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जब भूमिका ने थप्पड़ मारा, निति ने रोते-रोते अपने गले में भूमिका का दुपट्टा लपेट लिया, विवेक ने समय रहते देख लिया इसलिए अनहोनी होने से बच गई।
“आज की सुबह कुछ अलग है। है ना!” भूमिका ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हां है तो! आखिर तीन महीने के बाद आज निति स्कूल गई है”, विवेक ने भूमिका के कंधे को ज़रा हल्के से दबाते हुए कहा।
“भूमिका अब चिंता मत करो। फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। निति बहुत समझदार है। देखा ना तुमने उसने इस घटना का कितनी बहादुरी से सामना किया।”
“हां, तुमने सच कहा। मैं एक बार डर गई थी पर मेरी बच्ची नहीं डरी”, भूमिका ने जवाब दिया।
“बस अब उसके सामने इस घटना का कोई जिक्र नहीं करना। जो हो गया सो हो गया। सबसे बड़ी बात की हमारी निति सुरक्षित है। और इस घटना ने उसका आत्मविश्वास बढ़ाया है”, विवेक ने भूमिका को समझाते हुए कहा, “और सुनो जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दो मुझे अभी निकलना है। आज ऑफिस में जरूरी का काम है।”
विवेक को ऑफिस के लिए विदा कर भूमिका कॉफी लेकर पोर्च में आकर बैठ गई। विवेक से तो उसने वादा किया था कि वो सब कुछ भूल जाएगी पर कड़वी यादें कहां जल्दी पीछा छोड़ती हैं।
चार महीने पहले की बात है। भूमिका ने ध्यान दिया कि निति कुछ गुमसुम सी रहने लगी थी। पढ़ाई में भी उसका दिल कम लग रहा था। इस साल वो कक्षा छ: में आई थी। प्राइमरी कक्षा के इतर सीनियर स्कूल में पढ़ाई का दबाव ज्यादा है, भूमिका समझ रही थी पर निति के व्यवहार में बहुत बदलाव दिख रहा था।
आए दिन स्कूल से शिकायतें आनी शुरू हो गई और भूमिका ने भी निति की परेशानियों को न समझकर डांट-डपट करना शुरू कर दिया।
इसका नतीजा ये निकला कि निति ने स्कूल जाने से मना कर दिया। हद तो उस दिन हो गई जब भूमिका ने उसे थप्पड़ मारा। निति ने रोते-रोते अपने गले में भूमिका का दुपट्टा लपेट लिया। विवेक ने समय रहते देख लिया इसलिए अनहोनी होने से बच गई।
अब तक विवेक ने भूमिका पर ही सारी जिम्मेदारी छोड़ रखी थी। उस दिन वो समझ गया कि स्थिति भयावह है और निति की परेशानी सिर्फ पढ़ाई नहीं है।
उसने भूमिका से साफ़ साफ़ कह दिया कि निति से कोई जोर जबरदस्ती नहीं करनी हैं। कुछ दिनों तक स्कूल जाने का दबाव भी नहीं बनाना हैं। विवेक ने स्कूल की प्रिंसिपल से भी सलाह की और सारी स्थिति से अवगत कराया।
जूनियर स्कूल की प्रतिभाशाली छात्रा निति को प्रिंसिपल मैम अच्छे से जानती थी। उन्होंने स्कूल की काउंसलर से निति के बारे में चर्चा की। काउंसलर निति के घर गईं। विवेक, भूमिका तथा काउंसलर मैम के सकारात्मक रूख़ की वजह से निति कुछ दिनों में सामान्य हुई परंतु अभी भी वो स्कूल जाने को तैयार नहीं थी।
भूमिका, विवेक के खूब समझाने के बाद उसने बताया कि बस का कंडक्टर उससे छेड़छाड़ और गलत हरकत करता है।
भूमिका स्तब्ध रह गई। निति ने इतनी बड़ी बात उससे अब तक क्यों नहीं बताई? बहुत पूछने पर निति ने बताया कि “मम्मी और दादी जब फिल्म देखती है या कोई समाचार पढ़ती है कि किसी लड़की से छेड़खानी हुई या बलात्कार हुआ तो कहती हैं कि जरूर लड़की ने ही बढ़ावा दिया होगा। या लड़कियां आजकल ऐसे कपड़े पहनती हैं इसलिए तो ऐसे वाकए होते हैं। मम्मी मुझे लगा अगर मैं ये बात बताऊंगी तो आप मुझे ही डांटेंगी।“
भूमिका ने जाने अनजाने कितनी बड़ी गलती कर दी थी जिसकी कीमत आज उसकी बेटी को चुकानी पड़ी।
उस कंडक्टर के खिलाफ एक्शन लिया गया। निति की हिम्मत देख कुछ और लड़कियां आगे आईं और सबने कंडक्टर के खिलाफ गवाही दी।
आज तीन महीने बाद निति स्कूल गई हैं। स्कूल जाने से पहले उसने अपनी सहेलियों से कॉपी लेकर सारा काम पूरा कर लिया था। आज उसी उत्साह से निति स्कूल गई थी। आज की सुबह कुछ अलग है। भूमिका को भी जीवन का सबसे बड़ा सबक मिल चुका है कि लड़कियों के साथ होने वाले हर अपराध का कारण लड़कियां स्वयं नहीं होती।
मूल चित्र : VSanandhakrishna from Getty Images via Canva Pro
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