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मेरे पति मुझे हमेशा एक ही गिफ्ट क्यों देना चाहते हैं…

पति मोबाइल की फ़्लैशलाइट में मुँह चमकाते और आँखें मटकाते हुए बोले, "कौन नहीं पूछता! हम जो हैं! आप काम वाली थोड़े ही हो आप तो हमारी महारानी हो!"

पति मोबाइल की फ़्लैशलाइट में मुँह चमकाते और आँखें मटकाते हुए बोले, “कौन नहीं पूछता! हम जो हैं! आप काम वाली थोड़े ही हो आप तो हमारी महारानी हो!”

रसोई के काम निपटा कर हेमा जैसे ही अपने बेडरूम में आई तो, ” उफ! कितना काम था! काम वाली भी बस मर्जी करती है! कर सकती है भई, कामवाली जो ठहरी। हम मुफ़्त की कामवालियों को तो कोई पूछता भी नहीं!”

पति मोबाइल की फ़्लैशलाइट में मुँह चमकाते और आँखें मटकाते हुए बोले, “कौन नहीं पूछता! हम जो हैं! आप काम वाली थोड़े ही हो आप तो हमारी महारानी हो!” और मोबाइल अभी भी एक हाथ में पकड़े बांहें खोलते हुए बोले, “देखो! आ जाओ!”

“नहीं! नहीं! नहीं! दूर ही रहो! सारा दिन मोबाइल आँखों पर चश्मे जैसे चढ़ाए रहते हो। तुम्हें क्या पता कैसे दिन निकल रहे हैं?”

“लो छोड़ दिया मोबाइल! अब तो आ जाओ!”

“जाओ जी! लॉकडाऊन में तुम पूरे सनकी हो गए हो! वीडियो वगैरह देख कर पहले मन भटका लेते हो फिर मेरी तरफ, अब यूँ न देखो!”

“अरे! क्यों सितम ढाती हो! एक ही हो ना! तभी नखरे दिखाती हो! वरना, खुद मेरे आगे-पीछे घूमती!”

“अच्छा! और तुम क्या देते वही? पति का गिफ्ट? पहले ये बताओ ये पत्नियों वाली बात तुमने बोल भी कैसे दी? और चलो मान भी लें तो उनकी मांगें, जरूरतें कैसे पूरी करते! मुझे तो साफ मना कर देते हो! कैसे देते उन्हें उपहार!”

पति जो अब तक पत्नी को अपनी तरफ खींच चुके थे, बोले, “उपहार तो एक ही है, हमारे पास!”

मैंने हंसते हुए पूछा, “और वो क्या?”

पति हंसी रोकते हुए बोले, “ये मेरा दिल!”

“और ये जो अभी और पत्नियों की बात कर रहे थे! तुम मर्द भी ना बड़े घुन्ने(मन के काले) होते हो, पर कभी-कभी मन की बात तुम लोगों की जुबान से निकल ही आती है।”

“मेरी जान वो तो गुस्से में तुम्हारे ब्लैक एंड वाईट चेहरे पर जो रंगीन टी वी देखने का अलग ही सरूर है ना, उसका मजा लेना चाहते थे। देखो तो गुस्से में और भी हसीन लगने लगती हो।”

मैंने हाथ झटक कर कहा, “दूर ही रहो! आज बहुत थक गई हूँ!”

“ऐसे न करो! देखो लोगों के पति अपनी पत्नियों से कहाँ ऐसे इजाज़त लेते हैं? बस स्विमिंग पूल में छलांग ही लगाते हैं, चाहे डूबें या पार!”

“अच्छा! तो तुम भी ऐसा करने की धमकी दे रहे हो?”

“नहीं यार! मैं और धमकी? तुम्हारा गुलाम हूँ! चलो पाँव दबा देता हूँ! चलो ना! अब देर ना करो! आ जाओ!”

“जाओ! मैं कहां हंस रही हूँ ! गुस्से में हूँ! ये लॉकडाऊन भी न जाने कब जाएगा?”

पति ने रंग बदलते हुए कहा, “हाँ! हाँ ! बहुत जुल्म कर रहा हूँ क्या मैं? क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगता?”

“हैं! ये क्या कह रहे हो?”

अब पति अगला दांव खेलते हुए और गुस्से में मोबाइल से अपना चेहरा ढक लेते हैं और साथ में गुस्से में बोलते जाते हैं, “ठीक है! फिर मुझे बता दो हफ्ते में कितने दिन कृपा करोगी? उसी दिन तुमसे उम्मीद लगाएँ!”

“हफ्ते में? लॉकडाऊन से पहले याद है महीने भर में गिने-चुने दिनों की बात होती थी और अब तो तुम रोज़ ही मूड में होते हो?”

मैंने कहा, “दूर रहो! 2005 के अधिनियम का पता है ना! तुम मजबूर कर रहे हो!”

पति आँखों में आँखें डाल झूठे गुस्से से, “अब ये कानून कहाँ से आ गया?”

“बस आ ही गया, तुम सरकारी अफसर जो ठहरे! थोड़ा मुझसे डर के रहा करो!”

पति अब बहुत गुस्से में बोले, “बस! तुम्हें सिरे चढ़ाया है ना! तभी ऐसी जली-कटी बातें सुनाती हो! ” तभी लगा कि मैं हंस रही हूँ, तो, “अच्छा! मजाक? ठिठोली?”

और मैं पति की मजबूत गिरफ़्त में इस कोमल संघर्ष का आनंद लेती हुए हंसती पड़ी! पति खुशी में दाँत भींचते हुए बोले, “मन तो तुम्हारा भी करता है पर पता नहीं क्यों ये नारियल सी बनी रहती हो! ऊपर से कठोर अंदर से नरम! “कल तुम्हारा व्रत भी है! अब कहर मत ढाओ!”

“बड़े वो हो! तुम्हारा नाम मैं कैलेंडर ही रख दूंगी! पिछले हफ्ते बेटे का जन्मदिन था तो भी यही सेलिब्रेशन! मेरा जन्मदिन हो तो भी यही फ़न ! और तुम्हारे जन्मदिन पर तो ये उपहार बहुत जरूरी है! शादी के बाद मुझे पता होता कि बार-बार मिलने वाला उपहार और सेलिब्रेशन यही होती है तो मैं शादी ही ना करती!”

“अब तो हो गई शादी! और वो भी 10 साल बीत गए। चलो ना! नहीं तो बूढ़े होने में समय नहीं लगेगा! पछताओगी फिर!” पति हंसने लगे और फिर हंसी दुगनी हो गई! फिर कमरे में सन्नाटा!

मैं सुबह रसोई में काम करते हुए रात की गुनगुनी बातें याद कर अकेली ही मुस्कुराए जा रही थी! और सोच भी रही थी, कि ये ‘पति का गिफ्ट’ भी ना! चाहे जो भी मौसम, गर्मी, सर्दी, बरसात, हो! कोई पर्व, चाहे जन्मदिवस या शादी की सालगिरह या कोई और अचानक की खुशी, पर गिफ्ट बस यही!!

ये बेस्ट सेलिब्रेशन, युगों से यूँ ही चल रही है। चाहे जब मनोरंजन के साधन बस मेले होते थे तब भी और आज जब मनोरंजन के दूसरे साधनों की भरमार है आज भी। यही ट्रेडिंग है! इस मनोरंजन के साधन का कोई तोड़ नहीं!

पतियों का बस एक तकाज़ा- एक बार आजा! आजा! आजा! और अगर पत्नी ना कर दे तो दो तरह के परिणाम! एक तो मेरे पति जैसी नौटंकी! दूसरे वो जो जिनके बारे में दबे या खुले स्वर में बस चुगली या क्रांति ही होती है। और वजह यह कि पत्नियों की ना को वो ना नहीं गिनते!

अगर गिनने को मजबूर किया जाए तो! बेइज्ज़ती! तौहीन! कोई अपील, कोई दलील! नहीं।
सब पति की इच्छा पर निर्भर! जब चाहा स्विमिंग पूल के किनारे खड़े हो उस के मन की गहराई की थाह लिए बिना, बस हर बार छलांग! और उस अपनी ही अर्धांगनी का व्यक्तित्व! छपाक की ध्वनि से किनारे पर तितर-बितर अपने अस्तित्व को ढूंढता!

और मन की गहराइयों में आनंद दोनों तरफ ही नहीं होता हमेशा। एक तरफ बलिष्ठ के अहं की शांति भर, बस! दूसरी तरफ कमजोर केवल छिन्न-भिन्न आत्मा और शरीर लिए उसी तरह खुद को समेटने की कोशिश करता है, जैसे आँधी, झकझोरों के बाद कोई गाँव अपने अस्त-व्यस्त व्यक्तित्व को संभालने भरने की बस सांत्वना देता!

इसी क्रम में उसी स्विमिंग पूल के किनारे पर तड़पती मछली सा अस्तित्व जिसको वह अपनी तरल, सजल आँखों के एक्वेरियम में शरण देने की कोशिश करती है। और इन दिनों लॉकडाऊन में तो उन पत्नियों को इतना भी समय न मिलता होगा कि वह अपने किनारे पड़े अस्तित्व की छिट-पुट बूंदों को सूखने से पहले अपनी आत्मा तक पहुंचा सकें तथा झूठी तसल्ली दे सकें कि, हाँ! वे मानव जाति की हैं!

शायद वे इससे बेहतर जीवन जानवरों या पंछियों की दुनिया में ही जी लेतीं! यह इंसानों के घर! इंसानों की दुनिया! जहां घर की चारदिवारी ही जेल की चारदिवारी से भी अधिक डरावनी, निर्जीव, बीयाबान! यहां दिल प्यार से नहीं, डर के मारे ही धड़कता, धधकता होगा! अपने ही अंदर का शोर इतना कि किसी कानून, नैतिक मूल्यों की कोयल के कूकने की मधुर आवाज न आ सके!

सचमुच ये पति का गिफ्ट एक चारदीवारी को घर! तथा दूसरी चारदिवारी को कारागार बना देती है।
और यह सब किस पर आधारित है? बस एक स्पर्श पर! एक स्पर्श जो आत्मा तक को नवजीवन से भर दे! और एक स्पर्श जो आत्मा को छिन्न-भिन्न, नष्ट-भ्रष्ट कर दे!

और कसूर किसका? पति, पत्नी, भाग्य, कर्म, सोच, *सामंजस्य (एडजस्टमेंट) का? पता नहीं!
क्योंकि जो जिस स्थिति में हो वही बता सकता है कि कहां छाले हैं, तकलीफ है और दुख रहा है।

ऊपरी सुझाव तो देने वाले बहुत होंगे जो कि दुनिया का सबसे आसान कार्य है। पर ये भी सत्य है कि सुझाव कोई भी दे पर इलाज़ उसी आत्मा की इच्छा पर ही निर्भर करता है जो अपने अस्तित्व को ढूंढ रही है, इंतजार कर रही है, इस लॉकडाऊन के खुलने का!

पर तब भी लॉकडाऊन खुलने के बाद हो सकता है इस भूचाल की रिक्टर स्केल पर तीव्रता कम हो जाए पर भूचाल कब खत्म होंगे! याद रखें कि आपके हिस्से के दंश कोई झेलने नहीं आएगा! तो फिर उम्मीद किससे? क्योंकि हम मानव हैं, सजीव मानव! न कि पति के लिए एक निर्जीव ‘पति का गिफ्ट…’

मूल चित्र : Stull from short film Her Choice/Sarcastic, YouTube

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