कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

खत्म ना होगी, मुझसे ये कविता!

खत्म ना होगी, मुझसे ये कविता...आखिरी बात बता दूं सबको, मैं जब बनी माँ बच्चों की, अचरच में थी मेरी नानी!  बोली, हो गई, कब तू इतनी बड़ी? 

खत्म ना होगी, मुझसे ये कविता…आखिरी बात बता दूं सबको, मैं जब बनी माँ बच्चों की, अचरच में थी मेरी नानी!  बोली, हो गई, कब तू इतनी बड़ी? 

इक्का, दुक्का, तिक्का।
नाना पीते हुक्का।
गुड़गुड़! बोला पानी!
दौड़ी आई नानी!
जाने किसकी थी, ये कविता?

गा-गा कर भाग जाती थी, मैं!
नानी को खूब सताती थी।
नाना के संग पढ़ती थी।
नाना के संग खेलती थी।

खुद को समझ लक्ष्मीबाई!
मैं तो खूब इतराती थी।
अन्नपूर्णा थी, नानी मेरी!
विद्वान थे, मेरे नाना!
होती थी, जब गर्मी की छुट्टी
उनकी परछाई, मैं बन जाती थी।

नानी के हाथों के पकवान!
नाना के किताबों की खान!
बस! इनसे थी मेरी दोस्ती।
बाकी सबसे कट्टी हो जाती थी।

खेलते थे जब भाई बहन
छुपा-छुपी, पतंग बाजी
मैं नानी की गोद में बैठी
लोकगीत गुनगुनाती थी।

मामा बोले! चल घुमा लाऊं!
नाना के बगीचे में जा छुप जाती थी।

खत्म ना होगी, मुझसे ये कविता!

आखिरी बात! बता दूं सबको।                                                                                                    मैं जब बनी माँ बच्चों की
अचरच में थी मेरी नानी!
बोली! हो गई, कब तू इतनी बड़ी?
अभी तो मुझसे बाल बँधवाती थी!

काश कि लौट आए वो बचपन
और लौट आए मेरे नाना नानी!!

मूल चित्र : Canva

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Khushi Kishore

Freelance writer. read more...

8 Posts | 60,318 Views
All Categories