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फिल्म गुंजन सक्सेना : द करगिल गर्ल और सर्वोच्च अदालत का हलिया फैसला, भारतीय सेना में महिलाओं का हौसला बढ़ाने का बहुत बड़ा काम करेगा।
बीते हफ्ते महिला समानता के दिशा में बड़ा फैसला लेते हुए सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं को सेना के दस विभागों में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का आदेश जारी करते हुए सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि महिलाओं के लिए ऐसा नजरिया मत रखिए। आपके पक्ष में लिंगभेद की बू आ रही है कि सेना के कई क्षेत्र है जहां महिलाएं काम करने में सक्षम नहीं होंगीं। ऐसा करना महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने के बराबर है। सेना में समानता के लिए नज़रिया बदलना होगा। महिलाओं को सीमित क्षेत्र तक रखेंगे तो उनकी पदोन्नति पर असर पड़ेग और संभव है कि वो कर्नल रैंक से आगे नहीं बढ़ पाएंगी। इसी को देखते हुए महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर कमान पोस्ट भी संभालने की जिम्मेदारी दें, जिससे वे अपने काम के दम पर उच्च पदों पर पहुंच सकें।
जान्हवी कपूर की फिल्म गुंजन सक्सेना: द करगिल गर्ल का ट्रेलर आज रिलीज हो गया है जिसमें भारत की पहली महिला पायलट के हौसले, जस्बे और संघर्ष के साथ ही करगिल जंग की झलक देखने को मिल रही है। साथ में देखने को मिल रहा है महिलाएं सेना में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे इसके लिए उनकी जंग घर से ही शुरू हो जाती है। घर के तनाव भरे महौल में अगर मौका मिल भी जाता है तब शुरू हो जाता है समाज और संस्थाओं का तानों और रिजेक्शन का संघर्ष।
इन सारी बाधाओं को पार करके वह अगर सेना के किसी भी अंग में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर भी लेती है तब शुरू होता है फोर्स के अंदर खुद को साबित करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनने की जंग। यह फिल्म और सर्वोच्च अदालत का हलिया फैसला भारतीय सेना में महिलाओं के लिए एक बड़ा हौसला देने का काम करेगा।
“अगर एयरफोर्स ज्वाइन करना है तो फौजी बनकर दिखाओ या घर पर जाकर बेलन चलाओ”
“हमारी जिम्मेदारी है देश की रक्षा करना, महिलाओं को बराबरी का मौका देना नहीं”
“लड़कियां पायलट नहीं बनती, तुम कमजोर हो गुंजन और डिफेंस में कमजोरी के लिए कोई जगह नहीं”
यह सारे संवाद बता देते है कि सेना के अंदाज में कितना मर्दानापन है और इस मर्दानापन पर सेना गर्व भी करती है।
मर्दानापन भरे महौल में पितृसत्तात्मक सरचना में महिलाओं के साथ नरमी बिल्कुल ही जा सकती है। परंतु महिलाओं के साथ पुरुष कैडेट के तरह समानता का व्यवहार की उम्मीद तो किया ही जा सकता है। जब शुरूआत में ही मान लिया जाए वह कमजोर है तो समानता का व्यवहार तो दूर की बात है। वैसे इन सारे हौसला तोड़ने वाले डायलांग में एक शानदार डायलांग यह भी है कि “प्लेन लड़का उड़ाए या लड़की उसे पायलट ही कहते है”, जो गुंजन के पिताजी का है!
देश की रक्षा के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है। परंतु महिला फोर्स का हिस्सा बन जाए तो देश की सुरक्षा से समझौता हो जाएगा, यह स्वीकार्य करने जैसी बात नहीं लगती है। तनाव और चुनौतियों के महौल में महिला हो या पुरुष दोनों की मानसिक स्थिति एक ही तरह की होती है इस बात को कितने ही शोधों ने साबित किया है।
दूसरी बात यह भी है कि महिलाएं भारत की ही नहीं विश्व के कई देशों में सेना का अंग है और वह सब काम कर रही है जो पुरुष करते है। उसके बाद भी महिलाओं की क्षमता को पुरुषों से कम मानना, सिर्फ पुरुषवादी दंभ है और कुछ नहीं। सेना अपने अंदर का यह बकवास दंभ कब बदल देगा यह कहना मुश्किल है। पर सेना में महिलाएं इस दंभ से खौफ खाकर पीछे नहीं हटेगी यह भी तय है।
सिनेमा घरों के बंद होने के कारण जाहिर सी बात है कि देश गुंजन सक्सेना पर बनी कहानी को नेटफिलिक्स पर पंद्रह अगस्त के आस-पास सलिब्रेट करेगा। साथ ही साथ वायुसेना की पहली महिला पायलट के जस्बे को सलाम भी करेगा। पर इस फिल्म को देखते हुए इतना याद रखे कि गुंजन सक्सेना ने अपने जस्बे के लिए आपसे सलामी पाने के लिए अपना पसीना किसी पुरुष से कम नहीं बहाया होगा। इतना जरूर हुआ होगा कि महिलाएं कमजोर होती है मान्यता के नाम पर उनको कई बार भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा होगा, जिसका सामना जाहिर सी बात है सेना में कोई पुरुष तो नहीं ही करता होता।
मूल चित्र : YouTube
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