कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

नज़रें घुमाएं और पहचानें अपने आसपास भरे हुए नेपोटिज़म को

आज हर तरफ एक ही शोर मचा है, नेपोटिज़म। क्या कोई भी ऐसा  क्षेत्र है जहां ये ना होता हो? ज़रा नज़रें घुमाएं और पहचानें अपने आसपास भरे नेपोटिज़म को...

आज हर तरफ एक ही शोर मचा है, नेपोटिज़म। क्या कोई भी ऐसा  क्षेत्र है जहां ये ना होता हो? ज़रा नज़रें घुमाएं और पहचानें अपने आसपास भरे नेपोटिज़म को…

आज हर तरफ एक ही शोर मचा है, नेपोटिज़म। क्या कोई भी ऐसा  क्षेत्र है जहां ये ना होता हो?

नेपोटिज़म तो महाभारत काल से चला आ रहा है

नेपोटिज़म तो महाभारत काल से चला आ रहा है, जहां कर्ण को उसके योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि जन्म के आधार परिवार के आधार पर बाकियों से अलग किया गया था।राजा का बेटा ही राजा बनेगा सदियों से यही परम्परा चली आ रही थी।

नेपोटिज़म बोलो या वंशवाद या भ्रटाचार या भाई भतिज वाद सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं।

बचपन में जब स्कूल जाते है तब से नेपोटिज़म को झेलना शुरू करते हैं सब। कितने स्कूलों में टीचर के बच्चों को बाकी विद्यार्थियों से ज़्यादा अहमियत दी जाती है। नौकरी करने जाते हैं तो परिवारवालों ओर जान पहचान वालों को आज भी कई जगह प्राथमिकता दी जाती है।

क्या राजनीति में नेपोटिज़म नहीं है? क्या हम खुद उन्हें अपना कीमती वोट देकर नहीं जिताते? क्या वहां पर नए प्रतिभा को ठोकरें नहीं खानी पड़तीं? वहां भी उनका शोषण होता है।

क्या खेल जगत में परिवार वाद नहीं है? एक प्रख्यात खिलाड़ी के हुनर वाले बच्चे को जितना जल्दी ओर आसानी से मौका मिलता है क्या एक साधारण अंजान हुनर वाले चेहरे को वो मौका मिलता है? उन्हें तो कितनी ही इम्तिहान से गुजरना पड़ता है।

कहाँ नहीं है नेपोटिज़म?

इस का समाधान इतना सरल भी नहीं है। क्यूंकि जब तक मैं, मेरा परिवार, मेरा खानदान, मैं, मेरा जैसा स्वार्थ मन में भरा रहेगा तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है। हम में से ज़्यादातर लोग अपने आप से उपर उठ कर आस पास के समाज के लोगों के बारे में सोचते ही नहीं।

हम खुद को ही देख लें। अपने आस पास कितने होनहार बच्चे होंगे जिनमें हुनर तो है पर साधन नहीं हैं। क्या हम उन सब की मदद करते हैं? हम तो अपने बरसों पुरानी काम वाली को, जो एक तरह से परिवार का हिस्सा ही हो जाती है, उसे भी भोजन बच जाए तब देते हैं।

जब हर जगह ये दानव पांव पसारे हुए है तो फिर सिर्फ बॉलीवुड के नेपोटिज़म पर ही इतना शोर क्यों? क्या बाकि जगह ऊँगली उठाना थोड़ा मुश्किल और खतरनाक लगता है?

क्या सुधार की शुरुआत ज़ीरो से नहीं होनी चाहिए? क्या हमारी हर जगह को साफ सुथरा नहीं होना चाहिए? क्या हर जगह योग्यता के आधार पर आंकलन नहीं होना चाहिए? तो फिर बदलाव भी खुद से ही लाना होगा। खुद को ही पक्का करना होगा कि कभी भी कहीं पर भी जान पहचान के बल बूते पर किसी और का अधिकार नहीं छीनेगे।

क्या कर पाएंगे हम ऐसा?

मूल चित्र : Canva 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

10 Posts | 260,332 Views
All Categories