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किस रूप का वर्णन करें यहाँ, ये कहानी भी बड़ी पुरानी है, जिस लब्ज़ को छू दो यहाँ, वहीं से शुरू एक नई कहानी है, कभी झाँझर, कभी पायल, कभी घुंगरू, कभी ग़ज़ल...
किस रूप का वर्णन करें यहाँ, ये कहानी भी बड़ी पुरानी है, जिस लब्ज़ को छू दो यहाँ, वहीं से शुरू एक नई कहानी है, कभी झाँझर, कभी पायल, कभी घुंगरू, कभी ग़ज़ल…
शब्द है छोटा और शख़्सीयत में भरी गहराई, बंज़र ज़मीन पे बौछार सी लहराई, कभी मुस्कुराहट, कभी आँसू, कभी रौशनी सा पाया तुझे हरसू…
क़ुरबानी है बसी जिसके जीने में, बड़े दर्द है छुपे उसके सीने में, कभी चीखी, कभी चिल्लाई, फ़िर भी ना दी किसी को सुनाई…
खिलने की चाहत लिए मासूम सी कली, ना जाने किन हालातों में पली, कभी ठुकराई, कभी अपनाई, होश सँभाले तो कर दी गई पराई….
करती हर पल अपनों पे अर्पण, ढूंढे आइने में अपना ही दर्पण, कभी भीगी पलकें, कभी बेहता काजल, कभी सुखा गजरा, कभी ठहरा आँचल…
जिसके दम से सृष्टि का वजूद बना है, उसे ही यहां साँस लेना मना है, कभी बचपन में सताई गई, कभी घरों में जलाई गई, कभी आँखें खुलने से पहले सुलाई गई, कभी जानते हुए दुनिया में ही ना लई गई…
चुटकी भर सिंदूर के बदले, जीवन सारा बदल दिया, अपने मान और सम्मान को भूली, रूप अनेक अपना लिया, कभी तुलसी, कभी पूजा, कभी चौखट, कभी देहली, उसके आगे ना संसार दूजा…
तुझसे ही महका सारा संसार, तुझसे ही हर गीत हर त्यौहार, कभी बाँसुरी, कभी ताल, कभी होली, कभी गुलाल…
मत सेह इतने अपमान, काम से काम तू तो कर अभिमान, तू कोई मजाक, कोई ताली नहीं, किसी के होंठों पे बसी गाली नहीं, एक मूरत और रूप अनेक, कभी तूफ़ान, कभी आँधी, कभी दुर्गा, कभी काली…
मुठ्ठी भर हिम्मत समेत ले, चुटकी भर विश्वास भर के, एक बूँद ख़ुशी डाल खुद में, एक चम्मच अपने डर को पी जा…
तू कोमल है कमज़ोर नहीं, तुझे हरा सकें इतना देवों में भी ज़ोर नहीं, तू अटल है, कभी कसम, कभी इरादा, कभी निश्चय, कभी वादा, बस इतनी सी हिम्मत जो तू दिखलाएगी, उस दिन नारी अबिला नहीं तेजस्विनी कहलाएगी…
मूल चित्र : Canva
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