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लड़के वाले आज भी लड़की वालों को लाचार और कमज़ोर क्यों मानते हैं?

वो जमाना गया जब लाचारी होती थी बेटी के पिता होने पर। अब वो घबराते, डरते और लाचार पिता नहीं मिलते। अब तो आप अपने बेटों की बोली लगानी बंद करें। 

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वो जमाना गया जब लाचारी होती थी बेटी के पिता होने पर। अब वो घबराते, डरते और लाचार पिता नहीं मिलते। अब तो आप अपने बेटों की बोली लगानी बंद करें। 

“अजी सुनते हो! रमा ने जो रिश्ता बताया है। उसी से करवा देते हैं अपने बेटे पवन की शादी।  एकलौती लड़की है, बाप की प्रॉपर्टी तो मिलेगी ही मिलेगी, हम दहेज भी जितना मांगेगें उतना ही मिलेगा। बेटी का पिता है, जो कहेगें वही करेगा”, मंजु जी ने अपने पति राकेश जी से कहा।

जब पता चला एकलौती लड़की है

मंजु जी की ननद रमा अपनी रिश्तेदारी में से अपने भतीजे का रिश्ता लेकर आई थी। मंजू जी को जब ये पता चला एकलौती लड़की है और पिता की कमाई भी अच्छी है तो लोभ का कीड़ा उनके दिलों दिमाग में घूमने लगा और वह तुरन्त राजी हो गई उस लड़की से मिलने के लिए। अपने बेटे पवन को भी फोन करके बुला लिया और चल दी रितिका से मिलने।

रमा के रिश्तेदार हरिओम जी की बेटी रितिका बहुत ही सुन्दर सुशील और समझदार लड़की थी। बिन मां की बच्ची को बडे़ ही लाड़ प्यार से पाल पोषकर बडा़ किया था हरिओम जी ने। बहुत छोटी थी रितिका जब उसकी मां का देहान्त हो गया। दादी ने तो बहुत बार कहा हरिओम जी से दूसरा विवाह करने के लिए मगर वह तैयार नहीं हुये। उन्होंने फैसला लिया कि वह रितिका की माँ और पापा दोनों बनकर उसे पालेगें। रितिका और हरिओम जी एक दूसरे की दुनिया थे।

दहेज के  लोभी को एक कमी दिखाई दे गई

मंजु जी रितिका को देखने पहुंची। रितिका इतनी प्यारी थी कि पवन को एक नजर में भा गई, लेकिन दहेज की लोभी मंजु को उसमें एक कमी दिखाई दे गई और उसी का फायदा उठाकर वह बोली, “देखिए भाईसाहब आपकी बेटी हमें पसन्द है। पढ़ी-लिखी है, होशियार है लेकिन उसकी लम्बाई बहुत कम है। हमारे लम्बे-चौड़े, हट्टे-कट्टे बेटे के साथ जोगी नहीं और जोड़ी फीकी सी लगेगी इनकी। अब हम आये हैं आपके घर आपकी बेटी को देखने, इसे फेल करेगें तो बदनामी होगी आपकी। हमें ये अच्छा नहीं लगेगा। हम समझ सकते हैं एक बेटी के पिता का दर्द लेकिन अगर आप 20 लाख कैश, एक गाड़ी और अपना ये आलीशान घर हमारे पवन के नाम कर दें तो हम ये शादी कर लेगें।”

इतना देने से जोड़ी जम जायेगी इनकी

मंजु जी के मुख से ऐसी बातें सुनकर हरिओम जी मुस्कराये और बोले, “अच्छा भाभी जी ये घर, गाड़ी और बीस लाख देने से जोड़ी जम जायेगी इनकी? आप बिल्कुल गलत जगह आ गई हैं भाभी जी।  अपने बेटे का सौदा आप कहीं और करिये। हमें ये शादी मंजूर नहीं और हमें कोई अफसोस नहीं होगा आप शादी के लिए मना कर देगी तो बल्कि खुशी होगी इस बात की कि बच गए हम आप जैसे लालची लोगों से रिश्ता जोड़ने से। हमसे मिलने के लिए धन्यवाद। अब आप जा सकते हैं।”

कोई शादी नहीं करेगा आपकी बेटी से

हरिओम जी की बात सुनकर मंजु जी बोली, “ये क्या तरीका होता है बात करने का? आप भूल रहे हैं आप एक बेटी के पिता हैं और इतना घंमन्ड और अकड़ एक बेटी के पिता को शोभा नहीं देती। ऐसे तो कोई शादी नहीं करेगा आपकी बेटी से। भाईसाहब बेटी के पिता हो और बेटियों के पिता को झुकना ही पड़ता है।”

बेटे की बोली लगाने के लिए तैयार

हरिओम जी फिर से मुस्कराने लगे और बोले, “भाभी जी, बेटी का पिता हूं और घमंड है मुझे इस बात पर। तभी तो आप जैसे लोग तैयार बैठे हैं अपने बेटे की बोली लगाने के लिए। वो जमाना गया जब लाचारी होती थी बेटी के पिता होने पर। अब वो घबराते, डरते और लाचार पिता नहीं मिलते। अब बेटियों के पिता गर्वित होते हैं इस बात को लेकर कि वो दे रहे हैं एक ऐसी कन्या को जो किसी के घर की लक्ष्मी बनेगी, उनके वंश को आगे बढ़ाएगी और उनके घर को स्वर्ग बनायेगी। अच्छा हुआ आपने अपनी हकीकत आज ही दिखा दी वरना बहुत पछतावा होता मुझे अपनी बेटी को आप जैसे लोगों से जोड़कर। अब आप जा सकते हैं। मुझे और भी बहुत काम है।”

लड़की के पिता हाथ जोड़ते

मंजू जी और राकेश जी देखते ही रह गये एक बेटी के पिता को। आज पहली बार किसी बेटी के पिता ने उनसे ऐसे बात की थी वरना अब तक जितनी भी लड़कियां देखी उन्होने अपने बेटों के लिए सब के पिता हाथ जोड़ते, अनुनय विनय करते ही दिखे।

दहेज के लालची और लोभी लोग

मंजू जी और राकेश जी बड़बडाते हुए वहां से चलते बने और राकेश जी ने बडे़ ही शान से अपनी मुछों पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटियाँ तो लक्ष्मी का रूप होती हैं। ऐसे दहेज के लालची और लोभी लोगों के हाथ में तो हरगिज नहीं दूगां मैं अपनी बेटी को।  मेरी बेटी उस घर में जायेगी जहां उसे मान सम्मान मिलेगा प्यार मिलेगा और उसके गुणों की कदर होगी। जहां उसकी आन्तरिक सुन्दरता देखी जायेगी ना कि बाहरी।”

लाचारी दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है

दोस्तों, हरिओम जी की तरह ही हर पिता को गर्व होना चाहिए कि वो बेटी का पिता है और ये अहसास भी कि वह बेटे के पिता से कम नहीं है, कहीं ज़्यादा है। क्योंकि वह अपनी बेटी दे रहे हैं। एक बेटी का पिता होना लाचारी नहीं, गर्व और सौभाग्य की बात होनी चाहिए और ये गर्व हर पिता के अन्दर बेटी के जन्म से ही आना चाहिए।

लाचारी दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है, ना ही लड़के के परिवार के सामने झुकने की। बेटी के पिता का ओहदा बहुत ऊंचा होता है, बस हमें उस नजरिये की आवश्यकता है जिससे समाज इस बात को समझ सके और मान सके। ये नजरिया हर बेटी के पिता को अपने अन्दर लाना ही होगा, समाज की कुंठित सोच को बदलने के लिए।

मूल चित्र : Canva

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