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एक मां के जीवन के भावपूर्ण उतार-चढ़ाव की कहानी है फिल्म शकुंतला देवी

फिल्म शकुंतला देवी एक ऐसी मां की भी कहानी है जो अपने स्वतंत्र जीवन को जीने के लिए ऐसा जीवन जीती है जो उस दौर के तयशुदा मान्याताओं के बेड़ियों को तोड़ता है। 

फिल्म शकुंतला देवी एक ऐसी मां की भी कहानी है जो अपने स्वतंत्र जीवन को जीने के लिए ऐसा जीवन जीती है जो उस दौर के तयशुदा मान्याताओं के बेड़ियों को तोड़ता है। 

मैथ जीनियस शकुंतला देवी की ज़िंदगी पर आधारित विद्या बालन स्टारर फिल्म शकुंतला देवी अमेजन प्राइम वीडियों पर रिलीज हो गई है। लोग फिल्म को एक महान गणितज्ञ महिला और मानव कम्पयूटर की मानवीय कहानी के रूप में देख रहे हैं।

विद्या बालन ने अपने अभिनय से फिल्म शकुंतला देवी में जान डाल दी है

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि विद्या बालन ने अपने अभिनय से इस आटोबायोग्राफी वाली फिल्म में जान डाल दी है। डायरेक्टर अनु मेनन की फिल्म शंकुतला देवी की उपलब्धियों के साथ-साथ उनके व्यक्तिगत जीचन और सार्वजनिक जीवन के कहानीयों को पर्दे पर दिखाने में सफल भी दिखते हैं।

फिल्म शकुंतला देवी के बारे में

परंतु, पूरी फिल्म विद्या बालन के चुलबुली, महात्वाकांक्षी और कुछ भी कर गुज़रने की जिद से सरोबार शंकुतला देवी के वास्तविक संघर्षों को दिखाने के बजाए, उनकी सफलताओं का बुके समटने में अधिक व्यस्त दिखती है। मैं नहीं जानता शंकुतला देवी के इस तरह के बायोग्राफी देखने के बाद देश में उन लड़कियों को क्या ही प्रेरणा मिलेगी जो गणित पढ़ना तो चाहती हैं पर चूंकि वह लड़की हैं तो उनको गणित पढ़ने ही नहीं दिया जाता है। विश्वास न तो भारत में गणित पढ़ने वाली लड़कियों का आकड़ा टटोलकर देख लें।

शकुंतला देवी जिस दौर में गणित के जोड़-गुणा-भाग और रूट का आकलन कुछ सेकंड में कर देती थीं, उसी दौर में भारत में लड़कियों का पढ़ना ही अशुभ माना जाता था। धारणा यह भी थी कि पढ़ी-लिखी लड़कियों के पति की मौत हो जाती है। उस दौर में एक लड़की का गणित के सवालों को चुटकीयों में हल कर देना समाज को सहन करना आसान तो नहीं ही रहा होगा।

संघर्षपूर्ण शकुंतला देवी की बायोग्राफी चुलबुली शंकुतला देवी की बायोग्राफी लगने लगती है

अपनी महान प्रतिभा के बाद भी आर्थिक स्थितियों का सामना करते हुए वह स्कूल तक नहीं जा सकीं, यानी स्कूली शिक्षा से पूरी तरह महरूम रहीं। फिर एक महिला का जो गणित को एन्जॉय करती हो, उसका मानवीय जीनियस बनने का सफर आसान तो कतई नहीं रहा होगा, खासकर ऐसे देश में जहां लड़कियां बनी ही हैं घर के कामों के लिए, न कि बाहर के कामों के लिए। पूरी फिल्म में शंकुतला देवी के इस संघर्ष को जम्प शार्ट से पूरा करना बहुत अधिक अखरता है। इसलिए एक संघर्षपूर्ण शंकुतला देवी की बायोग्राफी चुलबुली शंकुतला देवी की बायोग्राफी लगने लगती है।

डायरेक्टर अनु मेनन की फिल्म शकुंतला देवी की बेहतरीन बात

डायरेक्टर अनु मेनन की कहानी कहने के तरीके में जो सबसे अच्छी बात मुझे लगती है वह यह कि वे तीन मां और दो बेटी की भावनाओं की कहानी से भारत में महिलाओं के स्थिति में हो रहे सामाजिक विकास की कहानी बयां कर देते हैं।

एक मां जो अपने सामने मौजूद परिस्थितियों में कुछ नहीं बोलती है और पति परायण बनकर जीवन जीने को विवश है। उसकी इस स्थिति के लिए उसकी बेटी उससे नफरत करती है कि वो कभी कुछ बोलती क्यों नहीं है? यह परिस्थिति शंकुलता देवी को विद्रोही बना देता है और वह जीवन अपने शर्तों पर जीने के लिए वह सब कुछ करती है जो वह करना चाहती है।

एक नार्मल मां किसे कहते हैं?

अपने स्वतंत्र जीवन को जीने के लिए ऐसा जीवन जीती है जो उस दौर के तयशुदा मान्याताओं के बेड़ियों को तोड़ता है। ऐसा करते हुए वह उस तरह की मां नहीं बन पाती है जिसको नार्मल मां का जीवन कहा जाता है और शंकुतला देवी की बेटी उनसे नफरत करने लगी है कि वह नार्मल मां के तरह क्यों नहीं है? शकुंतला देवी की बेटी जो कभी मां ही नहीं बनना चाहती है जब मां बनती है और वह भी अपने तरह का जीवन जीने के लिए थोड़ी विद्रोही बनती है, तो उसे पता चलता है कि वह भी कहीं अपनी मां के तरह तो नहीं बनती जा रही है?

फिल्म शकुंतला देवी माँ-बेटी की अलग कहानी

वह भी अपनी मां के साथ विद्रोह करना चाहती है पर उसे जल्द ही एहसास हो जाता है कि एक औरत का जीनियस होने के बाद साधारण मां बनकर रहना आसान नहीं होता है तब उसे अपने मां पर गर्व होता है। अपनी बेटी के दूर जाते ही शंकुतला देवी को भी यह एहसास होता है कि एक जीनियस की मां होना भी उनके मां के लिए कितना कठिन रहा होगा, उनको भी अपनी मां पर गर्व होता है और वह कहती है वो आज जो कुछ भी है अपनी मां के वजह से ही है।

हर महिला को अपनी मां और बेटी पर गर्व होना चाहिए

इस तरह डायरेक्टर अनु मेनन अपनी कहानी कहने के तरीके में एक साथ तीन मां की कहानी पीरो लेते है। मुझे लगता है इस फिल्म को हर एक महिला को देखना चाहिए जिससे हर महिला को अपनी मां पर और अपनी बेटी पर गर्व हो सके। वह यह समझ सके कि इस पितृसत्तात्मक समाज में हर मां का मां होना और हर एक बेटी का बेटी होना एक महान समर गाथा है। हर महिला को अपनी मां और बेटी पर गर्व होना चाहिए। एक मां का हर विपरित परिस्थितियों में चुप रहना, हर विपरित परिस्थितियों में मुखर होना और एक बेटी का हर विपरित परिस्थितियों में स्वयं को अपनी मां से बेहतर सिद्ध करना जीवन में संघर्ष का एक फलसफा है जो आसान तो कतई नहीं है।

शकुंतला देवी की यह बायोग्राफी कहीं न कहीं एक और कसक छोड़ देती है। वह कसक भारत के सामाजिक परिस्थितियों पर अफसोस का भी है। भारत के पास एक महिला मैथ जीनियस मौजूद था और भारत ने उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए कितना ही कुछ करने का अवसर खो दिया। याद रहे भारत के एक मैथ जीनियस रामानुजम आज भी पूरी दुनिया के लिए एक अजूबा ही बने हुए है उसके दिए गए मैथ की थ्योरी का समाधान आज भी दुनिया खोज रही है।

भारत ने शकुंतला देवी की प्रतिभा का सही सम्मान किया होता तो क्या पता वो मैडम क्यूरी से आगे का कुछ कर पाती और भारत के झोली में गणित के भी कई नोबल सम्मान तो होते ही पता नहीं कितनी ही वैज्ञानिक खॊज भी होते।

अंत में इतना ही कि फिल्म शकुंतला देवी की कहानी होंठों पर मुस्कान और आंखो में चमक की कहानी सरीखी है, जो आम भारतीय महिलाओं के जीवन की कहानी में कभी नहीं देखने को मिलती है।

मूल चित्र : YouTube 

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