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खुलेआम छेड़छाड़ : पुरुषों की हैवानियात को भूलने की नसीहत क्यों? कड़ी सजा क्यों नहीं?

खुलेआम छेड़छाड़ एक बहुत बड़ी समस्या है और भारत में रहने वाली माताओं, बहनों, बेटियों या कहो कि हर स्त्री के दिलों दिमाग में ये डर दीमक की तरह बैठा चुका है।

खुलेआम छेड़छाड़ एक बहुत बड़ी समस्या है और भारत में रहने वाली माताओं, बहनों, बेटियों या कहो कि हर स्त्री के दिलों दिमाग में ये डर दीमक की तरह बैठा चुका है।

“सुमन साइकिल तेज़ चला और तेज़ चला, देख अगर आज घर नहीं पहुंचे तो ज़िन्दगी भर के लिए दुनिया को मुंह नहीं दिखा पाएंगे।”

“चला तो रही हूं ना! साइकिल ही है, हवाई जहाज ना है।”

और इस तरह और एक दिन ये दोनों बहनें कैसे भी करके घर पहुंच जाती हैं।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ था जब सुमन और कामना स्कूल में देर होने की वजह से घर पहुंचने की जल्दी में थीं। ऐसा सिर्फ इनके शहर में ही नहीं बल्कि भारत के कई प्रदेशों में होता आया है और हो रहा है जहां घर से निकलने वाली बेटियों को बाहर होने वाली बद्तमीजी या छेड़छाड़ का डर लगा रहता है।

क्यों हम इस अधूरी आज़ादी के आदी हो गए हैं

देश भर में लड़की के पैदा होते ही मां-बाप को उनकी सुरक्षा की चिंता होने लगती है। समस्या बेटी का पैदा होना नहीं बल्कि बेटी की सुरक्षा है। कोई भी मां अपनी कोख से जन्मी बेटी को हाथ में निहारते वक़्त उसे बोझ नहीं समझती बल्कि उसका डर उस बेटी की आजीवन की सुरक्षा होती है।

भारत को आजाद हुए चौहत्तर वर्ष हो गए हैं। पर न जाने क्यों हम इस अधूरी आज़ादी के आदी हो गए हैं क्योंकि परिवर्तन के नाम पर उठने वाले क़दमों को तो काट दिया जाता है, हाथों को तोड़ दिया जाता है और आवाज़ को दबा दिया जाता है।

बड़ी समस्याएं एक नहीं अनेक हैं

समस्याएं एक नहीं अनेक हैं – चाहे बाल श्रम हो, घूसखोरी हो, समान शिक्षा का अधिकार या आरक्षण मुक्त शिक्षा हो, भ्रष्टाचार हो, अमीरी गरीबी के बीच की रेखा हो, ऊंच नीच हो, समलैंगिकता हो, देश की उन्नति हो, स्त्रियों का सम्मान; सुरक्षा, अधिकार आदि हो या फिर स्त्रियों के साथ छेड़छाड़ हो?

खुलेआम छेड़छाड़ किसी संगीन अपराध से कम नहीं है?

स्त्रियों के साथ खुलेआम छेड़छाड़ किसी संगीन अपराध से कम नहीं है। घर से बाहर निकलने वाली हर महिला के जहन में उनके साथ किसी भी प्रकार की बदतमीजी होने का एक डर होता है।

और भारत में रहने वाली माताओं, बहनों, बेटियों या कहो कि हर स्त्री के दिलों दिमाग में ये डर दीमक की तरह बैठा चुका है। कुंठित पुरुष जब जहां चाहे औरत को छेड़ते हैं।

सड़क पर चलती औरतों के साथ गंदी नीयत से उन्हें सरेआम उनके गुप्तांगों को छूकर छेड़खानी, काम के स्थान पर महिलाओं को भूखी आंखों से ताड़कर छेड़खानी, गांव में महिलाओं की इज्ज़त से हैवानों की छेड़खानी, स्कूल कॉलेज की बच्चियों के साथ छेड़खानी।

पुरुषों की इस हैवानियात को भूलने की नसीहत क्यों?

और अगर औरत पुरुषों की इस हैवानियात का जवाब देना भी चाहती है तो घर में मां-बाप बेटी के साथ कुछ अनर्थ ना हो करके उसे भूल जाने को कहते हैं ताकि उनकी बच्चियों के साथ कोई और अनर्थ न घटे, और अगर फिर भी कोई महिला अपने स्वाभिमान की खातिर कोई कदम उठाती है तो या तो उसे ब्लैकमेल किया जाता है या उसके चेहरे को जला दिया जाता है या सरेआम उसकी अस्मत ज़ार ज़ार कर दी जाती है या उसको काट कर फेंक दिया जाता है।

खुलेआम छेड़छाड़ इस देश का सबसे अहम मुद्दा होना चाहिए

और इस मुद्दे में सभी संस्थाओं को चाहे वह मानव अधिकार हो, महिला आयोग हो, कानून व्यवस्था हो। इस दिशा में सकारात्मक समाधान निकालने होंगे। कड़े कानून बनाने होंगे, फाइन लगाने होंगे, ज्यादा महिला कर्मियों को भर्ती कर महिलाओं की सुरक्षा की व्यवस्था करनी होगी।

जब तक छेड़छाड़ को खत्म नहीं किया जाएगा या कड़े कदम नहीं उठाए जाएंगे, कई मासूम बच्चियां अपने सुंदर सपनों और भविष्य दोनों से हाथ धोती रहेंगी। क्या कसूर हैं इन बच्चियों का?

इन हजारों लड़कियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है ये एक अहम सवाल है?

नाबालिग लड़कियों और महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों में खुलेआम छेड़छाड़ आज की तारीख का सबसे अहम मुद्दा है जिस पर कठोर और सक्रिय कदम उठाए जाना सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।

मूल चित्र : Canva Pro 

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Ruby Jain

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