कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

सुप्रीम कोर्ट : बेटियों का अब होगा पैतृक संपत्ति पर समान हक़

कोर्ट ने कहा कि चाहे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के लागू होने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गई हो, तो भी उनकी बेटियों का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा।

कोर्ट ने कहा कि चाहे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के लागू होने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गई हो, तो भी उनकी बेटियों का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम (हिंदू सक्सेशन ऐक्ट) 2005, पर सुनवाई करी और सभी याचिकाएं को मध्य नज़र रखते हुए एक अहम फैसला सुनाया।  

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि संशोधित हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक बेटी संपत्ति की बराबर की हकदार  है। कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के लागू होने से पहले ही पिता की मृत्यु हो गई हो, तो भी उनकी बेटियों का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा और अगर बेटी का जन्म 2005 से पहले हो चुका हो, तो भी उसका संपत्ति में बराबर का हक़ होगा।

— ANI (@ANI) August 11, 2020

जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने फैसले में कहा, “बेटियां हमेशा प्यारी बेटियां रहती हैं, बेटे बस विवाह तक बेटे रहते हैं। बेटियां पूरी ज़िंदगी माता पिता को प्यार देती हैं। विवाह के बाद बेटों के नियत और व्यवहार बदल जाते हैं। मगर बेटियों का व्यवहार विवाह के बाद भी नहीं बदलता है।”

दरअसल साल 2005 में इस कानून में संशोधन कर पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर का हिस्सा देने का अधिकार दिया गया था। लेकिन इसे लेकर एक विवाद यह था कि यदि पिता की मृत्यु 2005 के पहले हो गई तो क्या ये कानून बेटियों पर लागू होगा या नहीं। इस संबंध में कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिस पर जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई में ये फैसला सुनाया गया है। 

कोर्ट ने पूरा फैसला पढ़ते हुए कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 6 में वर्णित प्रावधान संशोधन से पहले या उसकी बाद जन्मी बेटियों को बेटों के हमवारिस का दर्जा होता है। उनके हक़ और दायित्व बेटों के बराबर हैं। संशोधन से पहली जन्मी बेटियां भी सम्पति पर दावा कर सकती है। हालांकि, यह 20 दिसंबर, 2004 तक हो चुके संपत्ति के बँटवारे या वसीयतनामा निपटारे को अमान्य नहीं करेगा। हमवारिस होना बेटियों का जन्मसिद्ध अधिकार है। ये जरूरी नहीं कि 9 सितम्बर, 2005 को उसके पिता जिंदा हो।  

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005

आमतौर पर हमारे समाज में बेटे को ही पिता का उत्तराधिकारी माना जाता है लेकिन साल 2005 के संशोधन के बाद क़ानून ये कहता है कि बेटा और बेटी को संपत्ति में बराबरी का हक़ है। साल 2005 से पहले की स्थिति अलग थी और हिंदू परिवारों में बेटे को ही सारे हक़ प्राप्त थे और पैतृक संपत्ति के मामले में बेटी को बेटे जैसा दर्जा हासिल नहीं था। यह कानून सभी हिंदू महिलाओं पर लागू होता है, चाहे वो कभी भी जन्मी हो या उनके पिता या परिवार के मुखिया की कभी भी मृत्यु हो गयी हों।

कानून में यह ऐतिहासिक संशोधन वक़्त की ज़रूरत है

समाज में जिस तरीके से एक महिला से बर्ताव करा जाता है, उससे कोई भी अनजान नहीं है। उसे माता पिता के घर में कहा जाता है की तुम परायी हो, ससुराल ही तुम्हारा असली घर है और वहीं दूसरी और ससुराल में कहा जाता है की तुम तो दूसरे घर से आयी हो। और इन सबके चलते कभी औरत अपना हक़ ही नहीं मांग पाती थी। लेकिन इस कानून में हुए संशोधन 2005 ने महिलाओं के समानता की और एक ऐतिहासिक कदम उठाया जो समय की जरूरत थी। अब औरत को किसी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है बस उन्हें अपने अधिकार के बारे में जागरूक होना चाहिए। तो आप इस कानून के बारे में जाने और सभी महिलाओं तक इसकी जारूकता फैलाएं।

मूल चित्र : a still from the movie Thappad

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

136 Posts | 565,293 Views
All Categories