ गया।
ब्रिटिश आर्मी में कार्यरत अपने पिता को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान खो देने के पश्चात नादीया अपने मां के साथ पेशावर आ गई। बाद में फिर नौकरी की तलाश में बंबई आ गई पहले सेल्स गर्ल फिर थियेटर और सर्कस तक में काम किया। इस दौर में वह रूसी नृत्यांगना की मंडली में शामिल हो गई जिसके साथ वो पूरे देश में घूम-घूमकर कार्यक्रम देतीं और यही मंडली फिल्मों में उनके प्रवेश का रास्ता बना।
जमशेद वाडिया जो वाडिया मूवीस्टोन के मालिक थे। उन्होंने मैरी का नाम बदल कर नादिया रखा और “देश दीपक” में गुलाम लड़की का छोटा सा किरदार दिया जो देशभक्त थी। तीन मिनट के इस रोल में नादिया ने अपनी मौजदूगी दर्ज करा दी। उसके बाद नादीया “नूर-ए-यमन” में प्रिंसेस पेरिजाद का किरदार निभाया। उसके बाद नादिया ने देसी स्टंट क्वीन बनने का फैसला किया और फिल्म आई ‘हंटरवाली’। जिसके बाद नादिया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसके बाद जंगल का जवाहर’, ‘मिस फ्रंटियर मेल’ ‘डायमंड क्वीन’, ‘हरिकेन हँसा’, लुटारू ललना’, ‘बम्बई वाली’ ‘जंगले प्रिंस’ में फिल्म दर फिल्म वह स्त्रियों के दासत्व, भ्रष्टाचार, शोषण आदि अन्यायपूर्ण कृत्यों के खिलाफ अकेले लडती रही। नादिया का फुर्तिला शरीर जहाँ एक तरफ उसके स्टंट में मदद करता था वहीँ आदमियों को आनंद देता था। पर इसका एक नकारात्मक पहलू यह रहा कि नादिया को कभी गंभीर अभिनेत्री नहीं माना गया। उनके दर्शकों में बड़ा हिस्सा निचले तबके के पुरुषों का रहा जो उन्हें देख अपनी फंतासीयों को पूरा करता रहा।
1961 में फियरलेस नादिया ने शादी कर ली। शादी के बाद भी उनक फिल्मी सफर जारी रहा। उम्र के बढ़ने के साथ ही नादिया ने फिल्मों से अपनी दूरी बनानी शुरू कर दी। 88 साल के उम्र में उन्होंने 1986 के जनवरी में दुनिया को अलविदा कह दिया। आज की हिंदी फिल्म उधोग ने उनको एक बार फिर उनको याद किया जब विशाल भारद्वाज ने फिल्म रंगून में उनके अभिनय के लिए कंगना रनौत को नादीया के किरदार के रूप में चुना। जबकि कई लोग मानते हैं कि रंगून उनकी कहानी नहीं थी
लोगों के जहन में फियरलेस नादिया एकबार फिर ताजा हो गई है।
मूल चित्र – Google
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