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अब आवाज़ करो बुलंद क्यूंकि अकेली नहीं हो तुम…

एक बार तुम बुलंद तो करो अपने हक़-अधिकार और मान-सम्मान के खातिर अपनी आवाज...क्यूंकि अब अकेली नहीं हो तुम...अब अकेली नहीं हो तुम!

एक बार तुम बुलंद तो करो अपने हक़-अधिकार और मान-सम्मान के खातिर अपनी आवाज…क्यूंकि अब अकेली नहीं हो तुम…अब अकेली नहीं हो तुम!

उठो महिलाओं
जागो अपने हक-अधिकारों के प्रति
अब वक्त है पुरुषों के साथ
कंधे से कंधा मिलाकर चलने का…!

कब तक शर्मों-हया के
लिबास में बंधी रहोगी
अपने हक-अधिकार के लिए
उतर आओ सड़कों पर…!

अकेली नहीं हो तुम
देखो संग हैं तुम्हारे
एक नहीं हजार नहीं
लाखों लाख हाथ…!

एक बार तुम बुलंद तो करो
अपने हक़-अधिकार
और मान-सम्मान के खातिर
अपनी आवाज…!

मूल चित्र : Canva Pro 

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