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इस कारगिल विजय दिवस पर मिलिए उन जाबाज़ महिलाओं से जिन्होंने कारगिल युद्ध के समय घर पर रहकर दोहरी ज़िम्मेदारीयां निभाई थी, इनको हमारा सलाम!
कारगिल युद्ध को 21 साल होने वाले हैं लेकिन आज भी कारगिल विजय दिवस के रूप में वो यादें ताज़ा है। ऑपरेशन विजय के नाम से जाने जाने वाले पाकिस्तान के खिलाफ इस युद्ध में जीत भारत की हुई थी।
26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस दिन को हर वर्ष कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना ने फील्ड पर तो कई महिलाओं ने घर पर सभी ज़िम्मेदारियाँ निभाकर अपना योगदान दिया है। बहुत सी महिलाएं जिनके परिवार के लोग कारगिल युद्ध में लड़ रहें थे उन्हें एक तरफ तो बहुत गर्व महसूस होता है तो दूसरी तरफ रूह कांप जाती है। सभी के मन में एक ही डर रहता था कि क्या उनके पति या बेटे सुरक्षित हैं।
कारगिल विजय दिवस की 21 वी वर्षगाँठ पर हम ने कुछ ऐसी महिलाओं से बातचीत करी जिनके भाई, पति, पिता या रिश्तेदार ऑपरेशन विजय का हिस्सा थे। इस दौरान उन महिलाओं ने हमारे साथ कुछ ऐसे वाकये साझा किये जिसे सुन कर आप की भी रूह काँप जाएगी और कुछ ऐसे वाकयों से भी रूबरू हुए जिसे सुन कर आप का सर भी उनके सम्मान में झुक जायेगा।
आइये मिलते हैं उन्हीं में से कुछ चुनिंदा महिलाओं और उनके ज़ज़्बे से
लेफ्टिनेंट कर्नल मनोज ओक की पत्नी कंचन ओक कहती हैं , “ये बात 21 साल पुरानी है लेकिन जब भी वो बात याद आती है तो लगता है कल की ही बात है। मेरे हस्बैंड उस समय लेफ्टिनेंट कर्नल थे और जैसे ही ये लड़ाई छिड़ी तो इनकी वहां पोस्टिंग हो गयी और मैं अपने छोटे बच्चों के साथ इन लॉज़ के पास नागपुर चली गयी थी। तो उस समय मुझे बहुत असुरक्षित महसूस होता था लेकिन कभी मेरे मन में नेगेटिव भावनाएं नहीं आयी।”
परन्तु एक दिन कंचन को खबर आई कि ऑफिसर मनोज कारगिल की लड़ाई में शहीद हो गए है। उनके पति का नाम भी मनोज है इसीलिए वह काफी घबरा गई और रात भर सो नहीं पाई।लेकिन जब अगले दिन सुबह अखबार में उससे संबंधित पूरी खबर आयी तो तस्सली हुई कि अच्छा शहीद होने वाले ऑफिसर उनके पति मनोज ओक नहीं है।लेकिन दूसरे ही क्षण उन्हें लगा की अब जो शहीद हुए है उनके परिवार पर के बीत रही होगी।
“उस बात को याद करके आज भी मेरी आँखों में पानी आ जाता है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं।” कंचन ने कहा।
विंग कमांडर अरविन्द पण्डे की पत्नी मनीषा पांडेय कहती हैं , “मेरा बेटा उस समय 3 साल का था और मैंने अपने मायके नहीं जाने का फ़ैसला किया क्योंकि मेरे हस्बैंड के कारगिल युद्ध से लौटने के बाद मैं उनके लिए वहां रहना चाहती थी। हम सब एक यूनिट में रहने वाले भगवान के सामने दिया लगाकर पूरे दिन बीबीसी न्यूज़ चैनल देखते रहते थे कि हमें बस कहीं कोई राहत की ख़बर मिल जाएं।
आज भी जब कोई कारगिल युद्ध की बात करता है तो एक ही बात मुझे सबसे पहले याद आती है वो है जब पांच में से एक एयरक्राफ़्ट पर हमला हुआ था और उसमे सभी की मौत हो गयी थी । हमारी यूनिट के भी लोग उस अटैक में शामिल थे। ये सुनकर मै सन्न रह गई। उस समय मैं अपने बेटे को खाना खिला रही थी तभी एक ऑफ़िसर का कॉल आया और कहा कि हमारी यूनिट से सभी सुरक्षित है। सुनकर मैं रो पड़ी। मेरे नहीं लेकिन किसी और के हस्बैंड शहीद हुए थे। बस हमेशा यही लगता था कि जल्दी से युद्ध ख़त्म हो जाएं और सब सुरक्षित घर आ जाएं। आज भी आँसू आ जाते हैं उन दिनों को याद कर के।”
वीर चक्र से सम्मानित कर्नल दीपक रामपाल की पत्नी वत्सला रामपाल कहती हैं, “जो फ़ौजी एक बार अपनी ड्यूटी पर चले जाते हैं उन्हें बस अपनी ड्यूटी नज़र आती है तो उनका माइंड डाइवर्ट हो जाता है लेकिन जो घर पर रहती हैं उन्हें हर तरफ का देखना होता है। अपने बच्चे को भी दोनों का प्यार देना होता है और जो बड़े हैं उनका भी ध्यान रखता होता और साथ ही खुद की इन्सेक्युरिटीज़ से भी लड़ना होता है।
कारगिल की लड़ाई के सारे दिन हमारे पूरे टीवी के आगे ही और फ़ोन कॉल का इंतज़ार करते हुए ही बीतते थे। तो एक दिन मेरे ढाई साल के बच्चें ने मुझसे पूछा की मम्मा क्या मेरे पापा भी इसी तरह आएंगे। एक पल के लिए मैं शांत हो गयी। मैंने कभी नहीं सोचा था बच्चों का टीवी पर इस तरह से असर पड़ता है। उन दिनों के बारे में सोचकर आज भी आंखे भर आती है लेकिन मुझे बहुत प्राउड होता है कि मेरे साथ एक ऐसा नाम जुड़ा है जिसे पूरे देश में सम्मान मिलता है।”
शहीद मेजर रितेश शर्मा कि बहन वर्तिका शर्मा कहती हैं, “मेरे बड़े भाई शहीद मेजर रितेश शर्मा ( यूनिट जाट 17 ) एक ऐसे व्यक्ति थे जिन में देश के लिए बहुत ज़ज़्बा था। जब वे कारगिल युद्ध के लिए गए थे मैं उस समय कॉलेज में थी और तब न कोई इंटरनेट था न ही मोबाइल फ़ोन। लैंडलाइन के माध्यम से ही हम उन से बात कर पाते थे या फिर चिट्ठियाँ आती थी। मेरे भाई हमेशा से कहते थे कि हर किसी को इस तरह के युद्ध में योगदान देने का मौका नहीं मिलता है। हम सबको उन पर बहुत गर्व था लेकिन हमेशा चिंता भी रहती थी। वो बहुत तनाव से भरा हुआ वक़्त था।
कारगिल युद्ध की जानकारी के लिए हम बराबर टीवी देखा करते थे। एक बार वहां से कॉल आया कि ये क्या मेजर रितेश शर्मा का घर है, उस समय हम सब बहुत डर गए की ये आगे क्या कहेंगे। लेकिन फिर उन्होंने कहा कि साहब सुरक्षित हैं। ये सुनकर हमें बहुत तस्सली मिली। आज वो हमारे साथ नहीं हैं लेकिन हमें उन पर बहुत गर्व महसूस होता है।”
एनोनिमस (यह व्यक्ति नाम नहीं बताना चाहते हैं।)
2. जब मुझे पता चला की मैं माँ बनने वाली हूँ तो उस समय मेरे हस्बैंड मेरे साथ नहीं थे। मुझे पता ही नहीं था की वो 2 महीने तक कहाँ हैं। वो समय मेरे लिए बहुत तकलीफ़ और स्ट्रेस से भरा हुआ था।
तो ये हैं कुछ चुंनिदा महिलाओं से हमारी बातचीत और उन्होंने अपना एक्सपीरियंस हमारे साथ साझा किया लेकिन ऐसी अनगिनत महिलाएं हैं जो आज भी इस दौर से गुजर रही हैं। हम सभी उन की तकलीफ शायद कम तो नहीं कर सकते हैं लेकिन हम उन्हें उनके हिस्से का सम्मान तो दे सकते हैं।
21 वें कारगिल विजय दिवस पर हम उन सभी योद्धाओं और उनके परिवार का तहे दिल से शुक्रिया करते हैं जो हमारे लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं। और ऐसी हिम्मत वाली महिलाओं को हम सम्मान करते हैं। हमें उन सभी महिलाओं के देश भक्ति का भी उदाहरण देना होगा जो अपने पति के लिए अपना सब कुछ छोड़कर उनके साथ आर्मी कैंप में रहती हैं और न जाने कैसी कैसी परीस्थितियों का सामना करती हैं।
मूल चित्र – कंचन ओक और मनीषा पांडेय
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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