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इस सृष्टि ने सिर्फ और सिर्फ इंसान बनाया…

जब कोई विपदा आती है या कोई बीमार होता है उस दौरान सिर्फ और सिर्फ इंसानियत ही काम आती हैं। जिसको हम सभी को अपने व्यवहार में अपनाना चाहिए।

जब कोई विपदा आती है या कोई बीमार होता है उस दौरान सिर्फ और सिर्फ इंसानियत ही काम आती हैं। जिसको हम सभी को अपने व्यवहार में अपनाना चाहिए।

मेरी इस कविता का उद्देश्य समाज में व्याप्त ऊँच-नीच का भेदभाव, जातीय अत्याचार, शोषण, अधिकारों से वंचित रखा गया और मानव को धर्मों के आधार पर तमाम सारे वर्णों और जातियों में बाँट दिया गया। लेकिन जब कोई विपदा आती है या कोई बीमार होता है उस दौरान अगर किसी को खून की जरुरत होती है तो वहां पर ये सब चीजें गौण हो जाते हैं और सिर्फ और सिर्फ इंसानियत ही काम आती हैं। जिसको हम सभी को अपने व्यवहार में अपनाना चाहिए।

 

न हिंदू बनाया, न मुसलमान बनाया,

न सिख बनाया, न ईसाई बनाया,

न बौद्ध बनाया और न जैन बनाया,

इस सृष्टि ने सिर्फ और सिर्फ इंसान बनाया!

 

जब तू इस सृष्टि में आया,

न ऊँच-नीच था न भेदभाव ना ही अत्याचार,

मिलजुल कर सब रहते थे खुश हाल!

 

लेकिन समाज के कुछ तथाकथित लोगों ने,

बाँटा इस समाज को वर्णों और जातियों में,

फिर किया तुमने इस समाज में,

ऊंच-नीच का बीजा-रोपण,

किसी को ऊपर किसी को नीचे बिठाया,

किया तुमने जी भर के उनका शोषण,

बना दिया तुमने उनकी परछाईं को भी अपृश्य!

 

तुमने शिक्षा, स्वतंत्रता, अधिकारों से रखा,

सदियों तक हमें वंचित,

दबता गया ये वंचित समाज,

तुम्हारे शोषण के बोझ तले!

 

जब मिला महामानव के द्वारा,

हमें संवैधानिक अधिकार,

मिला दलितों और अछूतों को,

सर उठा कर जीने का अधिकार!

 

कर शिक्षा का सोपान,

बने डॉक्टर बने मिनिस्टर,

बने प्रोफेसर बने क्लेक्टर,

कर दिखाया हमने भी जमाने को,

है हममें भी वो हौसला वो हिम्मत वो ताकत,

चलें मिलाकर कदम समाज के हर तबके से

रोक न सका कोई हमें

सफलता की उड़ान भरने से!

मूल चित्र : Pexels

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