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किश्तों का भंवरजाल…

इस जिंदगी की जद्दोजहद में किश्त जैसे एक समस्या बनती जा रही है, जो न केवल इंसान का सुख चैन छीन रही है बल्कि उनके अपने भी दूर होते जा रहें हैं।

इस जिंदगी की जद्दोजहद में किश्त जैसे एक समस्या बनती जा रही है, जो न केवल इंसान का सुख चैन छीन रही है बल्कि उनके अपने भी दूर होते जा रहें हैं।

आज के तकनीकी दौर में जिसे भी देखो बस होड़ सी मची है एक दूसरे से आगे निकलने की, चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो। हर कोई चाहता है कि वह सफलता की चरम सीमा पार करे, फिर चाहे कोई भी रास्ता अपनाया जाए। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल के सुकून ढूंढ़ना, जैसे भूसे से सुई को निकालना।

आज घर गृहस्थी लोगो की ऐसे हो गयी मानों साथ में बैठकर खाना खाने का समय निकाल ले तो समझो बहुत बड़ी बात है। एक दूसरे के लिए समय मिलता भी है तो इस तकनीकी जीवन ने मानो वो पल भी छीन लिए। लोग अपनी ख्वाहिशों, इच्छाएं, ऐसी पूरी करने में लगे है जिससे उनकी ज़िंदगी किस्तों में बँधी रह जाती है। एक तो महँगाई की मार ऊपर से लोगो की आधी अधूरी इच्छाएं, जिसे पूरा करने में इंसान का जीवन किस्तो पर आश्रित हो जाता है।

खैर एक इंसान करे भी क्या, उसे अपने घर गृहस्थी जो चलानी है, बच्चों की स्कूल की मोटी फीस, घर के क़िस्त, लैपटॉप की क़िस्त, मोबाइल की क़िस्त, और आजकल तो क्रेडिट कार्ड भैया भी अपना रॉब बहुत जमाये हुए हैं, जिन्हें हर महीने कुछ पॉकेट मनी देनी पड़ती है, ओर देनी जरूरी भी है, अगर समय पर नहीं दी गयी तो भैया जी नाराज़ होकर ब्लॉक हो जाते है, अब या तो घर मे जितने सदस्य है सभी कमाना शुरू कर दे, और अगर ऐसा नही होता तो फिर तो समझो वो अकेला इंसान कमाने वाला जिंदगी जीना छोड़ बस किस्तों की बलि चढ़ जाता है।

माना कि जिंदगी में तरक्की, उन्नति के लिए सभी को मेहनत करनी चाहिए, अपने सपनो को पूरा करने का हक़ सभी को है। लेकिन जब ये सपने, इच्छाओं ओर दिखावे में परिवर्तित हो जाते है, तब समस्याओ का आगमन होता जाता है। लोग एक दूसरे की होड़ में अपने दायरे भूल जाते हैं और बस सिलसिला शुरू होता है, किस्तों का।

अब पिछले रविवार की बात ही ले लो, हमारे पड़ोसी गुप्ता जी नई कार ले आये, तभी शर्मा जी की धर्मपत्नी दौडी दौडी आयी, मुझे लगा शायद कोई इमरजेंसी है, आकर बोलती है, देखो जिया की मम्मी जी अब तो गुप्ता जी के यहाँ भी नई गाड़ी आ गयी, इस बार अच्छा सा मुहूर्त निकलवाकर आप भी गाड़ी ले ही डालो। लो अभी तक तो अपने मन की उधेरबन में फसी हुई थी, अब समाज को भी हमारी चिंता सताने लगी।

खैर, अब जमाना ही ऐसा आ गया कि इंसान का अपना जीवन, वो क्या कहते है अंग्रेजी में “Social Status” इन सब चीजों में फसकर रह गया है, किसी चीज़ की जिंदगी में खास ज़रूरत न भी हो तो उस Status के लिए करना पड़ता है।

खैर, पड़ोसी होने के नाते गुप्ता जी की खुशी में खुश होने का दिखावा तो करना था, पर सब जानते है अंदर क्या क्या प्रतिक्रियाएं एक युद्ध सा करती रहती है, और अंदर ही अंदर एक तुलना से भरी पोटली बंध सी जाती है कि काश ऐसी कार हमारे घर भी होती, तो लो अब एक ओर इच्छा ने जन्म ले लिया और उसका नाम रखा, मेरी प्यारी किश्त।  जी हाँ, किश्त, एक ऐसा मीठा ज़हर जिसे पिया जायेे तो ठीक ना पियें तो समझो प्यासे ही मर जायँगे।

अब किश्तों का बोझ उस इंसान से ज्यादा कौन समझ सकता है जो उसके तले दबा हुआ है। और इस समस्या को नाम दिया जाता है मजबूरी का।

अब भाई ! ये शौक भी किसे है जो किश्तों का बोझ उठाना चाहता है, अब इसे मजबूरी ही कहेंगे, जो ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लेनी पड़ती है। घर की एक ज़रूरत हो तो देखा जाएं, यहां तो ज़रूरतों का भंडार भरा हुआ है, जितना कम करने की कोशिश करे, उतना ही बढ़ जाता है। और इस अनचाहा बोझ को बेचारा इंसान जिंदगी भर ढोने को मजबूर हो जाता है, उसकी खुशियां, उसके पल, ये डायन किश्त कब छिन लेती है, उसे ही पता नही चलता।

अब पहले जैसे जमाने की बात तो रही ही नही, जहाँ संसाधनों का अभाव होते हुए भी लोग खुश रहते थे, उनके जीवन में रिश्तों की श्रंखला आपसी प्यार और अपनेपन से हमेशा भारी रहती।संसाधनो की कमी थी लेकिन आपसी प्यार बेसुमार था, स्मार्ट फोन नही थे, लेकिन चिट्ठी पत्रों से एक दूसरे के हालचाल पूछने की आतुरता रहती थी, और आज देखो फोन है तो लोगो को किसी दूसरे की जैसे ज़रूरत ही नही।

इस नई टेक्नोलॉजी ने जिंदगी की राह जितनी आसान की उतनी ही व्यस्त भी। किसी के पास वक़्त ही नही, एक दूसरे के पास बैठने ओर हालचाल पूछने का बस भागमभाग सी है, एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ सी मची है।

और इस जिंदगी की जद्दोजहद में किश्त जैसे एक समस्या बनती जा रही है,जो न केवल इंसान का सुखचैन छीन रही है बल्कि उनके अपने भी दूर होते जा रहे है। किश्तों से ये रिश्ता ऐसा बंधा है कि अपने रिश्तों को दूर होते देख रहे है हम।

इसीलिए अपनी ज़रूरतों का दायरा सीमित रखे, खर्चो पर लगाम लगाए, बाहरी दिखावे को अपने जीवन मे जगह न दे। खुलकर जिये, मस्त जिये, स्वस्थ जिये, और अपनो के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करें, तकनीकी जीवन को थोड़ा थोड़ा अल्प विराम देते रहें। स्वस्थ रहें, मस्त रहें, क्योंकि जिंदगी मिलेगी न दोबारा।

मूल चित्र: Unsplash

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