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जी हां! मैं हाउसवाइफ हूं

एक औरत की विडम्बना यही है, घर में रहते हुए उसका एक - एक पल घर को समर्पित होता है फिर भी बार - बार वह यही सुनती है - ये कुछ नहीं करती, हाउसवाइफ हैं।

एक औरत की विडम्बना यही है, घर में रहते हुए उसका एक – एक पल घर को समर्पित होता है फिर भी बार – बार वह यही सुनती है – ये कुछ नहीं करती, हाउसवाइफ हैं।

“क्या करती हैं आप?” मनीष की सहकर्मी ने पूछा था।

“अरे! यह कुछ नहीं करती, यह हाउसवाइफ हैं।” मनीष ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया तो छनाक सी आवाज़ आई, कहीं कुछ टूट सा गया था, मोहिता ने चेहरे पर नकली मुस्कुराहट ओढ़ ली और रसोई की तरफ चल दी।

मुस्कुराहट के पीछे के दर्द को तो किसी ने देखा ही नहीं। एक औरत की विडम्बना यही है, घर में रहते हुए उसका एक – एक पल घर को समर्पित होता है फिर भी बार – बार वह यही सुनती है – ये कुछ नहीं करती, हाउसवाइफ हैं।

“आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं, हमारे ऑफिस में कई स्टाफ हैं जो घर का खाना खाना तो चाहते हैं पर खुद बना पाने में असमर्थ हैं। क्यों ना आप उन लोगो के लिए टिफिन सर्विस शुरू कर दें, क्यों मनीष क्या कहते हो?” यह मनीष की बॉस थीं।

अब मनीष क्या कहते हां, हूं ही करते रह गए और तब तक तो मनीष की बॉस मिसेज कीर्ति जो खुद एक स्वावलंबी और काफी मित्रवत स्त्री थीं, उन्होंने पूरा लेखा – जोखा तैयार कर दिया था। वह दोपहर में बारह बजे ऑफिस से गाड़ी भेज देंगी और मोहिता को सिर्फ टिफिन बना कर पैक करना होगा, शाम को वहीं ऑफिस की गाड़ी टिफिन वापस मोहिता के घर तक छोड़ जाएगी।

मन ही मन मोहिता काफी खुश थी। इस काम से मनीष और बच्चों का कोई रूटीन भी इधर – उधर नहीं हो रहा था तो मनीष को भी कोई परेशानी नहीं हो रही थी। सब कुछ मोहिता ने संभाल लिया था और खाना स्वादिष्ट होने की वजह से आस – पास के ऑफिसेज से भी मोहिता को टिफिन के ऑर्डर मिलने लगे थे।

कुछ ही महीनों में मोहिता की एक अलग पहचान बन गई थी। युट्यूब पर उसकी रेसिपीज के वीडियो बार – बार देखे जा रहे थे। धीरे – धीरे मनीष के ऑफिस के लोग मनीष से ज्यादा मोहिता  को जानने लगे थे और मनीष अब निशब्द था। आज मोहिता ने अपने आप को एक अलग पहचान दी थी, लेकिन अब भी अगर कोई पूछता की आप क्या करती हैं तो मोहिता का वहीं पुराना जवाब होता “जी मैं हाउसवाइफ हूं।”

मूल चित्र : Pexels

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Anchal Aashish

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