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छुट्टियों में बच्चों के आने की खबर पाकर मां बौरा सी जाती है, चटनी, पापड़, मर्तबान में सहेजती अक्सर, धूप-छांव के फेर में पड़कर, कुछ मुरझा सी जाती है...
छुट्टियों में बच्चों के आने की खबर पाकर मां बौरा सी जाती है, चटनी, पापड़, मर्तबान में सहेजती अक्सर, धूप-छांव के फेर में पड़कर, कुछ मुरझा सी जाती है…
छुट्टियों में बच्चों केआने की खबर पाकरमां बौरा सी जाती है!
साफ-सफाई की धुन मेंफर्नीचर से टकराघायल हो जाती है!सच में मां बौरा सी जाती है!
चादर, तकिए, रजाई, तौलिएतहाकर रखने में मगनभूखी-प्यासी, रहकरपूरा घर सजाती है!सच में मां बौरा सी जाती है!
अचार, मुरब्बे, चटनी, पापड़मर्तबान में सहेजती अक्सरधूप-छांव के फेर में पड़करकुछ मुरझा सी जाती हैसच में मां बौरा सी जाती है!
हर दिन नया पकवान बनाचखकर, मन ही मनइठला सी जाती है!सच में मां बौरा सी जाती है!
तय दिन की बाट जोहतीघड़ी की धीमी चाल देखकरकुछ उकता सी जाती हैसच में मां बौरा सी जाती है!
मुहल्ले भर को बच्चों के आने कीखबर सुनाती ,चलता-फिरताएक अखबार बन जाती है!सच में मां बौरा सी जाती है!
बाद जाने के फिर, सूने पड़े कमरों मेंबच्चों की गूंजती हंसी और किस्सेमन ही मन दोहराती जाती है,सच में मां बौरा सी जाती है!
मूल चित्र : Canva
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