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मैं भी हर लड़की के तरह माँ बनना चाहती हूँ, पर विवेक अपनी तो जिम्मेदारी उठा नहीं पाता। एक बच्चे की कैसे उठाएगा? आप ही बताइये...
मैं भी हर लड़की के तरह माँ बनना चाहती हूँ, पर विवेक अपनी तो जिम्मेदारी उठा नहीं पाता। एक बच्चे की कैसे उठाएगा? आप ही बताइये…
“मान जाओ ज़रा, रूक भी जाओ”, विवेक बोला।
“तेरी आँखों के सिवा दुनियां में रखा क्या है”, विवेक ने नंदिनी को बाहों में लेके गुनगुनाया।
“तुम्हारे प्यार के सिवा बहुत से काम है इस दुनिया मे”, नन्दनी ने भी गुनगुनाते हुये विवेक की बाहों से अपने को छुड़वाया और जाने लगी।
“मान जाओ जरा, रूक भी जाओ”, विवेक बोला।
तभी अचानक उसके चहेरे पे किसी ने पानी फेका, विवेक हड़बड़ा के उठ के बोला, “क्या कर रही हो नंदिनी कोई ऐसा उठाता है?”
“नंदिनी नहीं कांता आई”, कांता आई बोली।
“हम्म.. मान जाओ ज़रा, रुक भी जाओ, बस सपने में ही बोला जाता है तुमसे। जब जा रही थी घर छोड़ के तब न बोला गया तुमसे? और अब रोज़ ऐसे ही उठाना पड़ता है।”
“कौन कहता है उठाने के लिए मत उठाया करो . . .और हां मैंने नहीं कहा था आपकी नन्दनी को जाने के लिए, वो अपने मन से गई थी।” विवेक ने अपना मुँह पोंछते हुए बोला।
“न उठाऊं तो क्या करूं? दिन चढ़ गया और ये सो रहे हैं। माँ नहीं हूँ तुम्हारी, पर माँ जैसे पाल के बड़ा किया है। दिन में सोए और रात को नन्दनी के याद में पीते रहो। बस ये ही ज़िंदगी है तुम्हारी.. अपनी गोद मे खिलाया है तुमको इस हालत में देख दुखता है दिल”, कांता बोली।
“तो चली जाओ न। जैसे नंदिनी चली गई। वैसे भी वो ही तो तुम्हारी अपनी है, जो रोज़ शाम को तुमसे बात करती है”, विवेक बोला।
“हां फोन करती है, वो भी तुम्हारी खैरियत लेने के लिए। पता नहीं किसकी नज़र लग गयी दोनों के प्यार को…”
“दोनों एक दूसरे से प्यार भी करते हैं और साथ भी नहीं रहते..”, कांता आँखों में आंसू लेके चली गयी।
और शाम को…
“आई”, आप विवेक को समझाती क्यों नहीं? इतना पियेगे तो कैसा चेलेगा?” नन्दनी बोली।
“मुझ से नहीं देखा जाता बेटा.. इधर विवेक घुट घुट के जी रहा है उधर तुम। ऐसी जिंदगी का क्या फायदा बेटा? वो नहीं बुला रहा, तो तुम ही आ जाओ। ये घर तुम्हारा भी तो है। इतना प्यार है तुम दोनो में, फिर बस अहम छोड़ दो बेटा”, कांता बोली।
“अहम नहीं आई, ये आत्मसम्मान है, वो भी ये अपने लिए नहीं, विवेक के लिए कर रही हूँ।”
“आपको को तो पता है लव मैरिज की हमने। विवेक का कलाकार ही तो भा गया था मुझे। पर प्यार व कला से ज़िंदगी नहीं चलती आई..”
“मैंने विवेक को 4 साल दिए अपनी कला को एक नया आयाम देने के लिए। विवेक अपनी कला पे पूरा ध्यान लगा सके इसलिए मैंने गृहस्थी की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। मेरी गलती थी शायद ये। विवेक को जब और जितने पैसे की ज़रूरत होती, तब मैं देती थी, ये भी कभी नहीं पूछा, क्यों चाहिए।”
“फिर भी धीरे धीरे विवेक के स्वभाव में चिड़चिड़ा पन आने लगा.. बड़ी मुश्किल से एक जगह जॉब कह के लगाई पर 1 हफ्ते में ये छोड़ के आ गए कि ‘मुझसे बंध के काम नहीं हो सकता।'”
“आई मैं थक गई। मेरे अरमान क्या थे? बस नॉर्मल शादी शुदा ज़िंदगी जीने के? जिसका पति अपनी जिम्मेदारी समझे बस?”
“मैं भी हर लड़की के तरह माँ बनना चाहती हूँ, पर विवेक अपनी तो जिम्मेदारी उठा नहीं पाता। एक बच्चे की कैसे उठाएगा?”
“मुझे लगा था कि मैं विवेक से दूर जाऊंगी तो शायद वो संभल जाएगा। शायद जो मैं उसके पास रह के न कर सकी वो मेरी दूरी कर दे। लेकिन अब तो वो भी उम्मीद नहीं दिख रही”, इतना कह के नन्दनी ने फोन रख दिया।
उसके 4 महीने बाद…
नन्दनी के घर की डोर बेल बजी।
नंदिनी ने दरवाजा खोला तो विवेक था…
विवेक को देख एक मिनट चुप हो गयी जैसे उसकी अपनी आँखों पे विश्वास नही हुआ। विवेक ने नंदिनी को बाहों में कस के भर लिया और बोला, “मुझे माफ कर दो नंदिनी। मैंने तुम्हारे प्यार को तुम्हारा अहम समझा। मैंने अपने ‘नकारा का गुस्सा’ हर पल तुम पे उतारा।”
“इस बात का एहसास तब हुआ जब मैंने तुम्हारी बात फोन पे सुनी। उस समय आई ने फोन मुझे दे दिया था। मन तो किया उस समय ही तुम्हारे पास आके तुमको वापस हमारे घर ले चलूं।”
“पर मैं तुम्हारे पास तभी आना चाहता था जब मैं अपने को साबित कर दूं। वो विवेक बन के जिस विवेक पे नन्दनी को गर्व हो”, इतना कह के एक लिफाफा नंदिनी के हाथों में रख दिया।
“ये क्या है?” नंदिनी ने पूछा।
“एक कालेज में आर्ट के प्रोफेसर की जॉब है। शुरुवात में पैसे थोड़े कम मिलेंगे। पर इतने हैं कि तुम्हारे और भविष्य में हमारे बच्चे की जिम्मेदारी आराम से उठा सकूं”, विवेक बोला।
ये सुनकर नंदिनी ने खुशी से विवेक को गले से लगा लिया।
“तेरी आंखों के सिवा दुनिया मे रखा क्या है….” ये गाना गुनगुनाते हुए नंदिनी को और कस के अपने बाहों में जकड़ लिया। जैसे उसे अब अपने से दूर कभी नहीं जाने के लिए…
मूल चित्र : Canva
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