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हाँ! तुम मेरे कातिल हो। उस रूह के, जिसमें क्षमा थी। उस आत्मा के, जिसमें दया थी। हाँ! तुम मेरे कातिल हो।
उस मुस्कुराहट के, जिसमें चमक थी। उन बेबाक़ बातों के, जिनमे खनक थी।
हाँ! तुम मेरे कातिल हो। उन निगाहों के, जिनमें शरारत थी। उन नादानियों के, जिनसे रौनक़ थी।
हाँ! तुम मेरे कातिल हो। उस रूह के, जिसमें क्षमा थी। उस आत्मा के, जिसमें दया थी।
हाँ! तुम मेरे कातिल हो। उन रातों के, जिनमें ख़्वाब थे। उन दिनों के, जिनकी मैं तलबगार थी। उस मासूमियत के, जिससे मैं थी। हाँ! तुम मेरे कातिल हो। मूल चित्र: Canva
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