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वो एक खून का कतरा, उसी एक कतरे से दुनिया में अस्तित्व तुम्हारा होता है मानव, फिर भी तुमने स्त्री की उस पीड़ा को एक हौआ बना कर रख दिया है?
वो एक खून का कतरा, जिसे देखो तो डर लगता है लेकिन उसी खून से हर महीने दो चार होती हैं लड़कियां…
कहने को तो सिंदूर का रंग भी लाल है, लेकिन उस खून को सिंदूर की तरह पवित्र क्यों नही माना जाता? हालाँकि उसी एक कतरे से दुनिया में अस्तित्व तुम्हारा होता है मानव, फिर भी तुमने स्त्री की उस पीड़ा को एक हौआ बना कर रख दिया है?
कहते हैं पांच दिन एक कोने में बैठे रहना, न किसी को छूना, न रसोई में घुसना… लेकिन एक खून के कतरे से एक हंसती खेलती, दुनिया से अनजान बच्ची इतनी बड़ी हो जाती है क्या कि तुम उसके ज़िन्दगी के फैसले उसके खून के बहने के हिसाब से कर सकते हो,
उसको मिला वरदान तुम्हारी नजरों और दकियानूसी कायदों की वजह से अभिशाप में बदल गया है…
कैसे एक लड़की के अस्तित्व को तुम उसके बहते खून के हिसाब से तौल सकते हो? जब वो जाती है दुकानों पर मांगने सेनेटरी नेपकिन, अनगिनत नजरों के कारण उसको फुसफुसाने पर मजबूर कैसे कर सकते हो? क्यों तुम उस नेपकिन को काले थैले और कागज में लपेट कर देते हो?
हमें नहीं है ज़रूरत छिपाने की, खून बहता है हमारा, हमें हक है उसे रोकने का… इसमें न हमें कोई शर्म है, न डर
इसी एक कतरे से तो तुम आये थे न इस दुनिया में? तो क्यों तुम्हें हक है कि तुम तुम्हें इस दुनिया में लाने वाली के जीवन के फैसले लो और मज़ाक बनाओ?
देखो न हमने भी अब खुले हाथों से नेपकिन खरीदना सीख लिया है, बिना काली पॉलीथिन के घर से निकलना सीख लिया है, अब हम भी अपने हिसाब से जब मन करे रसोई में जाकर अचार की बरनी से अचार खाने लगे हैं, हमने खुद के फैसले लेना सिख लिया है।
मूल चित्र : Canva
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