कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माना गोलगप्पे बनाना एक मुश्किल काम है, पर हम भी कहाँ मानने वाले थे…?

हम भी कहाँ मानने वाले थे? वैसे भी सोशल मीडिया पर अपनी बाकी खाने की चीज़ों पर लाइक्स की मात्रा देख के सोचा कि गोलगप्पे बनाना का ट्राई किया जाए।

हम भी कहाँ मानने वाले थे? वैसे भी सोशल मीडिया पर अपनी बाकी खाने की चीज़ों पर लाइक्स की मात्रा देख के सोचा कि गोलगप्पे बनाना का ट्राई किया जाए।

सुबह से बड़ी तैयारी थी। ख़ास दिन था।  हो भी क्यों नहीं, गोलगप्पे जो बनाने थे।

गोलगप्पा हमारे देश में सिर्फ एक फ़ूड आइटम नहीं है। गोलगप्पा भी क्रिकेट और अमिताभ बच्चन की तरह ही इस देश के लोगों को जोड़ कर रखने वाली चीज़ है। गरीब अमीर, बच्चे बूढ़ों, इन सब से परे है गोलगप्पा और उसका स्वाद। साइंस एक ही गोलगप्पे का बस जायका अलग अलग है। किसी को मीठा पसंद है तो किसी को तीखा। पर शायद कोई ऐसा होगा जो इसके स्वाद से वंचित रहा होगा।

गोलगप्पे बनाना एक टफ़ अटेम्पट है लेकिन…

तो भाई कोरोना और लॉकडाउन की एक देन यह भी है कि अब घर बैठे लोग बाहर के खाने को चैलेंज कर रहे हैं।  जिनमें से गोलगप्पा एक टफ़ अटेम्पट है। हम भी कहाँ मानने वाले थे? वैसे भी सोशल मीडिया पर अपनी बाकी खाने की चीज़ों पर लाइक्स की मात्रा देख के सोचा की ये भी ट्राई किया जाए।

जब सारे चेक बॉक्सेस टिक हो गए तो तैयारी भी शुरू हो गयी

तो सबसे पहले यूट्यूब से शुरुआत की गयी।  रेसिपी, क्या क्या चीजें चाहिये सबका स्टॉक लिया गया। तो जब सारे चेक बॉक्सेस टिक हो गए तो तैयारी भी शुरू हो गयी।  देखने में और स्वाद में तो ऐसा लग रहा था कि अगर खुद को गले लगाना संभव होता तो आज मैं दिन भर खुद को गोद में लिए घूमती। हालांकि कमी तो फिर भी थी, लेकिन शायद महीनों बाद जब एक गोलगप्पा सॉर्ट्स (read sorts )हल्का सा स्वाद भी महसूस हुआ तो लगा की जंग जीत गए।

ये भी लॉकडाउन मेमोरी का एक हिस्सा बन ही गया

आखिरकार ये भी लॉकडाउन मेमोरी का एक हिस्सा बन ही गया।  गोलगप्पे बनाना हो गया। गोलगप्पा परोसा गया, घर में हम ढाई लोग है. ढाई के ‘आधे’ ने बिना पानी के खाया, और जो ‘एक’ है उन जनाब ने 9 गोलगप्पे खाने के बाद कहा मसाले में नमक बहुत है!

मसाले में नमक बहुत है!

अरे! ये क्या? 9  गोलगप्पे के बाद ये ज्ञान प्राप्त हुआ क्या? खैर, ‘आदत है’ ये सोचकर मैंने ध्यान भी नहीं दिया। 9  के बाद 10 उसके बाद 11वीं  के बाद फाइनली जब अंदर से आवाज़ आयी तो, “बस यार बहुत खा लिया, पेट जल रहा है”, बोलकर सभा समाप्त हुई।

“ताला मैंने लगा दिया है, लाइट्स बंद कर देना। कल तुम बालकनी की खुली छोड़ गयी थी”, बोलकर भाई साहब चल दिए!

एक हाथ में मसाले की कटोरी, दूसरे में चटपटे पानी की, समझ नहीं आया कैसे रियेक्ट करूँ?

माँ को किसने बना कर दिए गोलगप्पे?

खैर मेहनत बेकार ना जाये ये सोच के एक एक करके पूरियों में मसाले भरते वक़्त एक ख्याल आया।  बचपन में न जाने माँ ने कितने दफे गोलगप्पे खिलाये हों। शायद महीने में एक बार गोलगप्पा पार्टी तो हो ही जाती थी।  एक-एक गोलगप्पे का स्वाद भी याद है, बस जो उस वक़्त याद नहीं रहता था वो है कि हम सबने तो खा लिया, या यूँ कहे की हमें तो बिठा बिठा कर माँ ने गोलगप्पे खिला दिए, उनकी बारी आते ही हम सब कहाँ होते थे? उनको किसने बना कर दिए गोलगप्पे? पापा को तो देखा नहीं! हम सब तो थे नहीं?

क्या इतने सालों माँ ने अकेले बैठ के गोलगप्पे खुद के लिए बनाये और खाये? क्या महसूस करती होगी वो उस वक़्त? शायद आज मैंने उसका सिर्फ एक हिस्सा महसूस किया। अपना सारा प्यार, सारा इमोशन गोलगप्पे में डालने के बाद माँ के पास बचता क्या होगा खुद के लिए?

खैर, गोलगप्पे फिर बनाये जाएंगे, फिर खाये जाएंगे, सालों साल। लेकिन आज से पहले गोलगप्पे इतने बेस्वाद, इतने फीके कभी नहीं लगे!

मूल चित्र : YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

2 Posts | 7,952 Views
All Categories