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बलात्कार के कानूनों को लिंग-तटस्थ बनाने के लिए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखा गया है, उस पत्र में यह लिखा है कि मर्दों का भी बलात्कार होता है!
हाल ही में रवीना राज कोहली (नागरिक), डॉ. प्रो. विक्रम सिंह (पूर्व डीजीपी यूपी पुलिस) और अशोक जीवी (अधिवक्ता) ने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने ने मंत्री जी से यह याचिका कि है हमें भारत में बलात्कार के अपराधिक कानूनों में संशोधन करने की ज़रूरत है। ताकि हम बिना कोई लिंग भेद के बलात्कार और यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की रक्षा कर सकें।
उदाहरण के रूप में उन्होंने तमिलनाडु के संथानकुलम में पुलिसकर्मियों द्वारा हाल ही में दो मर्दों पर किए गए शारीरिक उत्पीड़न का हवाला दिया है।
“हम भारत के ईमानदार नागरिकों का एक समूह हैं, जिन्होंने खुद को “NoRapeIndia” के नाम से संगठित किया है। यौन हिंसा को रोकने के लिए और उसके पीड़ितों के अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध स्वयंसेवकों के एक समूह के रूप में, हम आपको यह पत्र लिख रहे हैं। इस पत्र के ज़रिये हम आप से यह दरख्वास्त करते हैं कि बलात्कार के कानून में संशोधन के ज़रिये मर्दों के साथ होने वाले दुश्व्यहवार को भी समलित करना चाहिए। मर्दों के साथ होने वाले बलात्कार को भी क़ानूनी तोर पर वही दर्जा मिलना चाहिए जो औरतों के साथ हो रहे बलात्कार जैसे जुर्म को मिलता है।”
पत्र में IPC 1860, की धारा 375, धारा 354 ए, बी, सी और डी में संशोधन करने का आग्रह किया गया है। इसके तहत बलात्कार और यौन उत्पीड़न को एक लिंग-तठस्थ यानि के जेंडर न्यूट्रल अपराध बनाने की मांग की गई है। जेंडर न्यूट्रल या लिंग-तठस्थ अपराध वह होता है जिसमे लिंग के तहत भेदभाव नहीं किया जाता।
पत्र में यह कहा गया है कि बलात्कार के कृत्य को एक जेंडर अपराध बनाकर, हम पितृसत्तात्मक रूढ़ियों को प्रेरित कर रहे हैं। हम समाज को यह सन्देश दे रहे है कि यौन नुकसान के लिए अजेय हैं। जो एक या दूसरे तरीके से हमारे समाज में बलात्कार की संस्कृति को खत्म करता है।
कानूनी शब्दों में, IPC की धारा 375 बलात्कार को ‘एक महिला के साथ पुरुष द्वारा उसके कंसेंट या सहमति के बगैर किए गए यौन संबंध’ के रूप में परिभाषित करती है। आगे किए गए संशोधनों के द्वारा इस कानून में बदलाव करते हुए यह जोड़ा गया कि अगर औरत की सहमति उसे डराकर या उसके क़रीबों लोगो की ज़िन्दगी को दाव पर लगा कर ली गई हो तो उससे सही सहमति नहीं मन जाएगा और इस वजह से किए गए शारीरिक शोषण को भी बलात्कार ही कहा जाएगा।
18 साल से कम उम्र की महिला के साथ उसकी सहमति के साथ या बिना किए गए योन सम्बन्ध को भी बलात्कार ही माना जाता है।
हालांकि यह कानून महिला के साथ उसके पति के द्वारा किए गए जबरन सेक्स को बलात्कार नहीं मानता है। जब तक महिला की उम्र 15 साल से काम न हो।
अतः यह कहा जा सकता है की भारतीय कानून के हिसाब से बलात्कार एक ऐसा जुर्म है जो केवल एक पुरुष एक महिला के साथ कर सकता है। हालांकि, अगर महिला की शादी पुरुष से की जाती है, तो फिर उस महिला की सहमति के बगैर किए गए सेक्स को को बलात्कार नहीं माना जाता है।
भारतीय कानूनों के अनुसार, पुरुषों के साथ बलात्कार नहीं किया जा सकता है। वे केवल “sodomized/गुदा मैथुन हो सकता है, जो कि भारतीय दंड संहिता के अनुच्छेद 377 के तहत आता है। वही अधिनियम जिसने समलैंगिकता को भी अपराध बना दिया था जो अब 2018 के संशोधन की वजह से अब अपराध नहीं है।
IPC द्वारा बलात्कार की परिभाषा पुरुषों द्वारा किए गए अपराध तक सीमित होने के कारण, पुरुषों के साथ हो रहे बलात्कार की रिपोर्ट करना असंभव है। हमारे देश में एक आदमी के साथ कानूनी रूप से बलात्कार नहीं किया जा सकता है। यह भेदभाव इस धरना को जन्म देता है कि पुरुषों के लिए हर तरह का सेक्स ‘अच्छा’ होता है और पुरुषों के लिए सेक्स हमेशा एक आनंदजनक चीज़ होती है अतः पुरुषों के साथ बलात्कार नहीं किया जा सकता है।
यह मानसिकता भी हमारे समाज की पितृसत्तात्मक सोच का ही नतीजा है। हमें यह समझने की जरूरत है कि बलात्कार एक अपराध है जो शक्ति और प्रभुत्व की अवधारणा से संबंधित है। एक व्यक्ति जो महसूस करता है कि वे किसी से श्रेष्ठ हैं और दूसरे व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए शारीरिक उत्पीड़न कर सकता है वह उसके लिंग से परे हट कर बलात्कार करने के लिए अपराधी है।
इसलिए महिलाएं अगर वे पेशेवर, शारीरिक या भावनात्मक रूप से सत्ता की स्थिति में हों तो वह भी किसी पुरुष का यौन उत्पीड़न करने की क्षमता रखती हैं। जी हाँ, महिलाएं भी बलात्कार करती है !
यह विचार कि पुरुषों का बलात्कार नहीं होता, हमारे समाज में प्रचलित मर्दानगी की सोच से उपजा है। वह मानसिकता जो पुरुषों को अपनी भावनाओं को दिखाने से रोकती है और उनके प्रति किए गए किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न को उन्हें ‘आनंद’ के तौर पर लेने के लिए मजबूर करती है। अगर कोई मर्द अपनी भावनाए समाज के सामने व्यक्त कर देता है या फिर उसके साथ हुए शारीरक उत्पीड़न में समाज को बताता है तो उसे नामर्द कहा जाता है।
उन्हें ‘मर्दाना रूप से पर्याप्त’ नहीं माना जाता है। यही कारण है कि यौन शोषण का शिकार होने के बावजूद भी कई पुरुष शांत रहते हैं। समाज में पहली मर्दानगी की इस धारणा के वजह से पुरुषों को यह मानाने के लिए मजबूर किया जाता है कि पुरुष कमज़ोर नहीं होते सिर्फ महिलाऐं कमज़ोर होती हैं। हमारे समाज में इस सोच के कारण मर्दों को यह सिखाया जाता है कि एक पुरुष वे हैं जो अपनी शक्ति का उपयोग महिलाओं का शोषण करने के लिए करत सकता है।
कई रिपोर्टों ने सुझाव दिया है कि यह सोच कि मर्दों को अपनी भावनाए व्यक्त नहीं करनी चाहिए उन्हें को अपनी उदासी, भय और दर्द की भावनाओं को दिखाने से रोकती है। इसके करणवर्ष पुरुषों में क्रोध और हिंसा कि भावना जन्म लेती है। यह मानसिकता एक कारण है जिसके वजह से कई पुरुष महिलाओं और बच्चों पर हिंसा का प्रयोग करते हैं।
वास्तव में, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के एक अध्ययन के अनुसार, जो पुरुष अपनी कम उम्र में यौन उत्पीड़न का शिकार हुए होते है, उनके द्वारा उनके परिवार के सदस्यों और मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों पर हिंसा करने कि संभावना अधिक होती है।
फिल्म निर्माता इंसिया दरियावाला द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि पुरुष यौन शोषण का शिकार होते हैं। इंसिया दरियावाला ने अनसुलझे पुरुष आघात और बाद के जीवन में इसके प्रभावों की जांच करते हुए 160 भारतीय पुरुषों का एक ऑनलाइन सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण से पता चला है कि 160 मैं से 71% पुरुषों का बचपन यौन शोषण किया गया था।
2018 में इसके लिए केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने पहली बार बच्चों के ऊपर शारीरिक शोषण के कानून में बदलाव लाते हुए उसे जेंडर न्यूट्रल बना दिया।
एक तरफ यह सच है कि महिलाओं की तुलना में कहीं अधिक पुरुष यौन हिंसा के अपराधी हैं, और यह भी सच है कि यौन हिंसा का शिकार पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक होती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पुरुषों का बलात्कार बिल्कुल नहीं होता है।
अब समाज में फैली जागरुकता के कारण युवा मर्दों का बलात्कार होने के मामले सामने आ रहे हैं। इसीलिए बलात्कार कानून में संशोधन करना महत्वपूर्ण हो गया है। और इसके लिए औरतों को अपनी आवाज़ उठाना भी ज़रूरी है। आखिर अपराध को अपराध मानना और समानता सुनिश्चित करना ही नारीवादी होने का असल मतलब है।
यह संशोधन मर्दों का बलात्कार को एक ऐसी चीज बना देगा जो एक ‘निषेध’ के नहीं रहेगा। इसलिए यह एक सामाजिक बदलाव भी लाएगा, जहां यौन उत्पीड़न के शिकार लोगो को अपने लिंग के बावजूद, बिना दुसरो कि टिपणी की परवाह किए अपनी कहानी बयां करने का एक सजग माहौल बनाने में मददगार होगा हैं।
मूल चित्र : Canva
I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...
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