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पापा मेरा आपके पास आना, आपका ध्यान रखना, आपके साथ वक्त बिताने से सबको दिक्कत होने लगी थी और इन सब में मेरे पति भी तो शामिल थे।
आज की सुबह कुछ अलग है, सूरज अपनी लालिमा लिए धीरे – धीरे आकाश में उदयमान हो रहा है, पंछी अपने मधुर स्वर में कलरव कर रहे हैं और यह आकाश, क्या आज ही इतने सारे रंग हैं आकाश में या पहले भी कभी थे। जो भी था, अद्वितीय था और कृतिका को ऐसा लग रहा था जैसे काश! थोड़ी देर को ही सही, वक्त ठहर जाए।
वक्त को ना ठहरना होता है और ना वह ठहरा। सात बज गए थे और पापा ने चाय के लिए आवाज़ लगाई।
“जी पापा अभी लाई”, कहकर वह रसोई की तरफ भागी। पापा को चाय पकड़ाने गई तो पापा ने मनुहार भरे स्वर में कहा, “तु भी अपनी चाय यहीं ले आ, आज इत्मीनान से साथ बैठकर चाय पीते हैं।”
“जी पापा”, कहकर वह अपनी ब्लैक टी लेकर वहीं पापा के पैरों के पास बैठ गई थी।
“अब तक नाराज़ है क्या मेरी लाडो मुझसे?” पापा ने मुस्कुराते हुए पूछा तो वह जैसे अपने खयालों से बाहर आई, “नहीं पापा, और आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?”
“मेरी वजह से ही तो तेरा रिश्ता टूटा ना निखिल के साथ, इसलिए” पापा मानो पापा ना होकर कोई बच्चे हो गए थे आज।
उसका दिल भर आया, ” कैसी बात कर रहे हैं पापा आप, निखिल से मेरा रिश्ता आपकी वजह से नहीं टूटा, रिश्ता इसलिए टूटा क्योंकि निखिल और मेरे बीच प्यार ही नहीं था।”
“हम्म!” पापा ने गहरी सांस भरी और मम्मी की फोटो निहारने लगे। पापा जब भी उदास होते, यूं ही घंटो मम्मी की फोटो निहारते रहते और फिर एक गहरी चुप्पी छा जाती घर में। कृतिका को ऐसा लगता किसी दिन यह चुप्पी बढ़ती जाएगी और बढ़ते – बढ़ते एक दिन उसे, पापा को और इस पूरे घर को निगल जाएगी। उसका मन भारी होने लगा और अचानक ही उसने पापा के कंधे पर हाथ रख कर पापा को जोर से हिला दिया।
“हां!” पापा जैसे नींद से जागे।
“क्या हुआ लाडो, अब क्या कर दिया मैंने?” वह मुस्कुराए। बहुत प्यार आने पर पापा उसे लाडो कहा करते थे और वह खुश हो जाया करती।
“पापा आज आपके हाथों का टोस्ट खाने का बहुत मन कर रहा है, बनाओगे?”
“तू मदद करेगी तो ज़रूर बनाऊंगा”, पापा फिर मुस्कुराए।
“तो चलिए, मुझे अभी खाना है”, पापा को हाथ पकड़ कर खींच ले गई रसोई की तरफ। स्पीकर पर पापा का मनपसंद गाना लगा दिया और पापा को सारा सामान पकड़ाती हुई बोली, “पर अब आपके टोस्ट वैसे नहीं बनते जैसे तब बनते थे जब आप मम्मी के लिए बनाते थे।”
“हां अब बस तेरा ही ताना सुनना बाकी था। पहले तेरे नाना के ताने सुने, फिर तेरी मम्मी के, फिर तेरी सास के…”, कहते-कहते चुप हो गए थे पापा।
“कोई बात नहीं पापा, आप बोल सकते हैं, वैसे भी अब वह मेरी सास रही ही नहीं। ” उसका चेहरा भावहीन हो गया।
“पर बेटा इतनी छोटी सी बात पर तुम दोनों को अलग नहीं होना चाहिए था।” आज बड़े दिनों बाद पापा और उसकी बात हो रही थी इस टॉपिक पर वरना निखिल और उसके अलग होने के बाद वह और पापा दोनो ही ख़ामोश हो गए थे, जैसे किसी के पास कहने को कुछ नहीं बचा हो।
“बात छोटी नहीं थी पापा, निखिल और उसके परिवार की बहुत सारी अपेक्षाएं थीं मुझसे, और मैं कोशिश कर रही थी उन अपेक्षाओं को पूरा करने की लेकिन मेरा आपके पास आना, आपका ध्यान रखना, आपके साथ वक्त बिताने से उन्हें दिक्कत होने लगी थी और इन सब में निखिल भी शामिल था।”
“अगर निखिल ने उस वक्त मेरा साथ दिया होता तो शायद मैं और वह साथ होते, लेकिन उसने उस वक्त भी यही कहा कि अगर मुझे अपने पापा का खयाल रखना है तो मुझे उसका घर छोड़ना होगा, तो मैंने वहीं किया जो मुझे सही लगा और आपने अपनी बेटी को इतना कमजोर नहीं बनाया है कि वह अकेले जी ना सके। मैं खुद को संभालना जानती हूं पापा इसलिए आप अपने दिल पर कोई बोझ मत रखिए।”
पापा ने मुकुराते हुए उसे देखा और प्लेट में टोस्ट निकाल कर टेबल की तरफ बढ़ चले।
“वाह! पापा आज तो टोस्ट बिल्कुल वैसे ही बने हैं”, कृतिका बच्चों की तरह उछल पड़ी और पापा ने प्यार से अपना हाथ उसके सर पर रख दिया।
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