कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

ऐसा प्यार देखा कहां…

स्‍वरा ने अनुराग से कहा, "मैं न कहती थी तुमसे इस तरह से सबके साथ जो आनंद है त्‍यौहार का वह दुनिया के किसी कोने में नहीं।"

स्‍वरा ने अनुराग से कहा, “मैं न कहती थी तुमसे इस तरह से सबके साथ जो आनंद है त्‍यौहार का वह दुनिया के किसी कोने में नहीं।”

अनुराग का मूड आज थोड़ा ठीक नहीं लग रहा था। मैं सुबह से उसे निहार रहा था कि हँसने-खिलखिलाने वाला अनुराग आज गुमसुम क्‍यों है?

मैंने पास जाकर पूछा, “अरे भाई अनुराग आज तुम बड़े ही अनमने मन से कार्य कर रहे हो ऑफिस में! क्‍या हुआ ? किसी से कुछ अनबन तो नहीं हुई ?”

बहुत ही उदास मन से अनुराग ने कहा,

“कोई बात नहीं है राकेश! किसी से कुछ अनबन तो नहीं हुई, पर पता नहीं क्‍यों परिवार में मैं बड़ा बेटा होने के नाते सबकी उम्‍मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करता हूँ और स्‍वरा भी अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है, फिर भी सब नाखुश ही रहते हैं। उनकी अपेक्षाएँ कभी ख़त्म ही नहीं होती।”

“अनुराग! हमारा आधे से ज़्यादा दिन तो ऑफिस में ही गुज़रता है और फिर भाभी भी तो नौकरी करती ही हैं न ? अरे रिश्‍तों में तो खट्टी-मीठी बहस होती रहती है, उसके लिये इस तरह उदास होकर तनाव ओढ़ लेने से हल तो नहीं हो जाएगा ? साथ ही उसका सीधा प्रभाव हमारे काम और सेहत पर पड़ेगा।”

“अरे नहीं राकेश वह बात नहीं है, जैसा कि तुम समझ रहे हो! माँ-बाबूजी, आनंद और सौरभ हम शुरू से सब एक साथ ही रह रहे थे पर आनंद का जब से इंदौर स्‍थानांतरण हो गया न, माँ- बाबूजी को तब से उसकी ही फिक्र ज़्यादा सताती है। मैं और स्‍वरा दिल से चाहते थे कि सभी हमेशा साथ में ही रहें, पर नौकरी या व्‍यवसाय के लिए यदि जाना पड़ा तो आनंद भी क्‍या करेगा ? अब वह अकेला इंदौर में कैसे रहेगा ? साथ लेकर जाएगा ही क्षमा को आखिर वह भी तो कितने दिन यहां दोनों बच्‍चों को लेकर अकेले रह पाएगी और रहेगी तो भी मन मसोसकर।”

“सौरभ के लिए भी शादी के लिए सोच-विचार कर ही रहे हैं और माँ है कि आए दिन क्षमा को कुछ न कुछ बोलकर जबरदस्‍ती रोक रही है, जबकि उसे भी पता है कि इन्‍दौर में बच्‍चों का स्‍कूल में प्रवेश दिलाना भी उनको उतना ही आवश्‍यक है। मैं और स्‍वरा थके-मंदे शाम को घर पहुंचते हैं तो न ही हम एक दूसरे को समय दे पाते हैं और न ही बच्‍चों को। आखिर उनकी भी पढ़ाई महत्‍वपूर्ण है।आशिष और स्‍नेहा भी अभी उम्र के ऐसे पड़ाव पर है और आजकल तो हर जगह प्रतियोगिताओं का दौर है, तो उनके तरफ ध्‍यान देना भी अति-आवश्‍यक है।”

“फिर भी इन सबमें इस तरह उदास होने की बात नहीं है अनुराग”, राकेश ने मुस्‍कुराते हुए अपने ही एक अलग अंदाज़ में कहा।

यह सुनकर अनुराग ने झल्‍लाते हुए कहा,

“यार! मैं यहां मसला हल कर रहा हूँ कि परिवार में कैसे सबको खुश रख सकता हूँ ताकि ज़िंदगी के इन तमाम उतार-चढ़ावों के साथ स्‍वरा को भी समय देना जरूरी है। आजकल वैसे ही नौकरी करना भी इतना आसान नहीं है, जैसा कि पुरानी पीढ़ी समझती है! अक्‍सर वे तो सिर्फ उनके सुख के बारे में ही सोचते हैं और उनकी वजह से दूसरों को जो परेशानी भुगतनी पड़ती है, उसका कदापि विचार करना भी मुनासिब नहीं समझते।”

“परिवार में यही तो राकेश पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के दरम्‍यान सामंजस्‍य ठीक से नहीं बैठ पाता है! नहीं तो क्‍या जब हम छोटे थे, “तब संयुक्‍त परिवार ही होते थे और सभी आपस में मिलजुलकर ही रहते थे, साथ ही त्‍यौहार भी खुशियों के साथ मनाते थे।”

राकेश कहता है, “यह सब पारिवारिक मामलों को छोड़ यार अनुराग! यह तो है कहानी घर-घर की! पर हम दोनों को भगवान का शुक्रियादा करना चाहिए कि कम से कम एक ऑफीस में कार्य करते हुए लंच समय या चाय के समय अपने सुख-दुख की बातें तो साझा कर सकते हैं न? लेकिन स्‍वरा भाभी को तो मैं तेरे विवाह के बाद से जानता हूँ, वह तो सबके साथ अपना फर्ज बखूबी निभा रही है, पर पारिवारिक सदस्‍य साथ में रहकर भी उसके मन की बात वह किसी के भी साथ साझा करने में पूर्णत: असमर्थ है।”

“अब तो तेरे परिवार का हाल देखकर मुझे भी लग रहा है कि मैं विवाह के लिये हामी भरूँ या नहीं? पर हम दो भाई हैं और भैया – भाभी विवाह के बाद से ही बाहर रहते हैं, बीच-बीच में परिवार में मिलने आते हैं और माँ तो बाबूजी के स्‍वर्गवास के बाद भी मेरे  साथ ही रह रही है शुरू से। मन में सोचकर यह लगता है कि सबकी पारिवारिक स्थितियॉं भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार की होती हैं, पर पारिवारिक संबंधों में आजकल एक साथ रहने में परिवार के सदस्‍यों में एक दूसरे के प्रति प्रेमभाव न होकर मनमुटाव ही अधिकतर रहता है। इसका कारण जानने की कोई कोशिश ही नहीं करता और एक दिन ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं कि रिश्‍तों में दूरियाँ व्‍याप्‍त हों जाती है।”

इन दोस्‍तों के वार्तालाप के चलते नीरज इनके बहुत ही खास मित्र का उसके बड़े भाई की बेटी ज्‍योती की सगाई में आमंत्रित करने के लिये फोन आता है और उसके पहले होली के त्‍यौहार की धूम मचाने के लिए सब मित्रों के एकत्रित होने की योजना निश्चित होती है और वह भी पूरे परिवार के साथ बतौर सस्‍नेह मिलन।

नीरज ने भी बचपन के और दो-तीन दोस्‍त जो इनके साथ ही पले-बड़े, उनको भी बाकायदा न्‍यौता भेजा, क्‍योंकि अनुराग और राकेश संग इन छ: दोस्‍तों की जोड़ी जो थी। इस बार नीरज ने भतीजी की विदाई के पहले अपने दोस्‍तों के साथ कुछ मौज-मस्‍ती करने की ठानी थी ताकि ज्‍योति ससुराल जाते समय मायके से इसी हंसी-ठिठोली की फुहारों को मन में संजोए, हसंते-हंसते विदा हो और नवजीवन की शुरूआत खुशियों की उमंगता के साथ नित – नई कल्‍पनाओं के उदय के साथ कर सके।

बड़े सबेरे से होली की हुड़दंग शुरू हो गई लेकिन स्‍वरा का तो चाय, नाश्‍ता और खाना बनाने में ही आधा दिन निकल गया। अनुराग ने एकदम से आकर कहा, “अरे भई स्‍वरा! आज के दिन तो किचन को थोड़ा आराम दो, चलो जल्‍दी आशिष और स्‍नेहा को भी साथ ले लो। आज तो नीरज के यहॉं चलते हैं, वैसे भी काफी दिन हो गए हैं उनके घर गए, और उसने सभी को खासतौर से बुलाया है।”

अनुराग और राकेश संग सभी मित्र मंडली जा पहुँचती है नीरज के घर! मकान देखते ही सबकी ऑंखे चकाचौंध रह गईं। मकान को पुन: नवनिर्मित कर लिया, पता ही नहीं चला नीरज! ऐसे सभी मित्र उसे कहने लगे, तुम तो छुपे रूस्‍तम निकले भाई।

नीरज ने कहा, “यही तो सरप्राईज था आप सबके लिए! मेरा और पूनम का प्‍लान था कि ज्‍योति की सगाई के दिन सब व्‍यस्‍त रहेंगे तो इस तरह से सस्‍नेह मिलन उस दिन तो नहीं पाएगा, इसलिए होली के दिन आप सबको आमंत्रित किया और इसी बहाने मेरे सभी भैया – भाभियों से भी मुलाकात हो जाएगी।”

जाते साथ सब बच्‍चे मिलजुलकर रंग से भरी पिचकारी और गुब्‍बारों के साथ होली के रंगो की चिटकारियां लेने लगे और स्‍वरा अनुराग से नीरज के कमान को निहारते हुए बोली, “देखो जी इन चारों भाईयों ने एक ही छत के नीचे सबके लिए अलक-अलग मंजिल पर उनकी सुविधानुसार घर का डिजाईन बनाया है। सबसे नीचे माँ – बाबुजी के लिए क्‍योंकि उनको सीढ़ी चढ़ने में परेशानी होगी और बाकी सबके कमरे भी अलग-अलग बनाए, लेकिन एक संयुक्‍त परिवार की सुदृढ़ नींव को कायम रखा। हमेशा एकदूजे के सुख-दुख में सहारा देने के लिए हर पल तैयार और अभी हाल ही में हमने देख भी लिया जी इनकी माँ जब गंभीर अवस्‍था में अस्‍पताल में भर्ती थी, तो कैसे सब भाईयों ने आपस में सामंजस्‍य बिठाते हुए माँ की देखभाल की तो वे सबके प्‍यार-दुलार से जल्‍दी ठीक हो पाई।”

इतने में नीरज की बड़ी भाभी हाथ में गरमा – गरम पकोड़ों से भरी थाली लाई और मित्रों ने मस्‍त गानों पर थिरकते हुए कदमों के साथ पकोडों का भी लुत्‍फ उठाया। फिर थोडी ही देर में नीरज की दिल्‍ली वाली बहन सदाबहार दही-बड़े बनाकर लाई और मित्रगण एकसाथ अपनी पत्नियों से कह उठे आज तो खाने की छुट्टी हो गई।

इस परिवार की बेहतरीन बात यह थी कि सब भाईयों के अलग-अलग रास्‍तें होने पर भी एक ही छत के नीचे किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए एक साथ सदैव तत्‍पर!

अंत में स्‍वरा ने अनुराग से कहा, “मैं न कहती थी तुमसे इस तरह से सबके साथ जो आनंद है त्‍यौहार का वह दुनिया के किसी कोने में नहीं।”

यह सुनकर नीरज ने पूनम से कहा, “आखिर मेरे मित्रों से तुम्‍हारी मुलाकात हो ही गई”, इस पर पूनम बोली, “जी हाँ ऐसा प्‍यार कहां”

मूल चित्र : Still from Hindi TV Series Khichdi Season 3

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

59 Posts | 233,434 Views
All Categories