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डिज़ाइनर अनाविला मिश्रा की जितनी ख़ूबसूरत हैं साड़ियां, उतनी ही ख़ूबसूरत है सोच!

अनाविला मिश्रा आज भारत की टॉप डिज़ाइनर्स में से एक हैं और इन्होंने ही सबसे पहले लिनन साड़ी का कांसेप्ट शुरू किया था, जिसे आज हर सेलिब्रिटी पहनना चाहती है। 

अनाविला मिश्रा आज भारत की टॉप डिज़ाइनर्स में से एक हैं और इन्होंने ही सबसे पहले लिनन साड़ी का कांसेप्ट शुरू किया था, जिसे आज हर सेलिब्रिटी पहनना चाहती है। 

इन्होंने NIFT (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फैशन टेक्नोलॉजी ) से साल 2000 में निटवेयर डिज़ाइन में अपनी ग्रेजुएशन पूरी करी और उसके बाद अपना पहला जॉब कॉर्पोरेट सेक्टर में किया। उसके बाद 2004 में इन्होंने रूरल डेवलपमेंट मिनिस्ट्री के क्राफ्ट क्लस्टर डवलपमेंट प्रोजेक्ट में काम किया। उसके बाद उन्होंने कुछ समय का ब्रेक लिया और 2012 में अपने ब्रांड अनाविला के साथ वापस से मार्केट में आयी।

अपनी मेहनत और हमेशा कुछ नया करने की चाह से ही आज ये टॉप डिज़ाइनर्स में से एक बन गयी हैं। इनकी लिनन साड़ियां अक्सर आप बॉलीवुड सेलेब्रिटीज़ जैसे दिया मिर्ज़ा, नंदिता दास, करिश्मा कपूर, सोनम कपूर आदि को पहने देखें होंगे।

जी हां, हम बात कर रहें हैं अनाविला मिश्रा की। 

अनाविला मिश्रा ने ही इंडिया में सबसे पहले लिनन साड़ी का कांसेप्ट शुरू किया था और आज इनकी लिनन साड़ियां हर कोई पहनना चाहता है। और सबसे खास बात है कि ये सस्टनेबल फैशन के कांसेप्ट पर काम कर रहीं हैं। ये बिहार, झारखंड और वेस्ट बंगाल के बुनकरों के साथ मिलकर हैंडलूम साड़ियाँ बनाती हैं। 

लेकिन इतनी सक्सेस के पीछे कितने सालों की मेहनत है, कितने उतार चढ़ाव देखें हैं, इसके बारे में कोई नहीं जानता। सब बस सक्सेस के पीछे भागना चाहते हैं। तो अनविला मिश्रा के साथ ऐसे ही कुछ चर्चा करने का हमें मौका मिला। जिसके ज़रिये हमने इनके कई एक्सपीरियंस जाने। इसमें इन्होंने अपनी जर्नी से लेकर आपकी जर्नी को खूबसूरत बनाने के लिए कुछ टिप्स भी साझा किये हैं। 

अनाविला मिश्रा से हुई ख़ूबसूरत सी बातचीत के कुछ पहलू आप से साझा कर रहे हैं :

अपनी जर्नी के बारे में विमेंस वेब को कुछ बताइये

मैंने शुरुवात कॉर्पोरेट सेक्टर से करी और 4 साल तक मैंने बेंगलुरु और दिल्ली में जॉब करी। उसके बाद एक मैंने निफ्ट के साथ मिनिस्ट्री का एक प्रोजेक्ट किया। और प्रेग्नेंसी के बाद 5 साल का ब्रेक लिया। फिर कुछ नया करने के चाह में 2012 में मैंने अपना ब्रांड शुरू करा। इन 9 सालों में मैंने अपने ब्रांड की एक पहचान बना ली है, और उसके साथ मेरी भी एक पहचान हो गयी है। तो बस मैं यही कहूंगी मेरी जर्नी अच्छी रही है।  

आप लिनन साड़ियों के लिए जानी जाती हैं, तो लिनन फैब्रिक चुनने के पीछे कोई खास वजह? 

इंडिया के मौसम के अनुसार देखें तो लिनन और कॉटन ज़्यादा कम्फ़र्टेबल है। सिल्क को हम थोड़ी देर पहन सकते हैं लेकिन पूरे दिन के कम्फर्ट के लिए लिनन और कॉटन ही ज्यादा सही रहते हैं। तो लिनन को चुनने के पीछे पहला कारण तो इंडिया का क्लाइमेट है। और लिनन की एक खास बात है की आप उसे जितना इस्तेमाल करेंगी वो उतना ही सुंदर होता जाता है। और मैं कुछ नया करना चाहती थी। तो उसके लिए जो मार्केट में नहीं था मैंने उस पर एक्सपेरिमेंट करने का सोचा। इन्हीं सब कारणों की वजह से मैंने लिनन के साथ काम करना शुरू किया। 

शुरुवाती दौर में आपने किस तरह की मुश्किलों का सामना किया? 

सबसे पहला चैलेंज था वीवर्स (बुनकर) ढूंढना क्योंकि उस समय ये कोई नहीं बनाता था और लिनन के साथ काम करना थोड़ा मुश्किल होता है। उसके बाद दूसरा बड़ा चैलेंज था मार्केट। इसके बारे में लोगो को कुछ पता ही नहीं था। तो शुरुवाती 1 – 2 साल थोड़े मुश्किल रहें। फिर जो लोग मुझे और लिनन के बारे में थोड़ा जानते थे उन्होंने इसे ट्राई करना शुरू किया और धीरे-धीरे कस्टमर्स जुड़ते गए और फिर थोड़ी मुश्किलें आसान हुई।  

बॉलीवुड से कॉलैबरेशन के बारे में हमें भी कुछ बताइये 

पहले लोगों की ये मानसिकता थी कि हैंडलूम पहनेंगे तो थोड़ा ट्रेडिशनल लुक होगा या लोग इसे फेस्टिवल्स में पहनना करते थे। लेकिन हमने हमारी हैंडलूम साड़ियों में बहुत बदलाव करे। हमने सिंपल और मॉडर्न डिज़ाइन के साथ साड़ियां बनाई। फिर उनसे एक्टर्स अट्रैक्ट हुए। उन्हें डिज़ाइन पसंद आये और उन्होंने कई इवेंट्स में इन साड़ियों को पहना।

हमारी साड़ियां कई फिल्मों में भी पहनी गयी हैं। और उन्हें देखकर आम लोगों ने भी इन्हें अपनाना शुरू किया। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है कि ये हैंडलूम की साड़ियां थी तो उन्होंने पहनी। उसके लिए हमें डिज़ाइन पर बहुत काम करना पड़ता है। आजकल की पसंद के अनुसार हम हैंडलूम साड़ियों को मॉडर्न लुक देते हैं और उसके बाद सबको हमारा काम पसंद आता है, और वो इसे पहनना भी पसंद करते हैं।   

आपके डिज़ाइन बाकी डिज़ाइनर्स के मुक़ाबले में बहुत सिंपल होते हैं, तो इस पर क्लाइंट्स का क्या रिएक्शन होता है?   

जिस तरह से सभी डिज़ाइनर्स के डिज़ाइन का अलग अलग टेस्ट है, उसी तरह से कस्टमर्स के भी अलग अलग टेस्ट हैं। सबकी अपनी पसंद है। इंडिया में वैसे ही ब्राइट कलर्स का ज्यादा चलन है तो कई ऐसे लोग हैं जिन्हें वही पसंद हैं। लेकिन कई ऐसे भी लोग भी जिनकी पसंद हमसे मिलती है। तो जिन्हें हमारे डिज़ाइन पसंद हैं, वो हमारे पास आते हैं। और मार्केट इतना बड़ा है कि इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता है और हमें ये भी मान कर चलना होगा कि हम सबके लिए सब कुछ तो नहीं बना सकते हैं। 

क्या इंडिया सस्टेनेबल फैशन अपना रहा है?

सस्टेनेबल फैशन की अगर बात करें तो इंडिया में ही इस तरह का ज़्यादा चलन है। बाहर के देशों में अगर हम देखें तो वो टेक्नोलॉजी को ज़्यादा इस्तेमाल कर रहें हैं, जैसे अगर वो प्लास्टिक या कॉटन को रीयूज़ करते हैं, तो वो 2nd और 3rd स्टेप में जाकर सस्टनेबीलिटी की बात करते हैं। क्योंकि न वो इस तरह के रॉ मैटेरियल्स उगा रहे हैं और न उनके पास कारीगर हैं। तो मैं कहूंगी कि सस्टेनेबल फैशन पूरी तरह से इंडिया में ही है। 

हैंडलूम की कॉस्ट की वजह से ज्यादा लोग इसे अपना नहीं पा रहें हैं, क्या ये सही है? 

हैंडलूम के महंगे होने के कारण तो साफ़ है। जाहिर सी बात है अगर हमारी एक साड़ी को बनने में 2 महीने का वक़्त लग रहा है और अगर वही साड़ी मशीन से 2 दिन में बन जाती है तो लेबर कॉस्ट भी कम होगी। अभी हम वेस्ट बंगाल में जामदानी साड़ी बना रहे हैं, जिसका 5 सेंटीमीटर बुनने में ही पूरा एक दिन लग जाता है, क्योंकि वो पूरा जाल है। तो अब उसकी कॉस्ट हम कैसे कम कर सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी हैंडलूम महंगे होते हैं। ये डिपेंड करता है कि हम क्या डिज़ाइन बना रहें हैं, उसमें कितनी मेहनत लग रही है और उसमें किस तरह का रॉ मटेरियल यूज़ हो रहा है। कई साड़ियां आपको 4 हज़ार में मिलेंगी तो कई 4 लाख में भी मिलेंगी। तो यह कहना गलत है कि हैंडलूम हमेशा महंगा ही होता है। 

कारीगर महिलाओं के साथ अनाविला मिश्रा का एक्सपीरियंस कैसा रहा?

हमारे वीवर्स ज़्यादातर वेस्ट बंगाल के हैं और झारखण्ड की लड़कियों के साथ हम पैच वर्क का काम करते हैं। आना-जाना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन हम उन लोगों को कुछ दिनों के लिए दिल्ली या मुंबई बुला लेते हैं और उन्हें हमारे पास आकर काम करना बहुत अच्छा लगता है। और इसी समय हम अपने एक साल या एक सीजन के डिज़ाइन डवलपमेंट कर लेते हैं और फाइनल होने के बाद, एक सैंपल सेट हम रखते हैं और एक उनके पास होता है। उसके बाद वो अपने घर से हमें डिज़ाइन तैयार करके भेज देते हैं। घर से रहकर काम करते हुए वो खेती में भी चली जाती हैं और बच्चों का भी ख्याल रख लेती हैं। वाकई ये महिलाएं बहुत ही टैलेंटेड हैं। 

यंग डिज़ाइनर्स के लिए सस्टेनेबल फैशन को अपनाते हुए क्या पहचान बनाना मुश्किल है?

जब मैं आज के 20 साल पहले पास आउट हुई थी तब ऐसा था कि हमें बेस्ट ब्रांड के साथ काम करना है। आज की तरह वीवर्स के साथ काम करने का उस वक़्त प्रचलन नहीं था। बहुत कम लोग इस तरह का काम कर रहें थे। लेकिन पिछले 10 सालों में बहुत चेंजेज़ आये हैं। हमारे ब्रांड और ऐसे कई ब्रांड्स ने इस में बहुत अच्छा काम किया है। तो अब यंग डिज़ाइनर्स के लिए ये सारी चीज़ें बहुत आसान हो गयीं हैं। अब उनके सामने कई सक्सेस स्टोरीज़ हैं। हमारे समय में ये सब नहीं था। अब यंग डिज़ाइनर्स नए-नए एक्सपेरिमेंट करके खुद के ब्रांड बना सकते हैं। लेकिन मैं ये भी कहूंगी कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि अगर किसी पर्टिकुलर ब्रांड ने साड़ी बनाई और मार्केट में बहुत चल गयी तो आप भी वही बनाना शुरू कर दें। आपको खुद की एक अलग पहचान बनाने के लिए कुछ नया सोचना पड़ेगा। 

अनाविला मिश्रा फैशन इंडस्ट्री में आने वाले युथ को क्या करियर टिप्स देना चाहेंगी?

सबसे पहले मैं ये कहूंगी कि आपके अंदर क्लैरिटी का होना बहुत ज़रूरी है कि आपको क्या करना है। और हां, ऐसा कई बार नहीं भी होती है। मुझे भी नहीं पता था।  मैंने भी कई जगह काम किया लेकिन ये शुरू में समझ नहीं आया। मैं वहां अपनी आइडेंटिटी नहीं दे पायी। तो मैंने यही सोचा कि ‘कुछ नया करना होगा’। मुझे खुद की आइडेंटिटी बनानी थी। और उसी के बाद मैंने लिनन के साथ काम करना शुरू किया। तो कई बार आप भी फ़ेल होंगे, लेकिन उसके बाद हमें फिर से नए सिरे से सोचना होगा। तो अपना खुद का कुछ नया करें। जो मार्केट में पहले से मौज़ूद है उसी पर काम नहीं करे क्योंकि वो शुरू में तो अच्छा लगेगा लेकिन लम्बे समय तक नहीं चल पायेगा। 

तो पहले आप पहचानें कि आपको क्या करना अच्छा लगता है। फिर उसमें अपनी एक नई पहचान बनाएं और फिर कभी भी फेलियर से भागे नहीं। उसमें पूरे डेडिकेशन से जुड़े रहें। आजकल के बच्चों में पेशेंस बहुत कम है। एक ब्रांड को खड़ा करने में बहुत वक़्त लग जाता है। आपको बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, दिन रात उस पर काम करना होगा। नए नए तरीकों से मार्केट में उसे प्रेजेंट करना पड़ेगा। इस फील्ड में आपको एक रात में सक्सेस नहीं मिल सकती है। तो बस मेहनत करते रहें ।

टियर 2 सिटीज़ से आप कैसे जुड़ी हुई हैं? अनाविला मिश्रा के फ्यूचर प्लान्स क्या हैं? 

अभी नए रिटेल आउटलेट्स खोलने का तो कोई प्लान नहीं है। क्योंकि अभी लोग बाहर जाना प्रेफर नहीं करते हैं। और जो भी हमारे दिल्ली और बॉम्बे में स्टोर्स हैं, उन में भी हम सभी सेफ्टी प्रीकॉशन ले रहें हैं। अभी हमारा ध्यान ऑनलाइन स्टोर पर ज्यादा है, क्योंकि अभी हम अपने प्रोडक्ट को कस्टमर्स के लिए बेहतरीन तरीके से ऑनलाइन प्रजेंट करना चाहते हैं ताकि उन्हें समझ आये कि ये किस तरह का प्रोडक्ट है। और टियर 2 सिटीज़, जैसे अहमदाबाद, रायपुर, हम वहां के स्टोर्स के साथ कॉलबेरट करके काम कर रहें हैं। लखनऊ में भी हमने एक एक्सिबिशन की थी, जो बहुत सक्सेसफुल रही। तो टियर 2 सिटीज़ से भी हम जुड़े हुए हैं। 

तो ये थी अनाविला मिश्रा से हमारी एक छोटी सी मुलाकात जिसके लिए हम उनके शुक्रगुज़ार हैं। वाकई आपने बिलकुल सही कहा कि आजकल के युवा में पेशेंस नहीं है। लेकिन अगर किसी को उचाइयां छूनी हैं तो उसके लिए बार-बार फ़ेल होकर भी नया सीखना है और लगातार अपनी क्रिएटिविटी को इस्तेमाल करके आगे बढ़ना है।

अनविला मिश्रा की जर्नी और उसके पीछे की सोच कई यंग डिज़ाइनर्स के लिए एक मिसाल है। और साथ ही जिस तरह से आपने एक ब्रेक के बाद अपनी जर्नी दुबारा से शुरू करी है वो सभी महिलाओं के लिए भी एक प्रेरणा है। आप से इस मुलाकात के जरिये बहुत कुछ सीखने को मिला है।

मूल चित्र : Anavila Misra

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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