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प्रशांत प्रत्युष कहते हैं कि मेरे लेख अक्सर मेरे एक्सपीरिएंस पर होते हैं या फिर मैं महिला साथियों से पूछता हूँ कि उनका क्या मानना है।
जैसा कि आप सब जानते हैं कि हम आपको अपने कुछ चुनिंदा टॉप ऑथर्स को हिंदी टॉप ऑथर सीरीज़ के ज़रिये मिलवाने ला रहे हैं, तो क्या आज आप अपने अगले फेवरेट ऑथर से मिलने के लिए तैयार हैं?
हमारे टॉप ऑथर्स की इस सीरीज़ में मिलिए हमारे अगले टॉप ऑथर प्रशांत प्रत्युष से
प्रशांत प्रत्युष अपने ग्रेजुएशन के समय से ही वुमन इश्यूज़ पर लिखते आये हैं और ये अभी अपनी पी. एच. डी. भी इसी विषय पर कर रहें हैं। और ये फ्री लांस लेखक के रूप में काम कर रहें हैं।
प्रशांत के लेख उन्हें फेमिनिस्ट पुरुषों की श्रेणी में रखते हैं। इनके लेख ज़्यादातर पितृसत्ता को ललकारते हैं और समाज से कठोर सवाल पूछते से हिचकिचाते नहीं।
प्रशांत ने कई ऐतिहासिक महिलाओं के बारे में भी लेख लिखे हैं। ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि हिंदी साइट पर ऐतिहासिक-महिलाओं की केटेगरी इनके दम से ही है। साथ ही प्रशांत ने कई वेब सीरीज़ के रिव्यु लिखे हैं जिसकी वजह से हमारी फिल्मों के केटेगरी बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।
इनके लेख अक्सर फीचर्ड लेख के कॉलम में प्रकाशित होते हैं। उम्मीद है आपने ज़रूर पढ़े होंगे और अगर नहीं पढ़े हैं तो आज ही पढ़ें।
लिखने पढ़ने से मेरा रिश्ता काफी पुराना रहा है। ग्रेजुएशन के समय से ही मैं लिखता आया हूँ। पर वो खुद के सुख के लिए था जैसे अक्सर डायरी में लिख लिया करता था या दोस्तों के बीच सुना दिया। मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन ( पत्रकारिता एवं जन संचार ) से किया और साथ ही कॉलेज में जेंडर स्टडीज़ की भी क्लास अटेंड किया करता था तो उस समय मुझे लगा कि जो मैं लिख रहा हूँ और जो मैं अपनी लेख के जरिये कहना चाहता हूँ वो यही तो है। और कहीं न कहीं मेरे जर्नलिज्म करने का उद्देश्य भी यही था।
तो मैंने वही से जेंडर इश्यूज़ की पॉलिटिक्स और हिस्ट्री समझी। फिर मेरी जर्नलिज्म राइटिंग भी वीमन इश्यूज़ से ही रिलेटेड थी। उसके बाद मैंने एम. फिल भी वीमन स्टडीज़ से ही करी। और अभी मेरी पी. एच. डी. भी जेंडर एंड मीडिया इन हिंदी जर्नलिज्म पर ही है। तो ये एक शुरुवात कह सकते हैं।
मैंने अपनी रिसर्च से जाना की अब हिंदी जर्नलिज्म में एडिटोरियल पेज पर वूमन इश्यूज़ से रिलेटेड एडिटोरियल नहीं आते हैं। लेकिन हां उन्हें फ़ीचर लेख में ज़रूर बख़ूबी दर्शाया जाता है। और अब तो वेब साइट्स के बाद जर्नलिज्म का ट्रेंड ही बदल गया है। तो मैंने वहीं से सोचा की क्यूँ न अपने एक्सपिरिएंसेस को और एक्स्प्लोर किया जाये और महिलाओं के मुद्दों को पकड़ा जाये और बहुत ही हल्के शब्दों में उन्हें एक फीचर के रूप में लिखा जाये जिससे पाठक अपने आप को जोड़ सकें।
फिर मुझे लगा कि कोई भी कम्युनिटी अपने हिस्टोरिकल बैकग्राउंड से अपने आप को सशक्त महसूस करती है। और मुझे महसूस हुआ की मेरी स्कूल की पढ़ाई से लेकर पी. एच. डी. तक कहीं भी महिलाओं की हिस्ट्री के बारे में बात नहीं हुई है। इसीलिए मेरी अधिकतर कोशिश रहती है कि मैं महिलाओं की हिस्ट्री से सम्बन्धित लेख लिखुँ।
इसके अलावा मैं फिल्मों से सम्बन्धित लेख लिखता हूँ क्यूँकि मैंने देखा है की कुछ दशकों में फिल्मों में महिलाओं के इश्यूज़ को सब्जेक्ट बनाया जा रहा है और फिर भी वो दावा करते हैं कि वो फेमिनिस्ट नहीं है लेकिन उनकी कहानियाँ फेमिनिज़्म के ही इर्द गिर्द घूमती है। तो इसीलिए मैं फिल्मों का फ़ेमिनिस्ट नज़रिये से मूल्यांकन करना चाहता हूँ जो कि अब बहुत ज़रुरी हो गया है।
ऐसा मेरे साथ कोई फिक्स शिड्यूल नहीं है। मैं अक्सर सोशल मीडिया खासकर के ट्विटर को ही अपना न्यूज़ सोर्स मानता हूँ। तो जब भी मुझे कोई खबर में लगता है की इसे हम फेमिनिस्ट एंगल से लिख सकते हैं तो मैं लिख देता हूँ।
ये इस पर डिपेंड करता है कि मैं क्या लिख रहा हूँ। अगर मेरे टॉपिक से रिलेटेड मेरे पास स्ट्रक्चर है और उस पर फैक्ट्स इंटरनेट पर मौज़ूद हैं, तो 4 से 5 घंटों में मैं एक आर्टिकल लिख लेता हूँ। क्यूंकि पी. एच. डी. के दौरान मुझे लिखने की आदत हो गयी है तो लिखना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। बस उसकी रिसर्च जितनी जल्दी हो जाती है उतना ही जल्दी वो आर्टिकल तैयार हो जाता है। जैसे मैं वूमन हिस्ट्री के बारे में लिखता हूँ, और उसमे बहुत कम फैक्ट्स मौज़ूद होते हैं तो वो मेरे लिए थोड़ा टाइम टेकिंग हो जाता है।
जब मैं JNU में पी. एच. डी. के इंटरव्यू के लिए आया था तब भी मुझसे ये सवाल पूछा गया था कि तुम पुरुष होकर महिलाओं के बारे में क्यों लिखना चाहते हो, किस प्रकार से जुड़ाव महसूस करते हो। तो तब भी मेरा यही जवाब था की मुझे लगता है कि हमारे पूरे इतिहास में महिलाओं का इतिहास ही ऐसा है जिसे उन्होंने खुद लिखा है, कई बार अपनी डायरी में लिखा तो कई बार कविताओं के माध्यम से उन्हें एक्सप्रेस किया है।
तो यही एक कारण है कि मेरा जुड़ाव विमेंस इश्यूज़ से ज्यादा है क्यूँकि वो सच है। उस में बनावट नहीं है। तो मेरे लेख अक्सर मेरे एक्सपीरिएंस पर निर्भर होते हैं या फिर मैं महिला साथियों से इसके बारे बात करता हूँ कि उनका क्या मानना है।
मेरा मानना है कि एक पढ़े-लिखे व्यक्ति की ज़िम्मेदारी होती है कि वो अपने साथ साथ अपने आस पास के लोगो को भी पढ़ाये। तो जब मैं एम. फिल. कर रहा था तब मैं अक्सर अपने घर पर पढ़ने के लिए लिटरेचर भेजता रहता था और कहता था की आप लोग इसे पढ़िए। तो पी. एच. डी. तक आते आते वो मेरा पर्सपेक्टिव समझ चुके थे। तो कभी फैमिली की तरफ से कोई दिक्कत नहीं आयी। और मेरे दोस्तों को भी पता है कि मेरा फेमिनिस्ट व्यू पॉइंट है।
लेकिन दिक्क़ते वहां आती है जब कोई व्यक्ति अचानक से पूछ लेता है की आप पुरुष होकर फेमिनिस्ट कैसे हो सकते हैं और अगर वो व्यक्ति समझना नहीं चाहते तो मैं उन्हें समझाने की कोशिश नहीं करता हूँ। मुझे लगता है की जब वो खुद इसे एक्सपीरियंस करेंगे तो उन्हें बेहतर तरिके से खुद ही समझ आ जायेगा। और मैं इन बेकार की बहस में उलझने से बेहतर लोगो की मदद करना ज्यादा पसंद करता हूँ।
मैं ये बात अक्सर अपनी महिला साथियों से भी करता हूँ। हमारी नानी दादी को छूट नहीं थी कि वो अपनी बात रख सकें लेकिन अब हमारे पास हमारे मौका है कि हाँ हम अपने अनुभवों के हिसाब से अपनी आने वाली पीढ़ी को तैयार कर सकें। उन्हें बता सकें कि असल ज़िंदगी और फ़िल्मी दुनिया में बहुत अंतर है। हमें बहुत सी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा। तो बस मेरी कोशिश रहती है कि मैं अपने अनुभवों को सबके साथ साझा कर सकूँ।
मुझे मेरे कुछ ज्यादा खास अचीवमेंट नहीं लगते हैं। लेकिन हां समाज में, मेरे आस पास जो बदलाव आ रहे हैं वो ही मेरे लिए सबसे बड़ा अचीवमेंट है। मैं कई न्यूज़ पेपर के लिए वीमेन रिलेटेड आर्टिकल्स लिखता हूँ और फिर जब रीडर्स मुझसे कॉटेक्ट करते हैं और अपने ओपिनियन बताते हैं तो मुझे बेहद ख़ुशी मिलती है कि हां मेरे लेख से लोगो की जिंदगी में बदलाव आ रहे हैं, वो इससे जुड़ाव महसूस कर पा रहे हैं।
मुझे बचपन से ही किताबें पढ़ना बहुत पसंद है। मेरे दादाजी की घर में ही खुद की एक लाइब्रेरी हुआ करती थी। तो ये माहौल मुझे घर से ही मिला है। और मूवीज़ देखना भी बेहद पसंद है। इसके अलावा मेरा एक सपना है की मैं ट्रक ड्राइवर बनकर भारत दर्शन करूं और हर तरह के कल्चर को करीब से जान सकूं लेकिन वो अब कोविड -19 के रहते पता नहीं कब पूरा होगा।
विमेंस वेब में मैंने देखा है कि आप यहां एक फीचर राइटिंग के रूप में ह्यूमन रिलेशन्स को बहुत अच्छे से एक्सप्रेस कर सकते हैं। एक औरत के अपने भाई, पति, ननद, सास ससुर आदि के साथ रिश्ते कैसे होते हैं वो हम बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इनके रिश्तों की परतों के पीछे छुपे दर्द को हम समझ बेहतर तरिके से रख सकते हैं। ऐसे रिश्तों को बहुत ही कायदे के साथ इस प्लेटफॉर्म पर डिसकस किया जाता है।
मेरा मानना है कि शायद ये एक अकेला प्लेटफॉर्म है जो महिलाओं को लेकर सोशल, पोलिटिकल और कल्चरल तीनों के नज़रिये से बात रखता है। बस मैं यही कहना चाहता हूँ विमेंस वेब जैसे प्लेटफॉर्म पर अगर मेल पार्टिसिपेशन भी बढ़े तो हम बहुत हद तक जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को खत्म कर सकते हैं।
तो ये प्रशांत प्रत्युष से हमारी एक छोटी सी बातचीत जिन्हें लगता है कि बात बहुत हद तक रास्ते पर निकल चुकी है पर अभी उसका पोलिटिकल सलूशन रह गया है। अभी तक बस उसके हम भावनात्मक रूप से ही सलूशन ढूंढते हैं।
और हां मुझे लगता है की शायद हमें समाज में जेंडर इक्वलिटी के लिए ऐसे ही मेल फेमिनिस्ट की ज़ ज़रूरत है।
नोट : जुड़े रहिये हमारी टॉप ऑथर्स की इस खास सीरिज़ के साथ। हम जल्द ही सभी इंटरव्यू आपसे साझा करेंगे।
मूल चित्र : प्रशांत की एल्बम
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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