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गणेश चतुर्थी ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना आरंभ किया गया था।
निहारिका आज सुबह से ही खामोश ख़ामोश बुझी बुझी सी थी।
निहारिका की मां समान सास ने पूछा, “आज मेरा गुलाब का फूल मुरझाया क्यों हैं?”
“कुछ नहीं मम्मी, बस ऐसे ही”, निहारिका ने बुझे मन से कहा।
“क्या हुआ बताओ तो”, निहारिका की सास ने कंधे पे हाथ रखते हुए कहा।
कल से गणेश चतुर्थी शुरू हो रही है और कोरोना की वजह से सोसायटी में तो इस बार गणेश चतुर्थी का महोत्सव मनाया नहीं जाएगा, बस इस लिए मन उदास है कि इस बार गणेश चतुर्थी नहीं मना पा रही हूँ”, निहारिका बोली।
“अरे इसमें क्या है? सोसायटी में नहीं मन रहा तो हम अपने घर मे मना लेंगे”, निहारिका की सास ने कहा।
“पर मम्मी जब मैं शादी करके आयी, तो आपने बोला था कि हमारे गणेश जी विर्सजित नहीं करते” निहारिका बोली।
“हां मैंने ये कहा था, पर तुमको के याद है कि मैंने ये क्यों कहा था?” निहारिका की सास ने मुस्कान के साथ पूछा।
“जी मम्मी, आपने कहा था कि हमारे घर के ईष्ट देव गणपति जी है जिस कारण हम इनका विर्सजन नहीं करते है।”
“बिल्कुल सही कहा। पर मैंने ये तो नहीं कहा था कि हम मानते नहीं। हां, मैंने कभी गणेश चतुर्थी नहीं मनाई, क्योंकि मेरे लिए तो हर दिन गणेश चतुर्थी ही होती है। ये तो अपनी-अपनी आस्था है।”
“तुमने मुझसे पूछा था तो मैंने न मनाने का कारण ज़रूर बताया था, पर ये तो नहीं कहा था कि हम मना नहीं सकते। फिर सोसायटी में हर साल होता था तो तुम खुशी-खुशी भाग भी लेती थीं। इस बार सोसायटी में नहीं हो रहा तो क्या हुआ, तुम्हारा मन है तो हम घर मे ही मना लेंगे”, निहारिका की सास बोली।
“पर मम्मी विसर्जन?” निहारिका ने पूछा।
“पहले तुम ये बताओ कि इसकी शुरुआत क्यों और कब की गई? क्या तुमको पता है?” निहारिका की सास ने पूछा।
“नहीं मम्मी…”, निहारिका बोली।
“वैसे तो इसकी शुरुआत शिवजी की माता जीजाबाई ने की थी। पेशवाओं के अंत के बाद, यह एक पारिवारिक उत्सव बना रहा।”
“गणेश चतुर्थी एक वार्षिक घरेलू त्यौहार के रूप में हिंदू लोगों द्वारा मनाना शुरू किया गया था। सामान्यतः यह ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच संघर्ष को हटाने के साथ ही लोगों के बीच एकता लाने के लिए एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना आरंभ किया गया था।”
“1893 में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक) द्वारा पुनर्जीवित किया गया। जिसके पीछे एक उद्देश्य था वो था, ‘आज़ादी की क्रांति’ का। उस समय ऐसे विशाल समूह में इकट्ठा होने की पाबंदी थी। गंगाधर तिलक ने इस गणेश चतुर्थी का 10 दिन का आयोजन शुरू किया जिससे कि क्रांति लायी जा सके।”
“गणेश चतुर्थी का आयोजन तो सफल रहा पर अब एक समस्या आ गयी वो ये कि इतने गणेश मूर्ति का होगा क्या? तब से विर्सजन की प्रथा आरम्भ हुई, जो आज तक चल रही है।”
“इसलिए हम गणेश चतुर्थी मनाएंगे, 11 दिन उनको अलग-अलग भोग भी लगाएंगे। तुम्हारी जैसी श्रद्धा हो तुम वैसे पूजा भी कर लेना। सब कुछ करेंगे बस विसर्जन नहीं करेंगे।”
“चलो अब प्यारी सी मुस्कान बिखरो और खुशी-खुशी गणेश चतुर्थी की तैयारी करो”, निहारिका की सास ने निहारिका के सर पे हाथ रखके कहा।
निहारिका खुशी-खुशी तैयारी करने मे लग गयी।
मूल चित्र : Canva Pro
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