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मेरी बेटियों के गहने

बुरे वक़्त में सारे गहने बिक जाएंगे लेकिन स्वावलम्बन का गहना हमेशा लड़की के पास रहेगा।

मैंने अपनी बेटियों को स्वावलम्बन का ज़ेवर दिया है, सर उठाकर जीने का ज़ेवर दिया है।

देवकी का आज उस घर में जाने का बिलकुल भी मन नहीं था,  अपने ससुराल में जाने की उसे कोई इच्छा नहीं थी,  आज से 25 साल पहले ऐसा नहीं था जब देवकी उस घर में बहू बनकर आई थी, बहुत प्यार से सबसे रिश्ता बनाकर रखने की कोशिश की थी देवकी ने पर उसकी तुलना हमेशा उसकी अमीर घराने से आई जेठानी के साथ की जाती, उस पर जेठानी के दो बेटे और एक बेटी थी जबकि देवकी की दो बेटियां थी।

देवकी की शादी के बस १० ही साल हुए थे कि एक कार दुर्घटना में उसके पति चल बसे,  देवकी पर मानों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, उसके ससुराल वालों का रवैया और क्रूर हो गया, सबको देवकी और उसकी बेटियां अब बोझ लगने लगी, देवकी नौकरी करने की बात करती तो सब उसे और ताना देते और कहते, “हमारे घर की बहू बेटियां बाहर जाकर मर्दों के साथ नौकरी नहीं करती, तुम अपने ज़ेवर बेचकर पैसे लाती रहो, देवकी के पास बहुत ज़्यादा ज़ेवर थे भी नहीं, उसे लगता सब ज़ेवर बेच दिए तो बेटियों की शादी के लिए क्या बचेगा?

ऐसे ही २ साल निकल गए, देवकी की बड़ी बेटी तारा बहुत ही मेधावी छात्रा थी, उसे स्कूल की तरफ से एक डिबेट स्पर्धा में बड़े शहर भेजने का प्रस्ताव आया, देवकी ने जब अपनी सास से थोड़े पैसे मांगे तो सास ने बहुत ही गुस्से से कहा, लड़का होता तो मैं ज़रूर दे देती पर इस लड़की पर मैं एक पैसा खर्च नहीं करुँगी, पहले ही तेरी दोनों बेटियों की पढ़ाई का खर्चा उठाना पड़ता है हम लोगों को, क्या होगा इतना पढ़ लिखकर?  उस दिन देवकी खूब रोई थी, उसकी बड़ी बेटी ने अपनी माँ के दुःख को समझते हुए स्कूल वालों को मना कर दिया पर अब देवकी ने ठान लिया था कि अपनी बेटियों को वह ज़िल्लत की ज़िन्दगी नहीं जीने देगी।

उसने ससुराल से अलग होने का फैसला कर लिया, अपनी एक पुरानी सहेली की मदद से एक स्कूल में उसे आया की नौकरी मिल गई थी, जब उसने अपने अलग होने का फैसला ससुराल में सुनाया, तो बवाल मच गया, उसकी सास ने उसे कोसते हुए कहा, “इस घर से बाहर जाओगी तो पैसे-पैसे को मोहताज हो जाओगी, कोई तुम्हारी और तुम्हारी बेटियों की इज़्ज़त नहीं करेगा, कोई उनसे शादी नहीं करेगा, वापस तुम्हें यहीं आना पड़ेगा।”

देवकी ने किसी की भी नहीं सुनी, दिन बहुत मुश्किल से गुज़र रहे थे, पर देवकी और उसकी बेटियों ने हार नहीं मानी, दोनों बेटियों ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की,  उनकी कॉलेज की पढ़ाई स्कालरशिप पर हुई, दोनों बेटियों को बहुत अच्छी नौकरियां भी मिल गई, देवकी की मेहनत और त्याग का उन्होंने मान रखा, अब देवकी की दोनों बेटियां नहीं चाहती थी कि  देवकी काम करे, उसकी छोटी बेटी उषा ने कहा, “माँ तुमने बहुत मेहनत कर ली, बहुत कष्ट उठाए, अब तुम आराम करोगी, मैं तुम्हे घुमाने ले जाउंगी, देवकी ने अपनी बेटी का माथा चूम लिया और कहा, “तुम दोनों मेरे जीने का कारण हो, मेरा मान और अभिमान हो।”

आज बरसों बाद ससुराल से उसे अपनी जेठानी की बेटी की शादी न्योता का आया था, वह बिलकुल भी जाना नहीं चाहती थी पर उसकी बेटियों ने कहा, “हम शान से चलेंगे माँ, तुम्हें  किसी से डरने की ज़रूरत नहीं।” उसकी बेटियों ने उसका साहस बढ़ाया, इसलिए देवकी शादी में जाने के लिए तैयार हो गई।

अपने पुराने घर में घुसते ही देवकी को एहसास हो गया कि वहां पर लोग उसकी बेइज़्ज़ती करने के फ़िराक में थे, जेठानी ने इतराते हुए कहा, “पूरे 50 लाख खर्च किये हैं शादी में,  20 लाख के तो सिर्फ गहने ही हैं,  मेरी बेटी अपना सर ऊंचा करके रहेगी ससुराल में,”  देवकी की सास अब बूढ़ी हो गई थी, फिर भी तेवर वैसे के वैसे ही थे,  सब रिश्तेदारों के सामने उन्होंने देवकी को व्यंगात्मक तरीके से कहा,”देख लो, ऐसे की जाती है बेटी की शादी,  भला तुम कहाँ कर पाओगी अपनी दोनों बेटियों की ऐसी शादी,  बेटा होता तो दहेज़ लेकर आता।”

देवकी ने अपनी दोनों बेटियों की तरफ शान से देखा और फिर कहा, “मांजी, मेरी बेटियों को इज़्ज़त से जीने के लिए उन्हें मैंने बहुत कीमती गहने दिए हैं,  उनका मूल्य करोड़ों से भी ज़्यादा है,  मैंने अपनी बेटियों को स्वावलम्बन का ज़ेवर दिया है, सर उठाकर जीने का ज़ेवर दिया है, ज़िन्दगी अपनी शर्तों पे जीने का गहना दिया है, आत्मसम्मान जैसा बहुमूल्य गहना दिया है,  मेरी बेटियों को समाज में सर उठाकर जीने के लिए या ससुराल में सम्मान पाने के लिए सोने या हीरे के गहनों की ज़रूरत नहीं है,  भगवान की दया से आज मेरी दोनों बेटियां अच्छी नौकरी कर रही है और भविष्य में अपने लिए खुद गहने बनवाने की क्षमता रखती हैं, अगर मेरा बेटा भी होता तो भी मैं कभी दहेज़ नहीं लेती,  मेरे लिए मेरी बहू भी उतनी ही प्यारी होती, जितनी मेरी बेटियां हैं। ”

“मैं अपने बेटे को भी अच्छे संस्कार देती, अपनी बेटियों की इज़्ज़त के लिए मैंने यह घर छोड़ा था, आज भी उनकी इज़्ज़त से ज़्यादा मेरे लिए और कुछ महत्त्व नहीं रखता, इसलिए अब यहाँ एक पल भी नहीं रुकूंगी, लेकिन जाने से पहले यह ज़रूर कहना चाहूंगी कि हर माता-पिता को अपनी बेटियों के लिए लाखों खर्च करके गहने बनवाने की बजाय उनकी पढ़ाई पर और उन्हें स्वावलम्बी बनाने के लिए पैसे खर्च करने चाहिए,  बुरे वक़्त में सारे गहने बिक जाएंगे लेकिन स्वावलम्बन का गहना हमेशा लड़की के पास रहेगा,  चलती हूँ।”

मूल चित्र : Pexels

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Ritwika Roy Mutsuddi

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