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चलो निकालें कुछ समय अपने लिए और सोचें क्या करना है आगे किस चीज़ से आपको ख़ुशी मिलती है, कोई नयी जॉब, बिसनस, टीचिंग, क्राफ्ट, या कुछ और...
चलो निकालें कुछ समय अपने लिए और सोचें क्या करना है आगे किस चीज़ से आपको ख़ुशी मिलती है, कोई नयी जॉब, बिसनस, टीचिंग, क्राफ्ट, या कुछ और…
आप जब सुबह उठती होंगी उस सुबह की रौशनी में ज़रूर सोचती होंगी की ‘मेरा आने वाला कल कैसा होगा’ तब एक ही आवाज़ गूंजती होगी, ‘कुछ नया नहीं, ठीक ही होगा हर दिन जैसा!’
और कई सालों से शायद ऐसा ही चला आ रहा होगा जिन बातों पर हमने कभी गौर ही नहीं किया। जब आप अपने दिन की शुरुवात करती होंगी। तो वो ही साधारण कपड़े पहने, वो ही ब्रेकफास्ट खाये, सालों पुराने रास्तों से उस जॉब के लिए निकलती होंगी, जिस काम से आप बोर हो चुकी हैं और जब कोई दोस्त आप से पूछ ले, ‘और बोलो क्या चल रहा है?’ और आपका एक ही जवाब होता है, ‘बस चल रहा है!’
हम सब कितनी आसानी से मान लेते है यही ही शायद मेरी ज़िन्दगी है। बड़े होते ही शायद लाइफ बोरिंग हो जाती है। पर हम जब ऐसे किसी को मिलते हैं जो थोड़ा मस्त-मौला हो तो सोचते हैं, ‘इसे तो कोई शर्म ही नहीं है। लगता है इनका बचपन गया ही नहीं।
हम अपने रिलेशनशिप, सेहत ,जॉब, थॉट्स या फिर हमारी हैबिट्स को सोसाइटी की देन समझ लेते हैं और हम इतना कम्फर्टेबल हो जाते हैं कि हमें यह सब सही लगने लगता है। हमे लगता है, ‘ज़िन्दगी सही तो चल रही है। और क्या चहिये?’ और जब कोई पूछ ले, ‘तुझे क्या हो गया है? तू खुश नहीं लग रही’, तो हम यहे बोल देते हैं कि ‘सब ठीक ही है, बस थोडा सा स्ट्रेस है।’
और एक ऐसा समय आता है जहाँ हमें लगता है कि ‘ये मैं क्या कर रही हूँ? मुझे कुछ नया करना है। मुझे अपने सालों के रिश्ते को एक और मौका देना है, मुझे आगे बढ़ना है।’ हम अगर अपने सपनों को उड़ान देना चाहते हैं तो हमें थोड़ी सी मेहनत, थोड़ा संघर्ष और थोड़ा सा समय देना पड़ेगा। चाहे वो फाइनेंस हो, हेल्थ हो, प्रमोशन हो या फिर रिलेशन।
ज़िन्दगी में कुछ ना करना एक आसान विकल्प है, बस ज़िन्दगी चल रही है, चलने दो क्या फर्क पड़ता है? लेकिन इसमें तनाव, निराशा और एक अधूरेपन का एहसास होता है। एक सोच अटक जाती है मन में कि क्या मैं आगे कुछ अपना कर सकती हूँ? कुछ नया सीख सकती हूँ? क्या मैं किसी से अपने मन की बात कर सकती हूँ? क्या मैं खुल के मुस्कुरा सकती हूँ?
नयी उड़ान में थोड़ी मेहनत है, थोड़ा त्याग, थोड़ा अकेलापन होता है, फिर जब आप लक्ष्य के करीब पहुंचने लगते हैं तो आपको उस सपने के सच होने का एहसास होने लगता है जो आपको आत्मविश्वास से भर देता है जो आप को किसी भी उचाँई तक जाने की हिम्मत देता है।
एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे पूछा कि माँ आप ऐसे क्यों बैठे हो? क्या कर रहे हो? तब मुझे उस के मासूम से प्रश्न ने असमंजस में डाल दिया कि आखिर मैं क्या कर रही हूँ? तब लगा मेरी ज़िन्दगी में एक लक्ष्य की ज़रूरत है। तब मुझे मेरे पापा की बताई बात याद आयी कि एक काजग पर जो तुम्हें पाना है वो लिखो, और जो लगता है कि तुम हासिल कर सकती हो उसको छोड़ कर, बाकी काट दो।
मैंने अपने पुराने कबाड़ से मैंने एक किताब निकाली और लिखने लगी कि मुझे ज़िन्दगी में क्या-क्या करना है? फिर घंटों की मेहनत से मुझे 20 लक्ष्यों में से 1 लक्ष्य मिला। जब मैं पॉइंट्स लिख रही थी तो हज़ार चीज़े मेरे दिमाग में चलने लगीं, मुझे यही भी करना है वो भी, पर जब मैं एक एक पॉइंट्स काटने लगी तो कुछ इसलिए काट दिए कि अभी बच्चे हैं, कुछ टाइम नहीं, कुछ ज़रूरी नहीं, कुछ पता नहीं यह मैं करना भी चाहती हूँ कि नहीं। इन में मुझे एक लक्ष्य मिल ही गया जो मैं पूरा कर सकूँ।
जब हम सोचते हैं कि हमने इस उम्र में आते-आते बहुत कुछ हासिल कर लिया जैसे घर, गाड़ी, शादी, बच्चे, दोस्त। अब बस आराम से ज़िंदगी काट लेंगे, तो हमें कुछ सालों के बाद एक खालीपन का एहसास होता है जिसे हम छुपाने की कोशिश करते हैं। जो बाद में स्ट्रेस या डिप्रेशन की शकल लेती है, और हम फिर कई बार हम उन लोगों को दोषी समझने लगते हैं, जो हमारे करीब होते हैं।
इसका मतलब है आपकी ज़िन्दगी की गाड़ी आप नहीं कोई और चला रहा है और आपका कोई लक्ष्य नहीं है जो आपको उसी जगह ले आती है, ‘ठीक है, जो है ठीक है’ जहाँ आप जाना नहीं चाहती थीं। आगे बढ़ने के लिए बस हमें थोड़ी सी हिम्मत और सबके साथ की ज़रूरत है। जितना ज़रूरी आपकी आकांक्षाएं हैं, उतना ही ज़रूरी आपके फैमिली का साथ भी है, अगर सब साथ चलें तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।
चलो उठो छोड़ो यह बेकार की उलझन, टीवी में चलता रोता हुया ड्रामा, मेरा क्या होगा वाली घबराहट और किताबें पढ़ो, लोगों से मिलो, आत्मनिर्भर बन आगे बढ़ने की कोशिश करें।
चलो खोलो अपनी अलमारी और निकाल फैंको वो चीज़ें जो आपको बोरिंग लगती है। छोड़ो वो आदतें जिनसे आपको निराशा होती है।
चलो निकालें कुछ समय अपने लिए और सोचें क्या करना है आगे किस चीज़ से आपको ख़ुशी मिलती है। कोई नयी जॉब, बिसनस, टीचिंग, क्राफ्ट, या कुछ और… कुछ भी। बदलो दीवारों के रंग, ढूंढो नए रास्ते।
चलो बैठो उनके साथ जो आपको प्रोत्साहित करते हैं, कुछ नया बनाओ, कुछ नए पंखों को उड़ान दो। अपने सपनों को एक नयी पहचान दो, अपने सपनों के साथ उड़ो, उस खुले आसमान में जो बाहँ फैलाये तुम्हारा इंतज़ार कर रही है। पर याद रखना इस उड़ान में अपनो को मत भूलना।
किसी ने बहुत खूब लिखा है:
ज्ञान जो चाहे सरस्वती तुम, मान जो चाहे लक्ष्मी हो तुम
अपराधों का साया छाये धरती पर, तो काली-दुर्गा का रूप हो तुम
ओ नारी! कैसे कह दूं, तुम कुछ नहीं हो।
खुशियों का संसार तुम्हीं से, जीने के आधार तुम्हीं से
बंद होते और खुलते भी हैं, दुनिया के दरबार तुम्हीं से
ओ नारी ! कैसे कह दूं, तुम कुछ नहीं हो।
मूल चित्र : Pexels
I am mother of 2 sons ... life was running around kids ,pati and office ... now lock down has made new welcoming change happen learning new hobbies too soon to reveal read more...
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