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सुबर्णा घोष ने Change.org पर एक ऑनलाइन याचिका शुरू की है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी से पुरुषों को घर का काम साझा करने के लिए कहने का आग्रह किया गया है।
भारतीय समाज में घर का काम करना महिलाओं की ज़िम्मेदारी है, बल्कि अगर हम अगर यह कहें कि हमारे यहाँ महिला उनको ही माना जाता है जो घर का काम करती हैं हमारे यहाँ लिंग निर्धारण किचन में काम करने की वजह से होता है। वो पुरुष जो घर के काम में हाथ बंटाते हैं उनको महिला कहने में हमारी सोसाइटी बिलकुल नहीं हिचकती।
अक्सर ऐसी बातों पे बहस होती रहती है और अब एक बार फिर यह मुद्दा प्रकाश में आया है। एक भारतीय महिला ने Change.org पर एक ऑनलाइन याचिका शुरू की है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भारतीय पुरुषों को महिलाओं के साथ समान रूप से घर का काम साझा करने के लिए कहने का आग्रह किया गया है। वर्तमान में, उनकी याचिका में 70,060 हस्ताक्षर हैं, और 75,000 तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
सुबर्णा घोष ने कहा, “अवैतनिक घरेलू कार्यों के असमान वितरण ने इस लॉकडाउन के दौरान पूरे भारत में महिलाओं को सबसे कठोर झटका दिया है। फिर भी, महिलाओं की देखभाल का कार्य अदृश्य बना हुआ है और कोई भी इस सकल असंतुलन को दूर नहीं करना चाहता है।”
मुंबई से सुब्रणा घोष, जो कि रीडआर फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन की सह-संस्थापक हैं, ने अपनी याचिका में लिखा है, “लॉकडाउन के तहत घरेलू मदद की अनुपस्थिति ने मौजूदा भेदभाव की भूमिकाओं को भी मजबूत किया है।” उनके पति, एक बैंकर हैं, और घर के कार्यों में मदद नहीं करते हैं।
घोष अपनी नौकरी के प्रबंधन के साथ-साथ घर के दोहरे बोझ के नीचे भी दबती जा रहीं थीं। घर पर अपना विरोध दर्ज करने के लिए, उन्होंने व्यंजन बनाने और कपड़े धोने बंद कर दिए। जब उनके पति और बच्चों को एहसास हुआ कि वह कितनी परेशान हैं फिर उन्होंने गंदगी को साफ कर दिया।
घोष ने कहा कि “व्यक्तिगत भी राजनीतिक है, और इसीलिए उन्होंने गृहकार्य के इस अनुचित बोझ के खिलाफ अपने बहिष्कार को बढ़ाने का फैसला किया। अगर मोदी जी हमें दीपक जलाने और एकजुटता में ताली बजाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, तो वह हमें एक अनुचित आदर्श जो हर घर में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है को सही करने के लिए प्रेरित भी कर सकते हैं।”
उनकी याचिका में यह भी लिखा है कि अप्रैल की शुरुआत में, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी लोगों से हड़ताल के दौरान घरेलू कामों में महिलाओं की मदद करने का आग्रह किया था। कई लोगों ने इस तथ्य की भी प्रशंसा की कि एक राजनीतिक व्यक्ति ने एक स्टैंड लिया।
भारतीय लड़की होने का मतलब ही यह है कि लड़की को घर का काम करना आना चाहिए। पित्रसत्तात्मकता हमारे सामज की जड़ों में है और आज भी हम उन रूढ़िवादी विचारों में जकड़े हुए हैं। पहले काम बंटे हुए थे महिला व पुरुषों के बीच क्यूंकि पहले महिलाएं बाहर नौकरी करने नहीं जाती थीं। अब इतना बदलाव आ गया है कि महिलाएं नौकरी करने लगी हैं लेकिन उसके साथ आज भी अकेली महिलाएं ही घर का काम करती हैं जिसकी वजह से उनका बोझ दोगुना हो चुका है।
इस लॉकडाउन में सभी ने बहुत सी चुनौतियाँ देखी हैं, महिलाओं के खिलाफ घरेलु हिंसा के केस भी बहुत बढ़ गए हैं और वहीँ ये घर के काम और ऑफिस के काम का दोगुना बोझ भी महिलाओं को झेलना पड रहा है रिपोर्ट्स के अनुसार यह भी पता चला है कि दोगुने काम की वजह से महिलाएं अपनी नींद भी नहीं पूरी कर पा रहीं हैं।
अब देखना यह होगा कि इस याचिका को कितनी गंभीरता से लिया जाता है और इसके ऊपर कोई एक्शन लिया जाता है या सिर्फ ठन्डे बस्ते में डाल दिया जाता है।
मूल चित्र : Screenshot Ki & Ka
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