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जिन्होंने देखा है अपनी मांओं को कदम फूक-फूक के रखते हुए वे जानती हैं हर पाई की अहमियत…

जिन्होंने देखा है अपनी मांओं को, सबसे आखिर में थाली लगाते, वे जानती हैं, चादर के आकार और पैरों को पसारने के बीच,सामंजस्य बैठाना, क्या अहमियत रखता है!

जिन्होंने देखा है अपनी मांओं को, सबसे आखिर में थाली लगाते, वे जानती हैं, चादर के आकार और पैरों को पसारने के बीच,सामंजस्य बैठाना, क्या अहमियत रखता है!

जिन्होंने देखा है अपनी मांओं को
पापा की पुरानी कमीज़ों से
ब्लाऊज़ सिल कर पहनते,
वे जानती हैं तनख्वाह की
एक एक पाई जोड़कर रखना,
क्या अहमियत रखता है!

जिन्होंने देखा है अपनी मांओं को
सब्जी-भाजी का मोल भाव करते,
मुट्ठी में बंधे पैसों को मन ही मन गिनते,
वे जानती हैं,
डायरी में हिसाब जोड़ते वक्त आए
दस रुपए का फर्क ढूंढ पाना
क्या अहमियत रखता है!

जिन्होंने देखा है अपनी मांओं को,
सबसे आखिर में थाली लगाते,
बच्चों की छोड़ी तरकारी चाव से खाते,
वे जानती हैं, चादर के आकार
और पैरों को पसारने के बीच
सामंजस्य बैठाना
क्या अहमियत रखता है!

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