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हम खुद ही इन सवालों से परेशान हैं, घर में रंगाई-पुताई हो या नया फर्नीचर आ जाये, देख के लोग बोलते हैं, "बेटी की शादी की तैयारी चल रही है क्या?"
हम खुद ही इन सवालों से परेशान हैं, घर में रंगाई-पुताई हो या नया फर्नीचर आ जाये, देख के लोग बोलते हैं, “बेटी की शादी की तैयारी चल रही है क्या?”
हम खुद ही इन सवालों से परेशान हैं। बड़े हैं, उम्र बढ़ रही है, लिहाजा जो घर पे आता है पूछता है मेरी शादी कब हो रही है? घर में रंगाई-पुताई हो या नया फर्नीचर आ जाये, देख के लोग बोलते हैं, “बेटी की शादी की तैयारी चल रही है क्या?”
हम चाहते हैं प्रेम। जीवन में इससे अधिक न चाहिए। लेकिन किसी अजनबी से प्रेम हो जाना? इसकी क्या निश्चितता है? जब अब तक इतने बड़े जीवन मे प्रेम न हुआ तो एक दिन में हो जाएगा या शादी पश्चात हो ही जाए इसकी क्या गारंटी है? ऊपर से आज के अधिकतम लड़की-लड़के, तुनकमिजाजी। कब किस बात पर कैसे रियेक्ट कर जाए इसका भी कोई भरोसा नहीं है।
ज्यादा अभिलाषी नहीं रहे हैं। लेकिन ये वो चीज़ है जिसके लिए तड़प है अंदर, और इसलिए ये न मिल पाया तो क्या होगा इसका डर भी है। बाकी हम चीजों को समझा सकते हैं लोगों को, कोशिश कर सकते हैं…जो भी करते हैं।
मन में ये न रहे कि कोशिश न की। क्योंकि हर बार, हर बारे में जो चाहा उसका उल्टा होता आया है। पढ़ाई-कैरियर को ले कर रोना था पहले। वही सब हुआ जो नहीं चाहा। कहाँ से कहाँ आ गए, ये गैप इतना बड़ा है। ‘क्या चाहते थे?’ और ‘क्या मिला?’ ये दोनों एक दूसरे के आसपास भी नहीं हैं।
इसके आगे बढ़े तो क्या बचता है? अगला पड़ाव, विवाह! हर पड़ाव से संघर्ष देख कर इस पड़ाव तक पहुंचे लोगों की उम्मीदें अब समझ आने लगी हैं। कोटेशंस पढ़ने तक अच्छा लगता है कि ‘किसी से कोई एक्सपेक्टेशन नहीं रखनी चाहिए’, लेकिन ये लगभग असंभव है। अगर संभव है तो वहां स्वार्थ छोड़ कर कुछ न होगा जीवन में।
किसी एक लिए आप अपनी पूरी बनी-बनाई दुनिया त्यागेंगे, वहां भी अपनी पाक कला से ले कर हर कला सिद्ध करेंगे। आप अच्छे हैं, यह भी सिद्ध करेंगे। आप सबको अपनाएंगे, लेकिन एक छोटी सी त्रुटि होने पर दूसरे घर की कह दिये जायेंगे? आपको शायद ही कोई अपनाये। आपकी फिर से एक दुनिया शायद ही बन पाए। आप अपनी जिंदगी अब जियेंगे नहीं, जैसे-तैसे काटेंगे – उसमें भी कुछ लोग आपसे खुश नहीं रहेंगे। लेकिन आपको सब में रहते हुए सब करना होगा, बिना शिकायत किये!
क्यों? क्यों न हो उम्मीदें? क्यों नहीं अपनाये जाएंगे आप? इधर भी दूसरे घर की – उधर भी दूसरे घर की? क्यों करेंगे अपनी बनी-बनाई दुनिया का त्याग? क्यों करेंगे हर बात पर खुद को सिद्ध? विवाह को ले कर बढ़ती उम्र के साथ इन्सेक्युरिटीज़ भी बढ़ती जाती हैं।
जैसे बिहार विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए एक अनिश्चितता से गुजरे न…और उसका इलाज एक ही था, समय का बीतना। वैसे ही इसका भी वही इलाज है…समय अपने हिसाब से ही बीतेगा और चीजें उसके साथ ही साफ होंगी।
अनिश्चितता में जीना खराब होता है, लेकिन इसी में जीना है। यही जीवन है। या तो इस काल खंड में अपना प्रेम ढूंढ लो, जिसको अब सोलमेट कहते हैं लोग, या फिर खुद को हर उस चीज के लिए तैयार करो…जो-जो सवाल उठते रहते हैं मन में। क्योंकि बहुत हुआ अवसादग्रस्त जीवन…
अब उठना बहन तो यह सुनिश्चित कर के उठना कि फिर नहीं, ऐसा तैयार करो खुद को। बाकी बहिनें तो हैं ही आपस में विलाप करने को। जीवन जो दिखाए, देखना भी है ही। जो विकल्प है, यही दो हैं, क्योंकि, अपना प्रेम न ढूंढ पाए तो विवाह में बंधे बिना अकेले जीना भी एक परिकल्पना है।
हाँ होते हैं कुछ बिरले जो ऐसे भी जीते हैं। लेकिन शायद हमारे-तुम्हारे घर-समाज में इसके लिए स्वीकृति नहीं मिलेगी, नहीं तो हमारे पास तीन विकल्प होते। पर, फिलहाल दो ही हैं।
मूल चित्र : Canva
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