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मीरा नायर ने A Suitable Boy में उस दौर के युवा पीढ़ी के अंदर हो रहे उठा-पठक और भावनाओं को बारीक तरीके से पिरोने की कामयाब कोशिश की है।
कोरोना महामारी के दौर में जब सारे सिनेमाघर और थियेटर बंद है। ओटीटी प्लेटफार्म ही फिल्मों और वेब सीरीज पर रिलीज हो रहे है जो लोगों को घरों पर ही मनोरंजन कर रहे है। जुलाई के सप्ताह में अचानक से ही हर ओटीटी प्लेटफार्म पर कई फिल्में और वेबसीरीज आई। जिसमें बीबीसी पर भी एक वेब सीरीज के कुल छह एपीसोड के चार एपीसोड एक-एक करके बीबीसी वन टीवी चैनल पर रिलीज हुए, विक्रम सेठ के फेमस उपन्यास पर आधारित मीरा नायर की ड्रामा सीरिज A Suitable Boy /अ सूटेबल बॉय
आजादी के समय के उत्तर भारत के चार परिवारों के जरिये उस दौर के सामाजिक-राजनीतिक कसावट में उस दौर के युवा पीढियों की कहानी जो नए आजाद भारत में सामाजिक चौहद्दीयों के उस दीवार को लांघकर नई आजादी को महसूस करना चाहते थे। वे अपनी आजादी के अहसास में एक नए भारत की तस्वीर देखना चाहते थे। इन सारी कोशिशों में एक नौजवान मान कपूर(ईशान खट्टर) का अपने से बड़ी तवायफ़ साद बाई (तब्बू) से प्रेम और लता मेहरा(तान्या मनिकतला) का प्रेम।
मान कपूर अपने प्रेम के लिए सामाजिक बंदिशों और पारिवारिक मर्यादाओं को ताक पर रख देता है पर लता यह नहीं कर पाती। यह सीधे तौर पर साबित कर देता है कि उस दौर के आजाद भारत में आजादी तो जरूर मिली पर उसको हासिल करने के रास्ते समाज में युवा लड़के/लड़कियों के लिए अलग-अलग तरह के थे। तभी तो मान कपूर को उर्दू सीखाने वाला उसका दोस्त जिनकी शादी बड़े भाई के बेगम से ही कर दी गई है प्रेम को एहसास कम जिम्मेदारी अधिक मानता है।
मीरा नायर की A Suitable Boy कहानी के केंद्र में मेहरा परिवार है जिसमें रूपा मेहरा(माहिरा कक्कर) अपने बेटी लता मेहरा के लिए योग्य लड़के की तलाश कर रही है। लता यूर्निवर्सिटी में अग्रेंजी साहित्य पढ़ती है और आजाद ख्याल है। पर उसकी आजाद ख्याली सामाजिक चौहद्दीयों का भी ख्याल रखती है जबकि वह उसको तोड़ना भी चाहती है।
महेश कपूर(राम कपूर) जो राजनीतिज्ञ है जंमीदारी प्रथा को समाप्त कराना चाहते है पर सामाजिक चौहद्दीयों के गुलाम है इसलिए अपने बेटे मान कपूर के सीदा बाई वेश्या के संबंध को पसंद नहीं करते हैं।
लता मेहरा को और उसकी मां रूपा मेहरा को Suitable Boy मिल पाता है या नहीं और महेश कपूर अपने बेटे को उस दौर के सामाजिक-राजनीतिक बनावट-बसावट में Suitable Boy बना पाते हैं या नहीं इसको विक्रम सेठ के उपन्यास को A Suitable Boy पढ़ कर जाना जा सकता है। पर अगर उस समय के एहसास को संजीव चित्रों और दृश्यों के माध्यम से महसूस करना है तो रिलीज हुए चार एपिसोड देखना चाहिए और बाकी दो एपिसोड का इतंजार करना होगा।
इस सीरिज के एपिसोडों को जरा बारिकी से देखें तो हर मुख्य किरदार अपने आस-पास हर कुछ परफेक्ट पाने की भेड़-चाल में शामिल दिखता है। समाज में कोई भी चीज़ या कोई भी यथास्थिति कभी परफेक्ट नहीं होती है। उसको परफैक्ट बनाने की एक प्रक्रिया होती है जैसे कुदन का आग में तपकर निखरना होता है तभी वह सोना बन पाती है।
समाज को Suitable Boy मिले इसके लिए समाज को भी उस प्रक्रिया से गुजरना होना अपनी आलोचनाओं से उसे खुद को तराशना होगा। वह कैसे होगा, इसका जवाब न ही उपन्यास में है न ही अब तक के देखे सीरीज। गोया मीरा नायर अपनी कहानी को उपदेशात्मक बनाना नहीं चाहती हो। जो चीज जिस तरह से है वैसे ही रख देना चाहती हों।
इतना तो कहा ही जा सकता है कि आजादी के दौर के भारत में पितृसत्तात्मक समाज में जमींदारी, उच्चवर्गीय परिवार की मर्यादा और शानशौकत, निचले तबके के लोगों के रहन-सहन और समाज की अभिन्न अंग माने जाने वाली वेश्याओं के साथ मर्दों के संबंध को दिखाने में मीरा नायर A Suitable Boy में दिखाने में पूरी तरह से कामयाब रही हैं। विशेष तौर पर उस दौर के युवा पीढ़ी के अंदर हो रहे उठा-पठक और भावनाओं को बारीक तरीके से पिरोने की कोशिश की है।
हर एक किरदार जहां अपने संबंधों के धागों को लेकर संवेदनशील है, वह समाज में हो रहे हिंदू-मुस्लिम तनाव को लेकर भी उतना ही भावुक और परेशान दिख रहा है। मीरा नायर ने उस दौर के कस्बों, शहरों और महानगरों में हो रहे मानवीय संबंधों के बदलाव के साथ-साथ शहर के बदलाव को भी बारीक तरीके से समझते हुए दिखाने की कोशिश की है।
उड़ीसा में पैदा हुई दिल्ली में पली-बढ़ी और अमेरिका के शहर न्यूयार्क में रहने वाली मीरा नायर ने विक्रम सेठ के उपन्यास के कहानी को सही रूपक देखने में कामयाब रही हैं, जिसको इस सीरिज में काम करने वाले कलाकारों ने अपने अभिनय से संजीव कर दिया है।
जिन लोगों ने विक्रम सेठ की A Suitable Boy पढ़ी है उनको तो यह सीरिज जरूर देखनी चाहिए, जिन्होने नहीं पढ़ी है उनको भी देखनी चाहिए क्योंकि उनका यह समझना जरूरी है कि हम आज जहां तक भी पहुंच सके हैं, उसके लिए एक पीढ़ी ने जद्दोजेहद में ही गुजार दी है। उनमें से कुछ लोगों ने समाज की चौधराहट की सारी दीवारें गिरा दीं और कुछ चौधराहट तले फैली लिजलीज करती भावनाओं में दबे रह गए।
मूल चित्र : यूट्यूब से फिल्म का स्क्रीनशॉट
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